‘हिंदू हिंदुस्तान मान्य है मगर ये हिंदी मान्य नहीं..’ मंच से उद्धव का हिंदी पर हमला, राज ठाकरे बोले- हमे इस्तेमाल कर फेंका

महाराष्ट्र की सियासत में आज का दिन बेहद अहम माना जा रहा है। 20 सालों के बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे आखिरकार साथ आ गए हैं। दोनों चचेरे भाइयों ने एक साथ मंच साझा किया और गले मिलकर अपनी नई राजनीतिक एकता का संकेत दिया है। यह पहली बार है जब दोनों नेताओं ने सार्वजनिक रूप से एक साथ आकर महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत दिए हैं।

दोनों नेता मुंबई के वर्ली में मराठी विजय दिवस मनाने के लिए मंच पर आए। इस अवसर पर उन्होंने एक-दूसरे से मिलकर अपने पुराने मतभेद भुला दिए और एक नई शुरुआत की दिशा में कदम बढ़ाया। इस मिलन को सियासी पंडित महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत मान रहे हैं, जो आगामी दिनों में राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है।

उद्धव ठाकरे ने अपने भाषण में कहा, “मैं कट्टर मराठी और हिंदुत्व वाला हूं। आज मेरे भाषण से जरूरी हैं। हमारे बीच जो अंतर था, उसे अनाजी पंथ ने दूर किया है। हम एकसाथ रहने के लिए एकसाथ आए हैं। आज सबको उखाड़ फेंकने के लिए हम एकसाथ आए हैं।” उन्होंने यह भी कहा, “लोग कहते हैं कि मैंने हिंदुत्व छोड़ा, लेकिन मैं हिंदुत्व का कट्टर समर्थक हूं। भाषा के नाम पर गुंडगर्दी सहन नहीं करेंगे, लेकिन भाषा के लिए हम गुंडे हैं।”

उद्धव ठाकरे ने अपने चचेरे भाई राज ठाकरे के प्रति भी सम्मान व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “हमारे एक होने पर सबकी नजर है। राजनीतिक दूरियां दूर करके हमने एकता दिखाई है। हमारे बीच की दूरियां जो मराठी ने दूर की हैं, वह सभी को अच्छी लग रही हैं।”

वहीं, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने भी इस मौके पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, “मैंने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि मेरा महाराष्ट्र किसी भी राजनीति और लड़ाई से बड़ा है। आज 20 साल बाद मैं और उद्धव एक साथ आए हैं, जो बालासाहेब ठाकरे नहीं कर पाए, वो देवेंद्र फडणवीस ने कर दिखाया। हम दोनों को साथ लाने का काम किया है।”

राज ठाकरे ने अपने भाषण में जोर देते हुए कहा, “बीस साल बाद हम साथ आए हैं। यदि कोई महाराष्ट्र के प्रति आंख उठाकर देखेगा, तो उसको हमारा सामना करना पड़ेगा।” उन्होंने कहा, “यह कोई जरूरत नहीं थी। बीजेपी कहां से लेकर आई? किसी को पूछना नहीं, सिर्फ सत्ता के बल पर ऐसा फैसला लेना सही नहीं है। मैंने साफ कह दिया है कि आप जो कह रहे हैं, मैं सुन लूंगा, लेकिन मानूंगा नहीं।”

यह ऐतिहासिक मिलन महाराष्ट्र की राजनीति में नई जान फूंकने वाला माना जा रहा है, जो आगामी चुनावों और राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। दोनों नेताओं का यह कदम महाराष्ट्र की जनता और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।

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