पीलीभीत : शारदा नदी का जलस्तर फिर बढ़ा, सीमावर्ती गांवों में डर का माहौल

भास्कर ब्यूरो

  • ग्रामीण बोले – ठोकरें लग रही हैं, पर कब तक बचाएंगी? सरकार सिर्फ कागजों में सक्रिय

पूरनपुर पीलीभीत। शारदा नदी का पानी एक बार फिर खतरे के निशान की ओर बढ़ रहा है। नेपाल और पहाड़ी इलाकों में हो रही भारी बारिश के बाद शारदा बैराज से छोड़ा गया पानी पीलीभीत के सीमावर्ती गांवों के लिए चिंता का कारण बन गया है। पूरनपुर और कलीनगर तहसील के दर्जनों गांवों में लोग सतर्क हो गए हैं। भले ही अभी पानी गांवों में न घुसा हो, लेकिन नदी की रफ्तार और बढ़ता जलस्तर लोगों को बीते सालों की त्रासदी याद दिला रहा है।

भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट: गांवों में पसरा डर, तैयारी में जुटे लोग

रविवार को दैनिक भास्कर की टीम ने जब गांवों का दौरा किया तो चंदिया हजारा, कॉलोनी नंबर 6, बूंदीभूड, कुतिया कवर, गभिया सहराई जैसे इलाकों में लोगों से बातचीत की। सभी की एक ही शिकायत थी — हर साल पानी का खतरा झेलते हैं, मगर सरकार की तरफ से कोई स्थायी उपाय नहीं किया गया।

ठोकरें तो लग रही हैं, पर भरोसा नहीं

सरकार द्वारा नदी के किनारे ठोकरें (कटान रोकने की अस्थायी दीवारें) लगाई जा रही हैं, लेकिन गांव वालों का कहना है कि ये सब केवल खानापूर्ति है। ठोकरें तब लगाई जाती हैं जब बहाव तेज हो चुका होता है। पिछले साल कई जगहों पर दो-तीन दिन में ही ठोकरें बह गई थीं। लोग अब स्थायी तटबंध की मांग कर रहे हैं।

सरकार से उम्मीद नहीं, ग्रामीण खुद जुटे तैयारी में

जहां सरकारी स्तर पर केवल औपचारिकता नजर आ रही है, वहीं गांव के लोग अपने स्तर पर बचाव की तैयारियों में जुटे हैं। किसी ने मवेशियों का चारा जमा कर लिया है, तो किसी ने जरूरी सामान समेट लिया है। महिलाएं घरों के बाहर मिट्टी और बोरे डालकर नींव मजबूत कर रही हैं।

ग्रामीणों ने बताई अपनी पीड़ा – “हर साल डर के साए में जीते हैं”

🔹 माधव प्रसाद:
“हर साल शारदा नदी डराती है। अभी खेतों तक पानी नहीं पहुंचा, लेकिन बहाव बहुत तेज है। पिछली बार रातों-रात खेत बह गया था। इस बार पहले से तैयारी कर रहे हैं, लेकिन डर ज्यादा है।”

🔹 फूलचंद:
“ठोकरें अब लग रही हैं, मगर ये मई में ही हो जानी चाहिए थीं। बहाव शुरू होने के बाद गिट्टी डालने का क्या फायदा?”

🔹 अमलावती:
“रात में पानी आ गया तो बच्चों को लेकर कहां जाएंगे? सामान पहले ही बांध लिया है, पर ये काम सरकार को करना चाहिए, हम क्यों करें?”

🔹 लालता देवी:
“ठोकरें सिर्फ दिखावे की हैं। पिछले साल हमारे बगल वाली तीन दिन में बह गई थी। सरकार को तटबंध बनवाना चाहिए, फोटो खिंचवाने से कुछ नहीं होगा।”

🔹 टूडी लाल:
“अब खेत जोतने में भी डर लगता है। रोज नदी का बहाव देखकर बैल बाहर निकालते हैं। अगर पानी और बढ़ा तो पहले खेत जाएंगे, फिर घर।”

🔹 नगीना:
“सरकार रिपोर्ट मांगती है, जमीन पर कोई नहीं आता। ठोकरें बचाएंगी या नहीं, इसका भरोसा हमें नहीं है। हम खुद ही रखवाली कर रहे हैं।”

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