
नई दिल्ली : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए लोकतांत्रिक संस्थाओं पर बढ़ते दबाव को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था, जिस पर लोकतंत्र की निष्पक्षता टिकी होती है, अब विश्वसनीयता के संकट से जूझ रही है।
“पहली बार चुनाव आयोग इतना पक्षपाती दिखा”
गहलोत ने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा देखने को मिला है कि चुनाव आयोग के चेयरमैन और सदस्यों का रवैया विपक्षी नेताओं के प्रति अशोभनीय और असंयमित रहा है। उन्होंने कहा कि पहले आयोग हर पक्ष को धैर्य से सुनता था और निष्पक्ष निर्णय देता था, लेकिन अब वह लोकतांत्रिक मूल्यों से भटकता नजर आ रहा है।
राहुल गांधी के मुद्दों की अनदेखी का जिक्र
गहलोत ने राहुल गांधी द्वारा महाराष्ट्र से जुड़े मुद्दों को उठाए जाने की ओर भी ध्यान दिलाया और कहा कि “जब उन्हें कोई जवाब नहीं मिला, तो उन्हें खुद लेख लिखकर अपनी बात कहनी पड़ी।” यह दर्शाता है कि अब संस्थाएं जवाबदेही से बच रही हैं।
कानून एजेंसियों पर भी उठाए सवाल
गहलोत ने ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने दावा किया कि संसद में दिए गए एक उत्तर के अनुसार, 193 केस विपक्ष के नेताओं पर दर्ज हुए, जिनमें से केवल दो मामलों में दोष सिद्ध हो पाया। यानी कुल मामलों का महज 1% ही सही साबित हुआ, बाकी केवल राजनीतिक प्रताड़ना का हिस्सा बने।
“संस्थाएं दबाव में, लोकतंत्र खतरे में”
पूर्व मुख्यमंत्री ने स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि न्यायपालिका, चुनाव आयोग और प्रशासनिक तंत्र सभी सरकार के दबाव में आ जाएं, तो यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। उन्होंने कहा,
“विपक्ष की आवाज को नजरअंदाज करना सत्ता पक्ष की सबसे बड़ी भूल हो सकती है, जिसका नुकसान पूरे देश को झेलना पड़ेगा।”
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