
ये सिर्फ एक राज्य का चुनाव नहीं…ये भारत की राजनीति की ‘नब्ज़’ की लड़ाई है। बात हो रही है बिहार विधानसभा चुनाव की – उस चुनाव की, जिसे ‘पॉलिटिकल ट्रेंडसेटर’ और ‘राष्ट्रीय लिटमस टेस्ट’ कहा जाता है। इतिहास गवाह है कि बिहार के मतदाताओं ने जब भी कोई फैसला लिया है, उसकी गूंज सिर्फ पटना या गया में नहीं, बल्कि दिल्ली के पावर कॉरिडोर्स तक सुनाई दी है। आज हम आपको बताएंगे कि क्यों नवंबर 2025 का बिहार चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन की लड़ाई नहीं, बल्कि राष्ट्रीय दिशा तय करने वाला संग्राम बन चुका है।” “बिहार का चुनाव सिर्फ बिहार के भविष्य का फैसला नहीं करता – ये देश की राजनीतिक हवा का रुख भी बताता है। चाहे वो 1970 का जेपी आंदोलन हो या 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा का रास्ता रोकना… बिहार हमेशा से राष्ट्रीय राजनीति की प्रयोगशाला रहा है। यहाँ का हर चुनाव देश को एक वैचारिक मोड़ देता आया है – मंडल, कमंडल, या अब जातीय जनगणना की बहस – सबकी शुरुआत यहीं से हुई।
बिहार चुनाव 2025 में एक तरफ होंगे नीतीश कुमार – जो बीते दो दशकों से सत्ता में हैं, और दूसरी ओर होगा महागठबंधन, जो बदलाव का चेहरा बनने की कोशिश कर रहा है। सवाल ये नहीं कि कौन जीतेगा – सवाल ये है कि क्या जनता बदलाव चाहती है? और अगर हां, तो कैसा बदलाव? ये ट्रेंड बाकी राज्यों के लिए भी सिग्नल बनेगा।” इस चुनाव का सबसे बड़ा एजेंडा जातीय जनगणना है। बिहार ने इसकी शुरुआत कर दी है, और अब ये मसला दिल्ली तक पहुंच चुका है। अगर कोई पार्टी इस मुद्दे को पार कर विकास के एजेंडे पर जीत दर्ज करती है, तो यह पूरे देश के लिए ट्रेंडसेटर बन सकता है। ये बहस न सिर्फ बिहार में बल्कि यूपी, एमपी, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी नया विमर्श पैदा करेगी।
बिहार चुनाव के ठीक बाद 2026 में बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुद्दूचेरी में विधानसभा चुनाव होंगे। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि बिहार का जनादेश इन राज्यों के मतदाताओं के मनोविज्ञान पर असर डालेगा। यही कारण है कि हर पार्टी, हर पॉलिटिकल थिंक टैंक बिहार को ‘मोमेंटम मेकर’ की तरह देखता है।
जेपी आंदोलन, मंडल आयोग, लालू का उदय, नीतीश का उदय और अब जातीय जनगणना – बिहार ने हर दौर में भारतीय राजनीति को दिशा दी है। यहां के नेताओं ने सिर्फ राज्य नहीं, देश का भी नेतृत्व किया है – जयप्रकाश नारायण से लेकर बीपी मंडल, कर्पूरी ठाकुर से लेकर सुशील मोदी तक। इसीलिए बिहार में जो भी सियासी परिवर्तन होता है, वो आगे जाकर भारत की राजनीतिक संस्कृति को आकार देता है। तो क्या 2025 का बिहार चुनाव एक बार फिर इतिहास रचने जा रहा है? क्या जातीय जनगणना, विपक्ष की एकता और नीतीश के दो दशकों के शासन को लेकर जनता का फैसला एक नई राष्ट्रीय राजनीति की नींव रखेगा? ये सिर्फ समय बताएगा… लेकिन इतना तय है – बिहार जो फैसला करेगा, उसकी सियासी गूंज पूरे भारत में सुनाई देगी। क्या बिहार चुनाव से देश की राजनीति को नया एजेंडा मिलेगा?
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