
Nand Gopal Nandi : यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल नंदी ने एक दिन पहले प्रदेश की नौकरशाही पर हमला किया था। अब उन्होंने टैबलेट की खरीद पर सवाल उठाए हैं।
बिहार के औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’ ने विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से तीन प्रमुख मामलों का हवाला देते हुए कहा है कि विभाग में अनियमितताएं और प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया गया है। इन आरोपों में स्मार्टफोन और टैबलेट की खरीद, लीडा के मास्टरप्लान में बदलाव, और फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (एफडीआई) नीति के तहत दी गई सब्सिडी शामिल हैं। विभाग का कहना है कि इन सभी संशोधनों में उचित प्रक्रिया का पालन किया गया है और शीर्ष स्तर की मंजूरी के बाद ही इन्हें लागू किया गया है। प्रस्ताव कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजे गए हैं, जो मंजूर होने के बाद ही अमल में आएंगे।
ये हैं वो तीन मामलें…
स्मार्टफोन की खरीद में बदलाव
मंत्री नंदी के अनुसार, वित्त वर्ष 22 जनवरी को मंत्रिपरिषद की बैठक में फैसला लिया गया था कि 25 लाख छात्रों को स्मार्टफोन वितरित किए जाएंगे। लेकिन पांच महीने बाद विभाग ने अचानक स्मार्टफोन की जगह टैबलेट्स खरीदने का प्रस्ताव रख दिया। उस समय तक 7.18 लाख स्मार्टफोन वितरित हो चुके थे, और केवल 1.04 लाख स्मार्टफोन शेष थे। मांग के अनुसार 27 लाख स्मार्टफोन की जरूरत थी, जबकि टैबलेट्स की मांग केवल 7 लाख थी। इस बदलाव से लगभग 3100 करोड़ रुपये का बजट लैप्स हो गया। विभागीय सूत्रों का कहना है कि शीर्ष स्तर पर इस निर्णय का मकसद बच्चों को स्मार्टफोन में वीडियो बनाने की आदत से बचाने के लिए टैबलेट देना था।
लीडा के मास्टरप्लान में बदलाव
नंदी के पत्र के मुताबिक, लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण (लीडा) के नए मास्टरप्लान-2041 के ड्राफ्ट की आपत्तियों को दूर करने के लिए यूपी सिटी डेवलपमेंट अथॉरिटी (यूपीसीडा) को फाइल भेजी गई थी। बाद में कुछ परिवर्तन किए गए, जिनमें ग्रीन बेल्ट में ‘गलतियों में सुधार’ का हवाला देते हुए बदलाव किए गए। कहीं ग्रीन बेल्ट का क्षेत्र बढ़ाया गया, तो कहीं जमीन को किसी इंस्टीट्यूट को दे दिया गया। इन बदलावों के लिए फिर से यूपीसीडा के माध्यम से मंजूरी लेनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
एफडीआई नीति में बदलाव और कंपनियों को लाभ
मंत्री ने आरोप लगाया है कि फूजी सिल्वरटेक कंपनी को बैकडेट से लाभ पहुंचाने के लिए जमीन दी गई, जिसमें करीब 79,000 वर्गमीटर जमीन यमुना एक्सप्रेसवे के पास दी गई। एफडीआई नीति के तहत इस जमीन पर 75 प्रतिशत सब्सिडी मंजूर की गई थी। लेकिन कंपनी ने मात्र 15 करोड़ रुपये निवेश किए, जबकि पात्रता के लिए 100 करोड़ रुपये का निवेश जरूरी था। इसके बाद मंत्रिपरिषद ने नीति में संशोधन कर एफसीआई (फिक्स्ड कैपिटल इन्वेस्टमेंट) को भी एफडीआई नीति का हिस्सा बना दिया। आरोप है कि कंपनी को यह 75 प्रतिशत सब्सिडी बैकडेट से दी गई, जबकि इसी तरह की अन्य कंपनियों को यह लाभ नहीं मिला।










