
Kanwar Yatra 2025 : देश में कांवड़ यात्रा के दौरान विक्रेताओं की पहचान को लेकर सियासी युद्ध के साथ-साथ अब धर्मयुद्ध छिड़ गया है। सरकार की ओर से कहा गया है कि कांवड़ यात्रा के दौरान विक्रेता अपनी पहचान एक बोर्ड पर डिस्प्ले करनी होगी। यह वहां की सरकार का फरमान है। इसको लेकर एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है।
सदियों से चली आ रही परंपरा में फिर से सांप्रदायिक रंग घुल रहा है। ढाबे में काम करने वाले लोगों से उनके नाम पूछे जा रहे हैं, आधार कार्ड मांगा जा रहा है, यहां तक कि उनके कपड़े उतरवाकर उन्हें जलील किया जा रहा है। यह सब करने वाले लोग खुद को हिंदू संगठनों के साथ बता रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पंडित जी वैष्णो ढाबा बंद कर दिया गया है। यह वही ढाबा है, जिसने 28 जून को उस समय विवादों में आ गया था। लोग कह रहे हैं कि इस तरह के विवाद बनाना एक सोची-समझी रणनीति है, जिसमें सड़क किनारे लगने वाले ठेले और रियां भी शामिल हैं। कुछ का मानना है कि दुकानदार अपनी पहचान न छुपाएं, पारदर्शिता जरूरी है। हालांकि, जांच का अधिकार कानून का है।
बता दें कि पिछले साल यूपी सरकार ने एक आदेश निकाला था, जिसमें नाम और संबंधित जानकारी को अपने बोर्ड पर लिखना अनिवार्य किया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था।
बता दें कि कावड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू हो रही है, लेकिन उससे पहले ही यूपी में इसको लेकर राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। एआईएमआईएम के प्रमुख असद्दीन ओवैसी और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव दोनों का ही आरोप है कि उत्तर प्रदेश सरकार कहीं न कहीं इस पूरे मामले को हिंदू बनाम मुसलमान बनाने की कोशिश कर रही है।
इस मामले में बृजेश पाठक का कहना है, “पंडित वैष्णो ढाबा और उसका संचालक किसी दूसरे समाज का व्यक्ति है। उसमें काम करने वाले मुसलमान हैं। इस प्रकार की घटनाओं को कौन बढ़ावा दे रहा है? ऐसी बयानबाजी क्यों की जा रही है कि ये व्यक्ति पहलगाम के आतंकी की तरह हैं? उत्तर प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर को बनाए रखना जरूरी है। किसी को कानून तोड़ने की अनुमति नहीं है। हर धार्मिक कार्यक्रम, जैसे कि कावड़ यात्रा, सुरक्षित और सुव्यवस्थित ढंग से संपन्न होनी चाहिए। किसी को भी इससे बाधा नहीं पहुंचनी चाहिए। कावड़ यात्री व्रत रखते हैं, हरिद्वार से गंगा का जल लाकर बाबा भोलेनाथ को अर्पित करते हैं। उनके व्रत को तोड़ने का प्रयास नहीं होना चाहिए।”
दरअसल, उत्तर प्रदेश में कावड़ यात्रा के दौरान विक्रेताओं और श्रद्धालुओं की पहचान के मामले पर हो रही राजनीतिक और सामाजिक बहस को दर्शाती है। सरकार का निर्देश है कि विक्रेता अपने नाम और जानकारी बोर्ड पर दिखाएं, जिससे पारदर्शिता हो सके। मगर, विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है और धार्मिक आयोजनों का स्वरूप प्रभावित हो सकता है। राज्य सरकार हिंदू और मुसलमानों के बीच तनाव पैदा करने की कोशिश कर रही है।