
Jagannath Rath Yatra 2025 : पुरी की विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ की रथ यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि इसकी एक गहरी सामाजिक और ऐतिहासिक परंपरा भी है। यह सदियों से एकता का प्रतीक बनी हुई है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथ एक विशेष स्थान पर, यानी उनके एक मुस्लिम भक्त, सालबेग की मजार के सामने रुकते हैं। यह अनूठी परंपरा और इसकी कथा आज भी श्रद्धा और प्रेम का संदेश देती है।
यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है। कहा जाता है कि एक समय की बात है, सालबेग नामक एक मुगल सूबेदार का बेटा था। एक दिन वह अपने कामकाज से पुरी आया, जहां उसने भगवान जगन्नाथ की महिमा का श्रवण किया। उसकी श्रद्धा जाग उठी और उसने भगवान के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की।
मंदिर में मुस्लिम होने के कारण, सालबेग को वहां प्रवेश नहीं मिल पाया। बावजूद इसके, उसकी भक्ति कम नहीं हुई। वह भगवान के भजन, कीर्तन और पूजा-पाठ में लीन रहने लगा। धीरे-धीरे उसकी भक्ति इतनी गहरी हो गई कि वह भगवान के भक्तों और स्थानीय लोगों के बीच भी बेहद प्रिय हो गया।
कहानी के अनुसार, जब सालबेग बीमार पड़ गए, तो उसकी भक्ति और श्रद्धा का जज्बा कम नहीं हुआ। वह अपने अंतिम समय में भी भगवान जगन्नाथ की भक्ति में डूबा रहा। उसकी मजार उस स्थान पर बनी, जहां वह भक्ति और प्रेम में लीन रहता था।
इस परंपरा का उद्देश्य न केवल धार्मिक भावना को दर्शाना है, बल्कि यह भी साबित करता है कि भक्ति और प्रेम किसी भी धर्म, जाति या सीमा से ऊपर उठकर हो सकता है। हर वर्ष, रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ उस मजार के सामने रुकते हैं, जहां सालबेग की आत्मा विराजमान है। यह दृश्य श्रद्धालुओं में गहरा आस्था और प्रेम का संचार करता है।
यह परंपरा यह संदेश भी देती है कि धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं, बल्कि प्रेम और सौहार्द्रता ही सच्चे धर्म का आधार है। ऐसी कहानियां हमें एकता और मानवता का संदेश देती हैं, जो सदियों से चली आ रही है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।