
नवम्बर माह में बिहार विधानसभा चुनाव होने है। सारे दल अपने-अपने तरीके से जनता को लुभाने की कोशिश में लगे हुए है। बिहार में किसी भी दल को सफल होने के लिए जाति के अंकगणित समझना बेहद जरुरी है क्यूंकि बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों के ताने-बाने में बुनी हुई है। यहां चुनावी सफलता किसी विचारधारा या राष्ट्रीय मुद्दे से ज़्यादा जातीय समर्थन पर निर्भर करती है। यही वजह है कि हर चुनाव से पहले दलों के गठजोड़ और उम्मीदवारों की रणनीति जातिगत आधार पर तय होती है। इस लेख में हम बिहार की प्रमुख जातियों, उनके जनसंख्या अनुपात और राजनीतिक रुझानों को अच्छे से समझने की कोशिश करेंगे।
किसकी कितनी हिस्सेदारी
2023 में बिहार सरकार ने जाति आधारित जनगणना कराई थी, उन आंकड़े पर नजर डालें तो बिहार में….
- ओबीसी 27.13%
- अत्यंत पिछड़ा वर्ग उप-समूह 36%
- अनुसूचित जाति 19.65 प्रतिशत
- अनुसूचित जनजाति 1.68 प्रतिशत
- अनारक्षित यानी सवर्ण 15.52%
बिहार की हिन्दू आबादी 10.7 करोड़ है जिसमें 63% से ज्यादा हिस्सादारी OBC और EBC की है, जबकि एससी और एसटी कुल मिलाकर 21% हैं। बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है जिसमें 2.3 करोड़ मुस्लिमों की हिस्सेदारी है, यानी बिहार में कुल 17.7 प्रतिशत मुसलमान है।
सबसे ज्यादा संख्या होने के कारण सभी दल OBC और EBC को लुभाने में लगे हुए है। जातीय अंकगणित में कुछ ऐसी पार्टियां भी है जिनके अपने-अपने वोटर्स निर्धारित है और वो भी ऐसे जो कहीं हिल के नहीं जाने वाले… आइये इसे भी समझते है।
RJD/INDI गठबंधन का मुख्य वोटर
बिहार में लालू प्रसाद यादव से लेकर उनकी पत्नी राबड़ी देवी तक ने एक दशक से ज्यादा राज किया है, 1997 में जनता दल से अलग होकर लालू यादव ने राष्ट्रिय जनता दल नाम से पार्टी बनायी। लालू यादव की गिरफ्तारी के बाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी और 2005 में राष्ट्रपति शासन लगने तक मुख्यमंत्री रहीं। लालू यादव से लेकर राबड़ी देवी तक एक बात कॉमन दिखाई पड़ती है और वो है MY फैक्टर पर तवज्जो देना। बिहार की जनसंख्या में यादवों की भागीदारी 14.26 प्रतिशत और मुस्लिमों की 17.7 % है। बिहारी की राजनीती में लम्बे समय से मुस्लिम और यादव वोटर्स RJD के साथ दिखाई दिए है। वैसे भी महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, वाम) की ताकत MY समीकरण और गरीब-पिछड़ों पर आधारित है।
NDA का मुख्य वोटर
बिहार में NDA से जुड़ी प्रमुख पार्टियों की बात करें तो सीएम नितीश कुमार की JD(U), चिराग पासवान की लोजपा (लोक जनशक्ति पार्टी) और खुद भाजपा शामिल है। इनके मुख्य वोटर्स…
- BJP- सवर्ण, वैश्य, कुछ EBC
- JD(U)- कुर्मी, कोयरी, EBC
- लोजपा- पासवान, कुछ सवर्ण
मायने 15 प्रतिशत सवर्ण के साथ-साथ 20 प्रतिशत के करीब EBC वोटर्स भी NDA के हक़ में वोट करता है, इसके अलावा कुर्मी 2.9%, कोयरी के जरिये थोड़ा OBC वोटर भी JDU के पक्ष में गिरता है। बिहार में 6% कोयरी (कुशवाहा) वोटर्स है, उपेंद्र कुशवाहा के कमजोर होने के बाद ये वोट सीधा नितीश कुमार के खाते में गिरता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में जातीय समीकरणों की भूमिका निर्णायक रही, खासतौर पर भाजपा को सवर्ण और EBC का भरपूर समर्थन मिला। सीएम नितीश कुमार से लेकर पूरा NDA खेमा बिहार में मुस्लिमों को लुभाने की कोशिशें करता आया है पर कामयाब नहीं हो पाता। वक़्फ़ बिल के विरोध के बाद नितीश से लेकर तेजस्वी तक सबने बिहार में इफ़्तार पार्टी रखी थी पर उसमें ज्यादातर लोग नदारद ही रहे है। केंद्र ने ईद से पहले पूरे देश में सौगात-ए-मोदी किट बांटी पर कहीं न कहीं टार्गेट बिहार विधानसभा चुनाव ही था।
बिहार में टॉप 12 जातियों क्रम
- यादव- 14.26 प्रतिशत
- दुसाध- 5.31 प्रतिशत
- रविदास- 5.2 प्रतिशत
- कोइरी- 4.2 प्रतिशत
- ब्राह्मण- 3.65 प्रतिशत
- राजपूत- 3.45 प्रतिशत
- मुसहर- 3.08 प्रतिशत
- कुर्मी- 2.87 प्रतिशत
- भूमिहार- 2.86 प्रतिशत
- मल्लाह- 2.60 प्रतिशत
- बनिया- 2.31 प्रतिशत
- कायस्थ- 0.60 प्रतिशत
मुख्य जातियों का जिक्र हमने ऊपर किया, पर कौन सी जाति पार्टी किसे और क्यों वोट करती है आइये इसे समझने की कोशिश करते है।
- यादव (14.26%)
यादव RJD का सबसे मजबूत किला माने जाते है, इन्हे हिलाना किसी भी दल के बस की बात नहीं। चूँकि 1990 में यादवों को लालू प्रसाद यादव के जरिये सामाजिक सम्मान और राजनीतिक नेतृत्व मिला, जिसके बाद से ये सिलसिला RJD के पक्ष में चलता आया है। लालू के बाद राबड़ी देवी और अब तेजस्वी तक यादवों का सीधा समर्थन RJD के पक्ष में है। हालाँकि तेजस्वी पिछड़ा, दलित की राजनीति करते दिखाई देते है पर बीजेपी और JD(U) की कुछ योजनाओं का लाभ मिलने के कारण गरीब तबका नितीश और NDA का साथ नहीं छोड़ता।
- मुस्लिम (17.7%)
काफी प्रयासों के बावजूद मुस्लिम वोटर्स बीजेपी के खिलाफ एकजुट रहे है। ये वो मतदाता समूह है जो कभी भी भाजपा का वोटर नहीं रहा। हालाँकि कुछ स्थानों पर नितीश कुमार को मुस्लिमों का समर्थन मिला है पर ये एकदम न के बराबर है। बिहार के ही शाहनवाज हुसैन लम्बे समय से मुख्य धारा की राजनीति से दूर नजर आये है। इफ्तार पार्टी और वक़्फ़ संसोधन अधिनियम के बाद तो मुस्लिमों की नाराज़गी खुल कर सामने आयी है, ऐसे में ये वोटर्स RJD और कांग्रेस पक्ष में ही खड़ा दिखाई देता है।
- अति पिछड़ा वर्ग (EBC – 36%)
सरकारी योजनाओं के लाभ मिलने के कारण अति पिछड़ा वर्ग का वोटर ज्यादातर JD(U) की तरफ झुका हुआ नजर आता है, हमेशा से ही ये वर्ग JDU का ऐतिहासिक आधार रहा है। हालाँकि पिछले कुछ समय से ये वर्ग BJP और RJD दोनों में बंट रहा है। राशन कार्ड, आवास, शौचालय, जैसी योजनाओं के जरिये बीजेपी ने देशभर में गरीबो को साधा है।
- दलित (SC – 19.65%)
पासवान (दूसाध) समाज चिराग पासवान को अपना नेता मानते हुए NDA के साथ है। इसके अलावा अन्य दलित वर्ग RJD और JD(U) के बीच बंटा हुआ है। नितीश कुमार की विकास परियोजनाओं का का प्रभाव सबसे अधिक इसी वर्ग पर दिखा है।
- सवर्ण (15.5%)
पहले कांग्रेस और पिछले एक दशक से ज्यादा समय से पूरे देश में सवर्ण वोट BJP का सबसे मजबूत और वफादार आधार रहा है। हिंदुत्व का एजेंडा और आर्थिक आरक्षण EWS (10%) के बाद से बीजेपी को सवर्ण वोटर्स में और मज़बूती मिली है। बिहार में भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ BJP की रणनीति धुरी है।
बिहार राजनीति की जड़ें जाति से इतनी गहराई से जुड़ी हुई है कि बिना जातीय गठजोड़ के कोई भी दल सत्ता के दरवाजे तक नहीं पहुंच सकता। हालांकि नए मतदाता विकास और रोजगार जैसे मुद्दों की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन ग्राउंड पर जातीय समीकरण अब भी सबसे निर्णायक भूमिका निभाता है।
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