
मॉस्को । रूस के पूर्व राष्ट्रपति एवं सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष दिमित्रि मेदवेदेव ने दावा करते हुए कहा है कि कई देश ईरान को सीधे अपने परमाणु-हथियार मुहैया कराने को तैयार बैठे हैं। यह बयान अमेरिका द्वारा ईरान पर किए गए हमले के बाद आया है, जिससे दुनियांभर में सनसनी फैल गई।
अमेरिका ने ईरान के फोर्डो, नतांज और इस्फहान स्थित तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर बी-2 बॉम्बर से हमला किया था। पेंटागन के अनुसार, इस ऑपरेशन में छह बी-2 स्पिरिट स्टील्थ बॉम्बर और परमाणु-संचालित पनडुब्बी यूएसएस जॉर्जिया ने हिस्सा लिया। फोर्डो पर बारह 30-हज़ार पाउंड वज़न वाले जीबीयू-57 ‘मैसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर’ बम गिराए गये, जबकि नतांज व इस्फहान पर कुल तीस टॉमहॉक क्रूज़ मिसाइलें दागी गईं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस ऑपरेशन को क़ामयाब बताते हुए कहा कि ईरान का संवर्द्धन ढांचा पूरी तरह नष्ट हो गया। जबकि ईरान ने बताया कि इस हमले में न तो कोई जन हानि हुई है और न ही न्यूक्लियर साइड को ही कोई खास नुक्सान हुआ है, रेडियोधर्मी रिसाव भी नहीं हुआ है।
इसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के प्रारम्भिक निरीक्षण से भी ट्रंप के दावे के उलट तस्वीर उभरती दिखी है। एजेंसी के मुताबिक किसी स्थल से रेडियोधर्मी रिसाव नहीं हुआ, यह जरुर है कि आधा दर्जन इमारतें इस हमले में क्षतिग्रस्त मिलीं हैं। ईरानी मीडिया पहले ही दावा कर चुका है कि उच्च समृद्ध यूरेनियम पहले ही सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया गया था।
हमला नाकाम बढ़ेगा तनाव
पूर्व राष्ट्रपति मेदवेदेव ने अमेरिकी कार्रवाई को बुरी तरह नाकाम बताते हुए कुछ प्रमुख परिणाम गिनाए हैं, जिनमें-
परमाणु ढांचा लगभग सलामत: फोर्डो, नतांज व इस्फहान में कोर फ़ैसिलिटी को मामूली नुकसान।
यूरेनियम संवर्द्धन जारी: फोर्डो में 83.7 प्रतिशत तक संवर्द्ध यूरेनियम अब भी मौजूद, हथियार-स्तर 90 प्रतिशत से बस एक कदम पीछे।
ईरानी नेतृत्व मज़बूत: हमले ने देश में राष्ट्रवाद को तीखा किया, शासन की लोकप्रियता बढ़ी।
अमेरिका पर जवाबी हमलों का ख़तरा: खाड़ी में अमेरिकी अड्डे व नौसैनिक जहाज़ संभावित निशाने।
क्षेत्रीय युद्ध का जोखिम: ज़मीनी अभियान की संभावना से पेट्रोलियम आपूर्ति पर असर पड़ सकता है।
सबसे चौकाने वाला दावा यह रहा कि कई देश ईरान को अपने परमाणु हथियार देने के लिए तत्पर हैं।
इन सब के बीच उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया, पर विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि ऐसा हुआ तो यह परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) की सबसे बड़ी चुनौती होगी और दुनिया को नई हथियार दौड़ की ओर धकेल देगा। इसी के साथ मेदवेदेव ने ट्रंप को शांति का नहीं, युद्ध शुरू करने वाला राष्ट्रपति करार दिया है।