
Jalaun: साइकिल युग में प्राइवेट बस परिचालक के लिए बनाए गए नियम तेज रफ्तार भाग रही जिंदगी के युग में भी जबरदस्ती थोपे जाने से जहां आम यात्रियों के लिए कारण परेशानी का सबक बने है वही जन सामान्य लोगों ने प्राइवेट बसों का उपयोग करना स्वीकार कर दिया है।
आज से लगभग 45 वर्ष पूर्व जिला मुख्यालय उरई से जिले के प्रत्येक बड़े गांव कस्बा अथवा दूसरे शहरों के लिए प्राइवेट बसों की बहुत बड़ी संख्या थी । उरई से हमीरपुर, उरई से राठ, उरई से कालपी, उरई से औरैया, उरई रेंढ़र ,उरई से गोपालपुरा ,उरई से कोंच , उरई से नदीगांव ,उरई से कैलिया ,उरई से जगम्मनपुर, उरई से वाया ऊमरी रामपुरा, उरई से वाया बंगरा रामपुरा, उरई से भिंड, उरई से लहार, जालौन से औरैया, जगम्मनपुर से औरैया, लगभग दो सैकड़ा बसें अलग-अलग बस स्टैंड से अपने-अपने गंतव्य की और आती-जाती थी।
जनपद की अति पिछड़े एवं सबसे अधिक दूर ग्राम जगम्मनपुर से उरई के लिए 16 व औरैया के लिए चार अर्थात प्रतिदिन 20 बसें जाती थी और जगम्मनपुर में बीस बसें आती थी। उस समय बहुतायत लोग थोड़ी बहुत दूर के लिए पैदल और 50 – 60 किलोमीटर की यात्रा साइकिल से तय करते थे । उन दिनों घर में साइकिल होना भी गौरव का विषय एवं संपन्नता की निशानी थी। बड़े कस्बा अथवा शहरों में विरले लोग ही होते थे जिनके पास मोटरसाइकिल होती थी ।
जिनके पास कार (जीप) होती थी वह समाज के अति सम्मानित धनाढ्य या रईस लोग माने जाते थे । उस समय साइकिल से 50-60 किलोमीटर की दूरी का सफर आराम आराम से प्रायः 5-6 घंटे में हो जाता था लेकिन बसों से 50-60 किलोमीटर की दूरी 4 घंटे में तय होना आश्चर्यजनक और सुखद तथा सुविधाजनक माना जाता था, परिणाम स्वरूप अधिकांश लोगों ने इस सुखानुभूति में साइकिल से लंबा सफर करने की तुलना में बसों से सफर करना स्वीकार कर लिया शेष जिनके पास कोई साधन नहीं होता था वह भी मजबूरीवश इन्हीं बसों में सफर करने लगे।
बस ऑपरेटरों ने भी यूनियन बनाकर अपनी मंजिल तक पहुंचाने के लिए 15 किलोमीटर प्रति घंटा के नियम तय कर लिए। उस समय लोगों को बस की वह गति भी वर्तमान के जेट विमान जैसी प्रतीत होती थी। बस ऑपरेटर ,बस स्टाफ एवं यात्री सभी खुश थे । अपने प्रथम स्टैंड से चलने वाली बसों में सीट पाने की होड़ा-होड़ी रहती थी। सीट न मिल पाने पर बस के आगे हिस्से में बोनट पर बैठने की जगह मिल जाए तब भी बड़ी उपलब्धि थी ,अन्यथा गैलरी में खड़े होकर दरवाजे पर लटक कर अथवा बस के ऊपर छत पर बैठकर आना या पीछे के जाल पर लटक कर सफर करना आम सामान्य बात थी।
इस सफर में रास्ते में दरोगा जी का भी बड़ा महत्व होता था वह एक-दो सिपाहियों के साथ रास्ते में खड़े कहीं ना कहीं मिल ही जाते और छत पर बैठी तथा पीछे जाल पर लटकी सवारियों पर गालियों की बौछार
करते हुए डंडा मारकर अपने कर्तव्य का पालन करते फिर बस चालक और परिचालक को बुलाकर कान पकड़वाकर उठा बैठक लगवाते और संकल्प दिलवाते की कभी छत पर सवारी नहीं बैठाएंगे। उठा-बैठकी करते ड्राइवर कंडक्टर वेचारगी में वह सब कहते जो दरोगा जी व सिपाही जी कहलवा रहे होते , लेकिन आगे बढ़ते ही पुनः वही स्थिति हो जाती.. खैर यह विषय कहां से कहां जा रहा है।
बात हो रही है उस समय बसों के गंतव्य तक पहुंचने के टाइमिंग की। उदाहरण स्वरूप जगम्मनपुर से उरई 62 किलोमीटर तक पहुंचाने का समय कर सामान्यतः चार घंटा था , किसी बस का थोड़ा कम किसी बस का थोड़ा ज्यादा था लेकिन उस समय इस यात्रा अवधि को लोग सहज स्वीकार किए हुए थे। परिवर्तन हुआ लोगों के पास समय का अभाव एवं बढ़ते संसाधनों में प्रत्येक व्यक्ति को अपने गंतव्य तक पहुंचने की जल्दी है जो पुराने नियमों से चल रही बसों से संभव नहीं था।
लोगों ने मोटरसाइकिल, चार पहिया वाहन खरीदना प्रारंभ कर दिया। अब प्रत्येक व्यक्ति कम से कम 50 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से और लंबे सफर में 80-90 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से अपने गंतव्य तक पहुंचना चाहता है और पहुंच भी रहा है लेकिन वर्ष 1975 या उसके आसपास प्राइवेट बसों के बने हुए नियमों में कोई परिवर्तन नहीं आया वह अपनी कच्छप गति से ही चलना पसंद करती रही परिणाम स्वरूप कभी ठसाठस भर कर चलने वाली बसें अब खाली डिब्बे की तरह खड़बड़ा कर चल नहीं है । अब कोई इन बसों में बैठकर अपना वक्त बर्बाद नहीं करना चाहता , जो यात्री इन बसों में बैठकर यात्रा कर रहे हैं उनकी निश्चय ही कोई बड़ी मजबूरी होती है।
रोडवेज बसों के लिए बाधक
उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम की बसों की संख्या पर्याप्त होने पर उनके अधिकारी ग्रामीण क्षेत्र में यात्रियों को सुविधा देने के लिए बसों का संचालन करते हैं लेकिन प्राइवेट बस चालक स्थानीय होने के कारण रोडवेज बस स्टॉप से झगड़ा करके उन्हें सुचारू रूप से नहीं चलने देते हैं।
तमाम रूटों की बंद हुई प्राइवेट बसें
गलत ढंग से संचालित होने एवं समय के साथ अपने बेतुके नियमों में परिवर्तन ना करने के कारण उरई जालौन से चलने वाली तमाम रुटों की बसें लगभग बंद हो गई है। उदाहरण स्वरूप औरैया , रेंढ़र, गोपालपुर, ऊमरी रामपुरा, हमीरपुर रुट पर अब प्राइवेट बसों का संचालन नहीं हो रहा है । उरई जगम्मनपुर ,उरई कोंच , उरई जालौन रोड पर भी सीमित संख्या में बसें रह गई हैं और उन पर भी यात्रियों का टोटा पड़ा है।
रोडवेज से ना झगड़े नियम परिवर्तन करें
प्राइवेट बस परिवहन को जनपद जालौन में यदि अपना वजूद बचाए रखना है तो अपने नियमों में परिवर्तन करना चाहिए। उन्हें अपनी बसों की गति 15 किलोमीटर प्रति घंटा से 50 किलोमीटर प्रति घंटा करना पड़ेगी, बस स्टाफ द्वारा अपने फूहड़ व्यवहार में परिवर्तन करके यात्रियों से कुशल व्यवहार करना पड़ेगा। राज्य परिवहन निगम की बस चालक परिचालकों से विवाद करके नहीं उनसे प्रतिस्पर्धा करके यात्रियों को सुविधा देकर अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए काम करना होगा।
आम जनता का क्या कहना
जगम्मनपुर के डॉक्टर राजकुमार मिश्रा कहते हैं कि जितनी देर में जगम्मनपुर से कार द्वारा मथुरा-वृंदावन पहुंच जाते हैं उतनी देर में प्राइवेट बस से जगम्मनपुर से उरई नहीं पहुंच पाते
टीहर निवासी रविंद्र दीक्षित कहते हैं कि प्राइवेट बसों की कंडीशन ऐसी होती है कि पहने हुए साफ कपड़े भी गंदे हो जाते हैं या किसी कील या फटी चद्दर में उलझ पर फट जाते हैं
वरिष्ठ अधिवक्ता रामकुमार द्विवेदी अंढ़ाई कहते हैं कि यदि प्राइवेट बसों का गंतव्य तक पहुंचाने का समय सही हो जाए तो लोग निजी वाहनों से चलने की तुलना में प्राइवेट बस से चलना पसंद करेंगे
प्रज्ञादीप गौतम ग्राम प्रधान कहते हैं कि प्राइवेट बस का सफर विश्वसनीय नहीं है । जहां मन होता है वहीं खड़ी कर लेते हैं और पीछे आने वाली बस में सवारी का ट्रांसफर कर देते हैं जिससे लोगों को परेशानी होती है।
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