
तीन शहर, तीन कहानियाँ: जब इंसानियत हार गई
आज का दिन फिर साबित कर गया कि क्रूरता और संवेदनहीनता की कोई सीमा नहीं होती। दिल्ली, लखनऊ और पुणे से आईं तीन अलग-अलग घटनाओं ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। ये खबरें सिर्फ अपराध नहीं, बल्कि समाज के टूटते भरोसे, बिखरते रिश्तों और लहूलुहान होती संवेदनाओं की तस्वीर हैं।
दिल्ली: जब भरोसे ने खंजर बन छलनी कर दिया
राजधानी के लाजपत नगर इलाके में रुचिका और उसके 14 वर्षीय बेटे कृष की बेरहमी से हत्या कर दी गई। सबसे भयावह बात यह कि यह हत्या किसी बाहरी ने नहीं, बल्कि उनके अपने घरेलू सहायक ने की—उस व्यक्ति ने, जिसे उन्होंने घर का हिस्सा मान लिया था।
मात्र एक डांट को आत्मसम्मान का मुद्दा बनाकर उसने रात के अंधेरे में मां-बेटे को मौत के घाट उतार दिया। सुबह जब दरवाजा नहीं खुला, तो परिजनों को अनहोनी का आभास हुआ। दरवाजा तोड़ने पर सामने जो दृश्य था, उसने रूह कंपा दी—मां का शव बेडरूम में और बेटे का शव बाथरूम में मिला। इस घटना ने एक बार फिर हमें याद दिलाया कि भरोसे की कीमत कभी-कभी बहुत भारी पड़ जाती है।
लखनऊ: जब रिश्ते अपनों के खून से रंगे गए
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में, एक दामाद ने गुस्से में सास-ससुर को बेरहमी से मार डाला। पत्नी से विवाद के चलते जगदीप नाम के युवक ने पहले अपने ससुर अनंत राम की गर्दन पर दो बार चाकू से वार किया, फिर सास पर हमला कर दिया।
पूनम ने अपने माता-पिता को बचाने की कोशिश की, लेकिन गुस्से का तूफान सब कुछ बहा ले गया। आसपास के लोगों की मदद से आरोपी पकड़ा गया, लेकिन सवाल यह रह गया—क्या आज गुस्सा इतना ज़हरीला हो गया है कि वह अपनों के ही खून से बुझाया जाता है?
पुणे: जब अकेलापन बन गया दरिंदगी का हथियार
महाराष्ट्र के पुणे शहर में, एक युवती अपने ही घर में असहाय हो गई। एक कूरियर डिलीवरी बॉय बनकर आया दरिंदा उसके फ्लैट में घुस गया, और उसके साथ बलात्कार किया। युवती अकेली थी, और आरोपी ने संभवतः उसे नशा देकर बेहोश कर दिया।
घटना के बाद आरोपी ने पीड़िता के फोन से अपनी सेल्फी ली और धमकी दी—अगर किसी को बताया तो यह सब इंटरनेट पर फैला देगा। यह सिर्फ एक अपराध नहीं था, यह मानसिक आतंक का सबसे डरावना रूप था। पुलिस ने आरोपी को पहचान लिया है और तलाश जारी है, लेकिन यह घटना एक बार फिर सवाल खड़ा करती है: क्या हम घर के अंदर भी सुरक्षित हैं?
तीन कहानियाँ, एक सवाल: इंसानियत कहां खो गई?
इन तीनों घटनाओं का एक साझा धागा है—भरोसा टूटा, रिश्ते बिखरे और दरिंदगी ने मासूमियत को कुचल दिया। यह समाज के उन दरारों की कहानी है जिन्हें हम अक्सर अनदेखा करते हैं—गुस्सा, वासना और संवेदना की कमी ने इंसान को हैवान बना दिया है। अब सवाल यह है कि क्या हम केवल अपराध की कहानियाँ गिनते रहेंगे, या समाज को इस अंधेरे से बाहर लाने की कोई कोशिश भी करेंगे?