कोर्ट ने कहा : कम उम्र में विवाह से बढ़ रहे सामाजिक अपराध, माता-पिता को भी जागरूक करना जरूरी

नैनीताल : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने किशोर अवस्था में हो रहे विवाहों और उसके बाद सुरक्षा की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा है कि बड़ी संख्या में नाबालिग युवक-युवतियां विवाह कर रहे हैं और उसके बाद अदालत से सुरक्षा की मांग कर रहे हैं, जो एक चिंताजनक सामाजिक प्रवृत्ति बनती जा रही है।

कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने कहा कि किशोर अवस्था में जीवन साथी चुनने का कानूनी अधिकार भले हो, लेकिन कम उम्र में भावनात्मक परिपक्वता और जिम्मेदारी की समझ विकसित नहीं होती। कई मामलों में नाबालिग लड़की के परिजन दावा करते हैं कि विवाह अवैध है, जिससे लड़कों पर पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज होते हैं और वे जेल चले जाते हैं, जबकि विवाहिता और बच्चे को सामाजिक व कानूनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

नाटकों और लघु फिल्मों से होगा जागरूकता अभियान
इस गंभीर सामाजिक मुद्दे पर हाईकोर्ट ने सचिव शिक्षा चंद्रेश कुमार को दो सप्ताह के भीतर एक समग्र जागरूकता योजना बनाकर कोर्ट में पेश करने के निर्देश दिए हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस अभियान को ग्रामीण क्षेत्रों, स्कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों और संवेदनशील इलाकों में नाटकों, लघु फिल्मों, परामर्श सत्रों और स्थानीय भाषाओं में संवाद के माध्यम से पहुंचाना चाहिए।

ये विभाग रहेंगे शामिल:

  • शिक्षा विभाग
  • ग्रामीण विकास विभाग
  • आंगनवाड़ी
  • स्थानीय प्रशासन
  • पैरा लीगल स्वयंसेवक

कोर्ट की चिंता का आधार
कोर्ट के समक्ष पेश एक याचिका में 19 वर्षीय युवक ने अपनी उम्र की लड़की से विवाह करने के बाद परिजनों से सुरक्षा की मांग की थी। कोर्ट ने इस केस को उदाहरण मानते हुए कहा कि अक्सर ऐसे याचिकाकर्ता किशोर होते हैं, जो न तो कानून की गंभीरता को समझते हैं और न ही भावी जिम्मेदारियों को। कोर्ट ने यह भी कहा कि इससे पॉक्सो कानून का दुरुपयोग भी हो सकता है और अन्य सामाजिक अपराधों को बढ़ावा मिलता है।

अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद
कोर्ट ने कहा है कि दो सप्ताह बाद पेश की गई योजना की समीक्षा की जाएगी और उसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

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