
लखनऊ। गडरिया समाज को कुछ लोग परेशान ही रखना चाहते है। हेयदृष्टि के कारण कुछ अधिकारी इस समाज को धंगड़ बताकर पीछे की ओर धकेल रहे हैं जबकि हमारा समाज धंगड़ नहीं धनगर है जो कि 1891 की जनगणना से चला आ रहा है। राष्ट्रीय लोकदल इस समाज को न्याय दिलाने के लिए अपना संघर्ष जारी रखेगा। रालोद के राष्ट्रीय महासचिव डा.यशपाल बघेल ने धनगर समाज के लिए अपनी प्रतिबद्वता दुहराई।
उन्होंने बताया कि 1950, 1956, 1976 के राष्ट्रपति आदेशों में धनगर जाति को अनुसूचित जाति के रूप में क्रमांक 27 पर अंकित किया गया था। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने 03/12/2012 को स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश में धंगड नहीं बल्कि धनगर ही निवास करते हैं और उनमें सामाजिक छुआछूत की भावना भी पाई जाती है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि धनगर जाति उत्तर प्रदेश में पाई जाती है और लाभ की पात्र है। 2017 को तत्कालीन अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष द्वारा बिना प्रक्रिया के धनगर को धंगड किया जाना पूरी तरह असंवैधानिक है। डॉ. बघेल ने आरोप लगाया कि प्रदेश के कुछ वर्ग विशेष के प्रशासनिक अधिकारी जानबूझकर 16 जून 2025 के पत्र जैसे माध्यमों से धनगर समाज को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने का षड्यंत्र कर रहे हैं।
उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल की ओर से मांग की कि धनगर समाज को धनगर अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र तत्काल जारी कराए जाएं। धनगर समाज के अधिकारों की रक्षा में पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजीत सिंह ने अपना पसीना बहाया और अब उनके उत्तराधिकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह इस संघर्ष को आगे बढ़ा रहे हैं।