
नई दिल्ली : हूल दिवस के अवसर पर देशभर में संथाल क्रांति के महान योद्धाओं को श्रद्धांजलि दी गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम के पहले जनजातीय विद्रोह में अपनी आहुति देने वाले वीरों को याद करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा,
“हूल दिवस हमें अपने आदिवासी समाज के अदम्य साहस और अद्भुत पराक्रम की याद दिलाता है। ऐतिहासिक संथाल क्रांति से जुड़े इस विशेष अवसर पर सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो के साथ ही उन सभी वीर-वीरांगनाओं का हृदय से नमन और वंदन, जिन्होंने विदेशी हुकूमत के अत्याचार के खिलाफ लड़ते हुए अपने जीवन का बलिदान कर दिया।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि इन शहीदों की शौर्यगाथा देश की हर पीढ़ी को मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रेरित करती रहेगी।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह ने दी श्रद्धांजलि
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने लिखा,
“आज हूल दिवस पर हम उन वीर आदिवासी भाइयों-बहनों को नमन करते हैं, जिन्होंने महान सिदो और कान्हू के नेतृत्व में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ ऐतिहासिक विद्रोह का बिगुल फूंका। यह केवल स्वतंत्रता संग्राम नहीं था, बल्कि अन्याय के खिलाफ एकजुटता की मिसाल भी थी।”
केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वीर शहीदों को याद करते हुए कहा,
“‘हूल दिवस’ पर संथाल विद्रोह के अमर बलिदानियों सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो सहित सभी वीरों को कोटि-कोटि नमन करता हूं। उनकी गौरवगाथा आने वाली पीढ़ियों को अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद करने की प्रेरणा देती रहेगी।”
क्या है हूल दिवस?
हूल दिवस हर साल 30 जून को मनाया जाता है। यह दिन 1855 में हुए संथाल हूल विद्रोह की याद में मनाया जाता है, जिसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के पहले बड़े जनजातीय आंदोलनों में माना जाता है। इस विद्रोह का नेतृत्व झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र के सिदो और कान्हू मुर्मू ने किया था।
संथाल समाज ने ब्रिटिश शासन, अत्याचारी जमींदारों और महाजनों के शोषण के खिलाफ संगठित होकर विद्रोह किया था। इस आंदोलन में हजारों आदिवासी पुरुषों और महिलाओं ने भाग लिया और अपने प्राणों की आहुति दी।
संथाल विद्रोह का महत्व
संथाल हूल विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली ऐसी लहर थी, जिसमें आदिवासी समाज ने संगठित होकर औपनिवेशिक सत्ता को खुली चुनौती दी। “अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो” का नारा इसी क्रांति में गूंजा था। यह आंदोलन भले ही सफल नहीं हुआ, लेकिन इससे अंग्रेजी सत्ता की नींव हिल गई और आदिवासी चेतना को नई दिशा मिली।