
लखनऊ: प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बसपा प्रमुख मायावती ने कहा, जैसा कि यह विदित है कि देश के अधिकांश लोग जब ज़बरदस्त महंगाई, गरीबी, बेरोज़गारी व कमाई घटने आदि की हर दिन की भूख-प्यास तथा गरीबी की तंगी के त्रस्त जीवन की मार से अति-पीड़ित और दुखी हैं। तो ऐसे में केन्द्र सरकार द्वारा देश में रेल का किराया बढाना भी कुल मिलाकर आम जनहित के विरुद्ध व संविधान के कल्याणकारी उद्देश्य के बजाय व्यावसायिक सोच वाला फैसला ज्यादा लगता है।
उन्होंने कहा- सरकार द्वारा ‘राष्ट्र प्रथम’ के नाम पर आमजन का जीएसटी की तरह ही रेलवे के माध्यम से भी दैनिक जीवन पर बोझ बढ़ाकर उनका शोषण बढ़ाने की यह परम्परा घोर अनुचित है जिस पर सरकार अगर तुरन्त पुनर्विचार करे तो यह उचित होगा।
बसपा सुप्रीमो ने कहा वैसे भी इस समय देश में बढ़ती गरीबी, मंहगाई व सम्मानजनक स्थायी रोज़गार के घोर अभाव में परिवार को पालने के लिए अपना घरबार आदि छोड़कर पलायन करने की मजबूरी आदि के कारण यहाँ के करोड़ों लोगों के लिए यह रेल का सफर कोई फैशन, आनन्द व पर्यटन नहीं है, बल्कि रेल का अति-कष्टदायी सफर यह आम ज़रूरत व मजबूरी है, जिसके तहत् सरकार को इनके प्रति व्यापारिक नहीं बल्कि सहानुभूति का कल्याणकारी बर्ताव ज़रूर करना चाहिए, ऐसी सभी की इनसे हमेशा अपेक्षा रहती है।
इसलिए सरकार को केवल अपने फायदे में व उससे मुट्ठी भर अमीर व सम्पन्न लोगों की चिन्ता करते रहने के बजाय, देश के उन करोड़ों लोगों की समुचित चिन्ता करनी चाहिए जो रोज़गार के अभाव में आत्म-सम्मान का जीवन जीने को तरस रहे हैं।
तथा परिवार का कम से कम एक वक्त पेट भरकर किसी प्रकार गुजर-बसर करने के लिए सरकार की योजनाओं का थोड़ा सा लाभ लेने को मजबूर हो रहे हैं।
यही कारण है कि देश की आबादी में से लगभग 95 करोड़ लोग सरकार की कम से कम किसी एक सामाजिक कल्याण योजना का लाभार्थी बनने को मजबूर हुए हैं।
जिससे ऐसे लाचार व मजबूर लोगों की संख्या अब बढ़ते-बढ़ते वर्तमान वर्ष सन् 2025 में लगभग 64 दशमलव 3 प्रतिशत तक पहुँच गयी है। जबकि सन् 2016 में यह संख्या करीब 22 प्रतिशत ही थी, किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के इन आँकड़ों को भी सरकार अपनी उपलब्धि बता रही है, क्या यह उचित व शोभनीय है।
हालाँकि सभी को मालूम है कि सरकारी योजनाओं का थोड़ा सा लाभ लेने के लिए ज़रूरतमन्द लोगों को कितनी भागदौड़ व परेशानी झेलनी पड़ती हैं। इसके अलावा, प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर भी देश में आए दिन ख़ासकर इन करोड़ों गरीब मेहनतकश एवं मध्यम वर्गीय शहरी जनता को जो इन्हें अत्यधिक शोषण व परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उस पर भी केन्द्र व खासकर दिल्ली सरकार को भी उचित ध्यान देना बहुत ज़रूरी हो गया है।
मायावती ने कहा, वास्तव में लगभग 100 करोड़ से अधिक गरीब लोगों के भारत देश में वाहन प्रदूषण रोकने के लिए उसकी जीवन सीमा पर सख्ती से अनुपालन के अलावा और भी दूसरे बहुत सारे उपायों पर सरकार द्वारा अमल किया जाना ज़रूरी है, ताकि इस ट्रांसपोर्ट (परिवहन) के उद्योग-धंधे में लगे करोड़ों परिवार वालों के जीवन को और अधिक तंगी और परेशानी वाला होने से बचाया जा सके।
साथ ही, दिल्ली की सरकार द्वारा गरीब व दूसरे प्रदेशों में भी ख़ासकर यूपी, बिहार व बंगाल आदि राज्यों से रोटी रोज़ी के लिए पलायन करने वालों को यहाँ बिना कोई वैकल्पिक (दूसरी) व्यवस्था किए हुए उन्हें जिस बेरहमी से उजाड़ने का यह जनविरोधी रवैया अपनाया हुआ है तो वह अति-दुखद व शर्मनाक भी है।वैसे तो सरकार अपनी ऐसी विध्वंसक कार्रवाईयों के लिए बहाना क्या बना रही है कि यह कोर्ट का आदेश है
जबकि कोर्ट ने पीड़ित व विस्थापित हो रहे परिवारों को उजाड़े जाने से पहले उनके लिए दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था करने पर कोई पाबंदी नहीं लगा रखी है। कोर्ट की आड़ में गरीबों की झुग्गी-झोपढ़ी उजाडने का अभियान गरीब मेहनतकश परिवरों के साथ घोर अन्याय है। इसीलिए यह पूरे तौर पर सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह कल्याण्ाकारी सरकार की अपनी भूमिका से मूंह नही मोड़े।
वैसे भी दैनिक उपयोग की आवश्यक वस्तुओं पर भी जिस प्रकार से कीमतें बढ़ायी जा रही हैं वे भी ख़ासकर दिल्ली की जनता के लिए भारी मुसीबतें पैदा कर रही हैं। आमदनी कम व ख़र्च ज्यादा से लोगों के अच्छे दिन की उम्मीदों का फिर क्या होगा? यह सामाजिक भलाई के सम्बंध में सोचने वाली अहम् बात है। इसी क्रम में देश भर में बिजली की कमी ने भी केवल आम लोगों को ही नहीं बल्कि पूरे व्यापारी वर्ग व छोटे उद्योग-धंधों को भी बुरी तरह से प्रभावित कर रखा है।
दिल्ली व यूपी सहित कई और राज्यों में भी बिजली के निजीकारण का उचित लाभ किसी भी ज़रूरतमन्दों को संतुष्ट नहीं कर पाना भी सरकार की नीति में यह खोट व कमियों को जग जाहिर करता है। सरकार इस समस्या का भी संतोषजनक समाधान जितना जल्दी निकाल ले तो वह उतना देशहित में बेहतर होगा। अब मैं अन्त में अपनी बात यहीं समाप्त करती हूँ।
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