एम्स में भर्ती कराना है, सांसद का लैटर दे दो…! मथुरा में सांसद जी के सिफारिशी पत्र का खेल

मथुरा। साहब, हमें अपने भाई को एम्स में भर्ती कराना है, सांसद जी का लैटर दे दो…। क्या परेशानी है? भाई को कैंसर हो गया है। हाईवे स्थित एक अस्पताल में इलाज करा रहा था। महीनों हो गए। अब कह दिया है कि दिल्ली ले जाओ। साहब, इतने महीनों तक इलाज में सब कुछ खर्च हो गया। खेत गिरवीं रख दिया, अब इलाज को पैसा नहीं है। सांसद जी के पत्र से एम्स में भर्ती हो जाए तो इलाज हो जाएगा….।

सांसद हेमा मालिनी के प्रतिनिधि जनार्दन शर्मा के कार्यालय में एक परेशान व्यक्ति गिड़गिड़ा रहा था। उसके लिए तत्काल लैटर तैयार कराया और पकड़ा दिया। ये सिफारिशी लैटर पाकर उसके चेहरे पर उम्मीद की ऐसी झलक उभरी कि अब भाई का इलाज हो जाएगा। मैं करीब दो तीन घंटे तक यहां बैठा रहा, इस दौरान तीन और लोग आए जिन्हें एम्स में भर्ती के लिए सांसद का सिफारिशी पत्र चाहिए था। यहां बताया गया कि हर रोज ही तीन-चार लोग इस तरह के पत्र के लिए आ ही जाते हैं। ज्यादातर की एक ही बात होती है कि इतने दिनों से इलाज करा रहा था, मगर, अब कह दिया कि दिल्ली ले जाओ। इनमें ज्यादातर कैंसर, लिवर, किडनी, हार्ट पेशेंट के घरवाले होते हैं।

इनमें भी सबसे ज्यादा केस कैंसर के होते हैं। अगर कुल सिफारिशी पत्र में से आंकड़ों की बात करें तो 50 प्रतिशत से ज्यादा कैंसर पीडित होते हैं। ये मरीज यहां पर महीनों से इलाज कराते रहते हैं। इलाज के बाद भी जब कैंसर अंतिम स्टेज पर आ जाता है तब तीमारदार के सामने हाथ खड़े कर दिए जाते हैं। इसके बाद नंबर आता है लिवर मरीजों का। ऐसे मरीजों को भी तब दिल्ली का रास्ता दिखाया जाता है जब इलाज कराने के बावजूद लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र इलाज बचता है।

सांसद का पत्र लेने आने वाले लोगों से बातचीत में पता चलता है कि लोग अपने के लिए अपना लिवर डोनेट करने से कतराते हैं। जबकि विशेषज्ञ बताते हैं कि लिवर डोनेट करने से शरीर पर कोई प्रतिकूल असर नहीं होता। कुछ महीनों बाद लिवर स्वत: नार्मल हो जाता है। किडनी के मामले में भी मरीजों और उनके तीमारदारों को इसी तरह की परेशानी उठानी पड़ रही है।

आयुष्मान कार्ड का खजाना खत्म होने तक करते हैं इलाज

सरकार ने पात्र लोगों के निशुल्क इलाज के लिए आयुष्मान योजना शुरू की है। सांसद के सिफारिशी पत्र के लिए आने वालों लोगों में कुछ ऐसे भी होते हैं जो इस योजना के पात्र हैं। इनका कहना है कि अस्पताल से ये कह कर दिल्ली का रास्ता दिखा दिया जाता है कि जितनी लिमिट थी, उतना इलाज कर दिया। ऐसे अस्पतालों की संख्या भी एक दर्जन से अधिक है।

सांसद प्रतिनिधि जनार्दन शर्मा ने कहा कि उनके यहां जो भी आता है, उसे सांसद का सिफारिशी पत्र तत्काल दिया जाता है। इस पत्र के आधार पर एम्स में प्राथमिकता पर ओपीडी में परामर्श मिल जाता है। इसके लिए एम्स में विशेष काउंटर बनाया गया है जहां पर जनप्रतिनिधियों के पत्र के आधार पर ओपीडी की प्रक्रिया संचालित की जाती है। इसके बाद ही भर्ती और इलाज की प्रक्रिया शुरू होती है।

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