
शाहजहाँपुर। उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में अगर किसी अफसर की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, तो वो हैं जिलाधिकारी धर्मेंद्र प्रताप सिंह। एक ऐसा नाम, जो प्रशासन की ताकत, जनसेवा की भावना और पर्यावरण के लिए गहरी सोच का उदाहरण बन गया है। उन्होंने न सिर्फ एक सूखी नदी को दोबारा जिंदा किया, बल्कि लोगों के दिलों में उम्मीद और प्रशासन पर भरोसा भी लौटाया।
गाँव के बेटे से जिलाधिकारी बनने तक का सफर
धर्मेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 16 जनवरी 1975 को देवरिया जिले के छोटे से गाँव तरकुलवा में एक किसान परिवार में हुआ। बचपन से ही उन्होंने संघर्ष और सादगी को अपना साथी बना लिया था। गाँव के स्कूल से लेकर देवरिया इंटर कॉलेज तक पढ़ाई करते हुए उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान उन्होंने अर्थशास्त्र और दर्शन जैसे विषयों में दो गोल्ड मेडल और एक सिल्वर मेडल हासिल कर दिखा दिया कि मेहनत करने वालों के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं।
21 साल की उम्र में अफसर बनने का सपना पूरा
सिर्फ 21 साल की उम्र में उन्होंने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करके उपजिलाधिकारी (SDM) की कुर्सी संभाली। इसके बाद उन्होंने बस्ती, प्रयागराज, गाजियाबाद, सहारनपुर, इटावा और लखनऊ जैसे कई जिलों में कड़ी मेहनत से काम किया। गाजियाबाद में तो मेट्रो और एलिवेटेड रोड जैसे बड़े प्रोजेक्टों में भी उनका अहम योगदान रहा।
IAS बनने के बाद देशसेवा का नया रास्ता
साल 2013 में धर्मेंद्र सिंह को IAS अधिकारी बना दिया गया। फिर उन्होंने नई दिल्ली नगर परिषद (NDMC) में निदेशक (सतर्कता) बनकर काम किया। यहाँ उन्होंने 50 से ज्यादा सरकारी सेवाओं को लोगों के घर तक पहुँचाने की पहल की, जिसके लिए उन्हें प्रधानमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार 2022 मिला।
भैंसी नदी – जो कभी सूखी थी, अब फिर बहने लगी
जब 14 सितंबर 2024 को उन्हें शाहजहाँपुर का डीएम बनाया गया, तब किसी ने नहीं सोचा था कि कुछ महीनों में यहां की तस्वीर ही बदल जाएगी।
पुवायां तहसील की भैंसी नदी, जो कभी गांवों की जिंदगी थी, अब पूरी तरह सूख चुकी थी। लेकिन धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने इस नदी को फिर से जिंदा करने की ठान ली।
उन्होंने पुराने नक्शे निकाले, गांवों में लोगों से बात की और दो दर्जन से ज्यादा जेसीबी मशीनें लगाकर 53 किलोमीटर लंबी इस नदी को फिर से बहाने लायक बना दिया। अब ये नदी दोबारा पानी से लबालब होने को तैयार है – और साथ ही लोगों की उम्मीदों से भी।
केवल नदी को बहाना ही नहीं, उन्होंने उसके किनारों पर हजारों पेड़ लगवाने का भी अभियान जिलाधिकारी द्वारा शुरू किया जा रहा है। इस अभियान में गांव के लोग, स्कूल के बच्चे, अधिकारी और एनजीओ सब साथ आएँगे। आज यह काम एक जनांदोलन बन गया है।
घर और दफ्तर दोनों संभालते हैं
धर्मेंद्र सिंह सिर्फ एक ईमानदार और मेहनती अफसर ही नहीं हैं, बल्कि एक अच्छे परिवार के मुखिया भी हैं। उनकी पत्नी डॉ. एकता सिंह एक जानी-मानी महिला डॉक्टर हैं और उनका बेटा IIT दिल्ली में पढ़ाई कर रहा है। वो बताते हैं कि एक अच्छा अफसर बनने के लिए घर की जिम्मेदारी निभाना भी उतना ही जरूरी है।
एक मिसाल, एक प्रेरणा
आज जब लोगों को लगता है कि सरकार या प्रशासन से कुछ नहीं होने वाला, तब धर्मेंद्र प्रताप सिंह जैसे अफसर उम्मीद की किरण बनकर सामने आते हैं। उनके काम खुद बोलते हैं। इसलिए हाल ही में उन्हें उत्तर प्रदेश के सबसे बेहतरीन जिलाधिकारियों में टॉप रैंक मिला है।
उनकी कहानी सिर्फ एक नदी को दोबारा बहाने की नहीं है – ये कहानी है संकल्प, मेहनत, और जनसेवा की। वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं – एक ऐसा अफसर, जो जल, जीवन और जनता को जोड़ता है।
“जहाँ नदी बहती है, वहाँ जीवन मुस्कुराता है –
और जहाँ ऐसे अफसर हों, वहाँ तरक्की की नदियाँ कभी नहीं सूखती।