लखीमपुर खीरी : पलिया में फिर उफनी शारदा, लापरवाही ने बढ़ाया खतरा- सीएम परियोजना पर उठे सवाल

लखीमपुर खीरी के पलिया क्षेत्र में एक बार फिर बाढ़ का खतरा गहराने लगा है। मामूली बारिश के बाद ही शारदा नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ा और नदी का पानी सीधे पलिया शहर के किनारे अतरिया रेलवे पुल तक जा पहुंचा। हालात इस कदर बिगड़ गए कि रेलवे ट्रैक के नीचे से पानी का रिसाव शुरू हो गया, जिससे भीरा-पलिया रेलवे लाइन पर कटाव का खतरा मंडराने लगा है।

हर साल की तरह इस बार भी वही ‘दौरे’ और ‘दावे’ दोहराए जा रहे हैं। कभी कोई मंत्री आते हैं, तो कभी कोई अधिकारी निरीक्षण कर लौट जाते हैं। फिर वही परियोजनाओं की घोषणा और फोटो खिंचवा कर वाहवाही बटोरने की परंपरा दोहराई जाती है। लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि नतीजा फिर वही ढाक के तीन पात रहा। शहर की सुरक्षा को लेकर की गई घोषणाएं कागज़ों तक ही सीमित रह गईं।

इस बार मामला और गंभीर इसलिए हो गया है, क्योंकि खतरे की जड़ में वही योजना है जिसे खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की महत्वाकांक्षी परियोजना बताया गया था। 22 करोड़ 23 लाख रुपए की लागत से शारदा नदी में चैनेलाइजेशन का कार्य होना था, ताकि बाढ़ के पानी को नियंत्रित कर पलिया शहर को सुरक्षित किया जा सके। लेकिन इस योजना पर बाढ़ खंड के अधिकारियों की लापरवाही ने सवाल खड़े कर दिए हैं। कार्य अधूरा पड़ा है और जो हुआ है उसकी गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में है।

बढ़ते खतरे से आक्रोशित होकर रविवार को स्थानीय लोगों ने भीरा-पलिया मार्ग पर इकट्ठा हो गए। लोगो का कहना था कि जब योजनाएं केवल घोषणाओं तक सीमित हों और क्रियान्वयन केवल खानापूरी बनकर रह जाए, तो जनता को आखिर और कितना सहना होगा? वीडियो लोगों ने सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया है, जो अब क्षेत्र में चर्चा का विषय बन चुका है।

लोगों की मांग है कि इस गंभीर मामले में मुख्यमंत्री स्तर से उच्चस्तरीय जांच कराई जाए ताकि दोषियों की जवाबदेही तय की जा सके। बाढ़ खंड के जिन अधिकारियों की लापरवाही से करोड़ों की परियोजना फेल हो रही है, उन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। प्रदर्शनकारियों ने यह भी स्पष्ट किया कि शारदा नदी के किनारे जहां-जहां कटाव की आशंका है, वहां तत्काल ठोस सुरक्षा इंतजाम किए जाएं। इसके साथ ही रेलवे ट्रैक की सुरक्षा को प्राथमिकता पर लेकर इंजीनियरिंग कार्य युद्धस्तर पर शुरू करने की मांग भी की गई।

फिलहाल बाढ़ खंड के अधिकारी इस मामले पर मौन हैं और जिला प्रशासन से भी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। जनता के भीतर नाराजगी गहराती जा रही है और सवाल यह है कि क्या सरकार और प्रशासन को हर बार जनता के गुस्से का सामना करने के बाद ही जागना पड़ेगा?

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