यूपी में बिजली के निजीकरण के खिलाफ जोरदार तैयारी, 22 जून को लखनऊ में होगी महापंचायत

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण के खिलाफ कर्मचारियों का आंदोलन और तेज हो गया है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने 22 जून को लखनऊ में ‘बिजली महापंचायत’ आयोजित करने का एलान किया है। इस महापंचायत में देशभर के किसान संगठनों और उपभोक्ता संगठनों के शामिल होने की संभावना है।

आंदोलन को मिल रहा व्यापक समर्थन

महापंचायत के एलान के बाद कई संगठनों ने समिति से संपर्क कर समर्थन देने की बात कही है। शनिवार को प्रदेश के सभी जिलों और राजधानी लखनऊ में बिजलीकर्मियों ने बैठकों के जरिए आंदोलन को तेज करने की रणनीति बनाई। समिति के पदाधिकारियों ने रविवार को हुई समीक्षा बैठक में कहा कि पिछले छह माह से चल रहा विरोध प्रदर्शन अब निर्णायक मोड़ पर है।

पदाधिकारियों का ऐलान: “निजीकरण किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं”

बैठक में स्पष्ट किया गया कि बिजली व्यवस्था के निजीकरण को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा। संघर्ष समिति ने कई बिंदुओं पर सरकार से जवाब भी मांगा है:

संघर्ष समिति के सवाल

  1. क्या निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए 45% संविदा कर्मचारियों की छंटनी की जा रही है?
  2. जब सरकार कह रही है कि निजीकरण नहीं हो रहा, बल्कि सुधार हो रहे हैं, तो 51% हिस्सेदारी निजी हाथों में क्यों दी जा रही है?
  3. क्या 51% हिस्सेदारी देना मालिकाना हक नहीं माना जाता?
  4. 2017 के भाजपा संकल्प पत्र में गरीबों को राहत देने की बात कही गई थी, तो अब सब्सिडी को बोझ क्यों बताया जा रहा है?
  5. जब एटी एंड सी नुकसान 41% से घटकर 16.5% हो गया है, तो फिर और सुधार की जरूरत क्यों बताई जा रही है?

दिल्ली में 9 जून को राष्ट्रीय बैठक

इस बीच, राष्ट्रीय स्तर पर भी आंदोलन की तैयारी जोरों पर है। 9 जून को दिल्ली में नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी की अहम बैठक होगी। इसमें उत्तर प्रदेश के आंदोलन की समीक्षा के साथ-साथ देशभर में आंदोलन को एकजुट करने की रणनीति बनाई जाएगी।

इस बैठक में कई राष्ट्रीय संगठन भाग लेंगे:

  • ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन
  • ऑल इंडिया पॉवर डिप्लोमा इंजीनियर्स फेडरेशन
  • एटक, सीटू, इंटक से जुड़े बिजली कर्मचारी संगठन
  • ऑल इंडिया पॉवर मेंस फेडरेशन

क्या कहती है सरकार?

ऊर्जा मंत्री एके शर्मा का कहना है कि राज्य में बिजली व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार हुए हैं, और एटी एंड सी हानियों में कमी इसका प्रमाण है। हालांकि, कर्मचारियों का कहना है कि सुधार के नाम पर निजीकरण की चाल स्वीकार नहीं की जाएगी।

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