
पाकिस्तान इस समय एक बार फिर भीषण मानसूनी बारिश और बाढ़ की चपेट में है। खासकर पंजाब प्रांत में हालात बेहद खराब हैं, जहां सड़कें जलमग्न हो गई हैं और जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त है। खैबर पख्तूनख्वा समेत अन्य इलाकों में भी हालात चिंताजनक हैं। जून की शुरुआत से ही बारिश का सिलसिला जारी है, जो अब तक 250 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है। इनमें बड़ी संख्या में बच्चे भी शामिल हैं, जबकि सैकड़ों लोग लापता हैं।
वर्तमान हालात क्या हैं?
पाकिस्तान में मानसून 25 जून को पूरे देश में सक्रिय हो गया था, लेकिन बारिश जून की शुरुआत से ही हो रही थी। अब तक बाढ़ और बारिश से 471 लोग घायल हो चुके हैं। गुरुवार को ही एक दिन में 63 लोगों की मौत और 227 लोग घायल हुए। सबसे ज्यादा प्रभावित पंजाब प्रांत है, जहां राजधानी लाहौर के निचले इलाके जलमग्न हो चुके हैं। खैबर पख्तूनख्वा में स्वात नदी उफान पर है और बाढ़ की चेतावनी जारी की गई है।
हर साल बाढ़ क्यों मचाती है तबाही?
- भौगोलिक स्थिति और जलवायु परिवर्तन
पाकिस्तान में करीब 13,000 ग्लेशियर हैं, जो गर्मी के मौसम में तेजी से पिघलते हैं। इस साल गिलगित-बाल्टिस्तान जैसे क्षेत्रों में तापमान 48°C तक पहुंच गया, जिससे ग्लेशियर तेजी से पिघले। साथ ही पाकिस्तान में 70-80% बारिश सिर्फ मानसून में होती है, जिससे थोड़े समय में अधिक पानी गिरता है और बाढ़ आ जाती है। - सरकारी कुप्रबंधन
कमजोर नीतियां, आपदा प्रबंधन की तैयारी में कमी और असुरक्षित इमारतें मौतों की संख्या बढ़ा रही हैं। राहत और बचाव कार्यों में देरी आम बात है। - अवैध और असुरक्षित शहरीकरण
शहरी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ती झुग्गियां भी बाढ़ की तबाही को बढ़ा देती हैं। यूएन हैबिटैट की रिपोर्ट के अनुसार, ये क्षेत्र सबसे पहले और सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
पाकिस्तान क्यों ठहराता है दुनिया को ज़िम्मेदार?
पाकिस्तान का कहना है कि वह ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सिर्फ 0.5% योगदान देता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के असर उसे disproportionately भुगतने पड़ते हैं।
यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में आपदाओं से मौत का खतरा दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले 15 गुना ज्यादा है।
2022 की विनाशकारी बाढ़ के बाद पाकिस्तान ने जनवरी 2023 में अंतरराष्ट्रीय डोनर्स मीटिंग की थी, जिसमें 10 अरब डॉलर की मदद का वादा किया गया था, लेकिन अब तक उसे सिर्फ 2.8 अरब डॉलर की राशि मिली है। पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के अनुसार, जलवायु संकट से निपटने के लिए उसे 2050 तक हर साल 40-50 अरब डॉलर की आवश्यकता होगी।
यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा था कि दुनिया की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वह पाकिस्तान की मदद करे, क्योंकि वह जलवायु संकट का सबसे बड़ा शिकार है, जबकि उसने इसमें सबसे कम योगदान दिया है।