
Bahraich: धीरे-धीरे नगर पंचायत जरवल के 14 वी शताब्दी की एतिहासिक धरोहरों पर भी ग्रहण लग चुका हैं। जिसको लेकर जरवल की ई ओ खुशबू यादव ने झाड़-झंखाड़ के बीच दो-तीन दिन पहले वहां जाकर पहले तो जमीनी सच देखा फिर कैसे एतिहासिक धरोहर का कैसे सौंदर्यीकरण करवाया जाए पर मंथन किया जो एक बड़ा सवाल उभर कर सामने खड़ा हो गया। वैसे कस्बे के ऐतिहासिक रानीताल व सतीचौरा पर निकाय प्रशासन के देख-रेख के आभाव में काफी कुछ लोगो ने अवैध निर्माण भी कर चुके हैं जिस पर यदि बुल्डोजर कारवाही हुई तो निकाय की सरकारी जमीन तो खाली ही होगी ही एतिहासिक धरोहरों का कायाकल्प भी हो सकता हैं। जिसका भागीरथी प्रयास भी जरवल की ई ओ खुशबू यादव ने शुरू भी कर दिया है।
कैसे पड़ा देवी सतीचौरा का नाम
नगर के पूर्व स्थित रानी तालाब को चौदहवी शताब्दी के पूर्वाद्ध में भर राजा छत्रसाल की पत्नी ने खोदवाया था।पूजा-अर्चना के लिए पूर्व दिशा में देवी मंदिर की स्थापना कराई थी।नाग पंचमी पर्व पर वहां बड़ा यज्ञ होता था। जो मेले का रूप परवर्तित हो जाता था। दूर-दराज से भर्र समुदाय के लोग भी इस धार्मिक आयोजन में सम्मिलित भी होते थे। सती देवी के मंदिर तथा सती चौरा का जीर्णोद्धार नगर के छेदीलाल निषाद ने कराया।इसका उद्घाटन 12 दिसंबर 1993 को क्षेत्रीय सांसद लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने किया।रानीताल के उत्तर में ईंटों का टीला था। जो सतीचौरा के नाम जाना जाता था।सूत्रों की माने तो रानीताल के पूर्व एवं दक्षिण में लगा खडंजा पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। देवी मंदिर तथा रानीताल जाने वाला मार्ग पूरी तरह से अतिक्रमण का शिकार है। मार्ग को 1993 में तहसीलदार कैसरगंज ने कानूनगो एवं लेखपाल के साथ नपाई कराकर आवागमन के लिए खोल दिया था।
अब तो इतिहास के पन्नो तक ही सीमित
सूत्रों की माने तो 1304 ईसवी में ईरान के सय्यद अबू तालिब के वंशज सय्यद जिक्रिया एवं भर्र राजा छत्रसाल के मध्य हुए युद्ध में उनके पुत्र वीरगति को प्राप्त हुए थे। जिनकी पत्नी अपने पति के साथ चिता में भस्म हो गई थी। बाद में यही स्थान सती चौरा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महिलाएं अब भी नाग पंचमी, विवाह के अतिरिक्त मुंडन तथा विभिन्न पर्वो पर यहां पूजा-अर्चना करती है। दिसंबर 1978 में प्रदेश सरकार मंत्री स्व.बाबूलाल वर्मा ने केंद्रीय पर्यटन मंत्री से मिलकर ऐतिहासिक रानीताल को पर्यटन केंद्र बनाने की मांग की थी लेकिन नतीजा
शून्य होकर रह गया।
कार्य योजना तो कई बार बनी पर अमल नहीं
सन 1984 में नगर पंचायत ने रानीताल, देवी मंदिर, सती चौरा आदि ऐतिहासिक स्वलों के पुनरुद्धार के लिए बजट बनाकर शासन को भेजा, पर डी एम पंकज कुमार के जाने के बाद योजना ठंडे बस्ते मे पड़ गई।जबकि पर्यटन केंद्र बनाने की संस्तुति भी डी एम द्वारा की गई थी।और छत्रसाल स्मारक समिति ने केंद्रीय एवं प्रदेशीय पर्यटन मंत्री को पत्र भेजकर ऐतिहासिक स्थल के उद्धार की मांग की है।
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