पुस्तकें नहीं, बंदूकें : आर्थिक बदहाली के बीच पाकिस्तान ने फिर बढ़ाया रक्षा बजट

इस्लामाबाद : आर्थिक मोर्चे पर बदहाल पाकिस्तान ने अपने रक्षा खर्च को 18% बढ़ाकर 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक कर दिया है। यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब देश 73% से अधिक कर्ज के बोझ, 38% महंगाई, और 25 अरब डॉलर के व्यापार घाटे से जूझ रहा है। वहीं, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी क्षेत्रों को अब भी पाकिस्तान GDP का नाममात्र हिस्सा आवंटित कर रहा है।

संकट में घिरी अर्थव्यवस्था, फिर भी बढ़ा रक्षा खर्च

पाकिस्तान का यह नया रक्षा बजट उसकी GDP का 2.3% है, जो कि भारत, चीन और कई यूरोपीय देशों से भी अधिक है। 2017 से 2025 तक पाकिस्तान के रक्षा खर्च में 12.6% की वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई है, जबकि भारत में यह दर करीब 8% रही।

इसके उलट, शिक्षा को GDP का मात्र 2% और स्वास्थ्य को सिर्फ 1.3% दिया गया है, जो यह दर्शाता है कि सरकार की प्राथमिकताएं आम जनता की बजाय सैन्य शक्ति पर केंद्रित हैं।

भारत के साथ तनाव और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की पृष्ठभूमि

22 अप्रैल को भारत के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद भारत द्वारा चलाया गया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ दोनों देशों को टकराव के कगार पर ले आया। हालांकि सीजफायर के जरिए बड़े युद्ध को रोका गया, पर पाकिस्तान ने इसे आधार बनाकर अपने रक्षा बजट को और बढ़ा दिया।

कर्ज में डूबा मुल्क, फिर भी सेना को छूट

IMF के मुताबिक, पाकिस्तान का लोन-से-जीडीपी अनुपात 73.6% है। विदेशी मुद्रा भंडार इतना कम है कि देश मुश्किल से तीन महीनों का आयात कर सकता है। बावजूद इसके, पाकिस्तान सरकार ने सेना को मिलने वाली टैक्स रियायतें और बजट बढ़ाकर यह साबित कर दिया है कि आर्थिक प्राथमिकताएं कहीं और हैं।

सेना का व्यवसायिक साम्राज्य – ‘मिलबस’

पाकिस्तान में सेना सिर्फ रक्षा नहीं, बल्कि व्यवसाय का भी बादशाह है। ‘मिलबस’ (मिलिट्री-बिजनेस) शब्द को पाकिस्तानी विद्वान आयशा सिद्दीका ने गढ़ा, जो सेना की व्यावसायिक सत्ता का प्रमाण है।

  • फौजी फाउंडेशन,
  • आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट,
  • बहरिया फाउंडेशन,
  • डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी (DHA) जैसे उपक्रमों के माध्यम से सेना रियल एस्टेट, बैंकिंग, शिक्षा, मीडिया और कृषि क्षेत्रों में गहरी पैठ बना चुकी है।

कुछ अनुमानों के अनुसार, सेना देश की 12% भूमि पर नियंत्रण रखती है। इन्हें टैक्स में छूट और सरकारी निरीक्षण से छूट भी मिली होती है, जिससे स्थानीय कारोबारियों के लिए प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाता है।

ये भी पढे़ – CM स्टालिन का बड़ा बयान : नीति आयोग की बैठक में शामिल होकर विकास की बात की, न कि समझौते की

वास्तविक सत्ता सेना के पास

पाकिस्तान में सेना ने इतिहास में करीब तीन दशकों तक प्रत्यक्ष शासन किया है और अब भी लोकतांत्रिक सरकारों के पीछे असली शक्ति वही है। चाहे प्रधानमंत्री कोई भी हो, असली निर्णय शक्ति और नीति-निर्धारण सेना के इशारों पर ही चलता है।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें