
000 सिर्फ 11 महीने में आया फैसला 000
– छह बरस की सौतेली भतीजी की हत्या के दोषी पर 15.30 लाख जुर्माना
– कोर्ट ने सोते हुए बच्चों पर हमले को जघन्य घटना मानकर सजा सुनाई
कानपुर देहात। भोगनीपुर के पिपरी गांव में 11 महीने पहले समूचे परिवार को मौत के घाट उतारने की कोशिश करने वाले सनकी को भतीजी की हत्या के जुर्म में फांसी की सजा सुनाई है। हत्यारे दीपू ने अपनी दूसरी पत्नी और सौतेले बच्चों के साथ-साथ पत्नी के देवर तथा उसके परिवार को एक ही रात में बांका से ताबड़तोड़ हमला करते हुए मौत की नींद सुलाने का प्रयास किया था। इस हरकत में सनकी दीपू की मासूम भतीजी काव्या की मौत हो गई थी, जबकि परिवार के छह अन्य सदस्य लहूलुहान हो गए थे। इस घटना को कोर्ट ने बेहद गंभीर मानते हुए दोषी दीपू को को फांसी की सजा सुनाई है। जिले में फांसी की सजा का यह पहला मामला है।
विधवा पूजा ने दीपू को अपनाकर आशियाना दिया था
दरअसल, भोगनीपुर के पिपरी गांव की रहने वाली पूजा ने पहले पति की मौत के बाद औरैया जिले के दिबियापुर कस्बे के मुरलीपुरवा के दीपू के दूसरा ब्याह रचाया था। दीपू के पास रहने की मुकम्मल व्यवस्था नहीं थी, लिहाजा पूजा ने उसे अपने पुराने घर में पहले पति से पैदा हुए दो बच्चे उमंग और सूरज के साथ रहने के लिए राजी कर लिया था। घटना वाले दिन यानी 22 जुलाई 2024 की रात खाना खाने के बाद पूजा उमंग और सूरज के साथ कमरे में सोने गई तो दीपू ने कुछ देर बाद अंदर आने का हवाला देकर कमरे का दरवाजा खुला रखने के लिए कहा। देर रात दीपू उठा और बांका लेकर पहले पूजा और सौतेले बच्चों उमंग और सूरज पर ताबड़तोड़ वार किए। इसके बाद छत पर पहुंचा, जहां पूजा की पहली शादी का देवर महेंद्र, उसकी पत्नी वीणा, बेटे सूर्यांश, छह वर्षीय बेटी काव्या पर हमला शुरू कर दिया। हमले में काव्या की मौके पर ही मौत हो गई थी। मामले की सुनवाई करते हुए अपर जिला सत्र न्यायाधीश की अदालत ने गुरुवार को इतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने अभियुक्त दीपू को घटना का दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई। सहायक शासकीय अधिवक्ता विवेक त्रिपाठी ने बताया कि अदालत ने 15 लाख 30 हजार रुपये अर्थदंड भी लगाया। इस रकम की 90 प्रतिशत राशि पूजा और महेंद्र के परिवार को देने के आदेश दिए हैं।
जिले में फांसी का पहला मामला
घटना के बाद बीएनएस के तहत हत्या, जानलेवा हमले समेत गंभीर धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की गई थी। चार महीने पर पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की थी। सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं की दलील काम नहीं आईं। अभियोजन ने मजबूत साक्ष्य रखे और कोर्ट के समक्ष साबित किया कि निर्दोष मासूम बच्चों की हत्या करने के इरादे से बांका से वार किए गए थे। तीनों बच्चों व पूजा और महेंद्र के सिर, चेहरे आदि में 70 से 90 टाकें लगाए गए थे। उनकी बामुश्किल जान बची। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए जघन्य अपराध माना। जिले में फांसी की सजा का यह पहला मामला बना है। कोर्ट के समक्ष सहायक शासकीय अधिवक्ता ने इसे विरलतम से विरल मानदंडों वाला अपराध बताते हुए कहा कि सोते हुए बच्चों और महिला पर बांका से अत्यधिक क्रूरता से हमला किया गया। यह अत्यंत शैतानी, विद्रोही, निंदनीय और पूर्व नियोजित घटना थी। जिसे विरलतम अपराध की श्रेणी में मानने योग्य है। बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि दोष सिद्ध अभियुक्त बेहद सामान्य परिवार से है, उसका कोई अपराधिक इतिहास नहीं है, इसलिए उसे न्यूनतम दंड से दंडित किया जाए।