
जबलपुर/पन्ना : मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में पन्ना जिले में पदस्थ न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMFC) के खिलाफ दर्ज दुष्कर्म और दहेज प्रताड़ना के मामले में एफआईआर को निरस्त कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की युगलपीठ ने कहा:
“दो साल तक चले सहमति-आधारित प्रेम संबंध के बाद दर्ज की गई आपराधिक शिकायत कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है। पीड़िता शिक्षित और सरकारी कर्मचारी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि संबंध बिगड़ने के कारण यह मामला दर्ज किया गया।”
रिश्वत मामले की जानकारी मिलते ही टूटा रिश्ता
याचिकाकर्ता मनोज सोनी ने अदालत को बताया कि वर्ष 2015 में युवती से विवाह प्रस्ताव रखा गया था, और 14 फरवरी 2018 को सगाई की अंगूठी पहनाई गई। लेकिन जब उन्हें पता चला कि युवती के खिलाफ रिश्वत लेने का आपराधिक मामला दर्ज है, तो उन्होंने शादी से इंकार कर दिया। इसके बाद युवती ने अजयगढ़ थाना (पन्ना) में दुष्कर्म और दहेज अधिनियम के तहत मामला दर्ज करवाया।
कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में एफआईआर रद्द की
एफआईआर में यह भी आरोप था कि शादी का झांसा देकर संबंध बनाए गए और दहेज की मांग पूरी न होने पर विवाह से इंकार किया गया। परंतु कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि:
“दहेज की मांग के संबंध में कोई प्रत्यक्ष या ठोस साक्ष्य नहीं मिले हैं। इससे प्रतीत होता है कि युवती द्वारा अनावश्यक रूप से उत्पीड़न करने का प्रयास किया गया है।”
जांच में देरी पर अदालत ने जताई नाराजगी
जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने आदेश देते हुए कहा:
“एसआईटी की अध्यक्षता एक आईजी स्तर के अधिकारी करेंगे और इसमें एक एसपी स्तर की महिला अधिकारी शामिल की जाएगी। समिति में जबलपुर जिले के किसी अधिकारी को नहीं रखा जाएगा।”
बैठक में अश्लील इशारों और अनुचित टिप्पणी का आरोप
पीड़िता, जो विश्वविद्यालय में महिला अधिकारी हैं, ने आरोप लगाया कि 21 नवंबर 2024 को एक आधिकारिक बैठक के दौरान कुलपति ने अश्लील इशारे और अभद्र टिप्पणियाँ कीं। RTI के तहत सीसीटीवी फुटेज मांगे गए, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें उपलब्ध नहीं कराया।
पीड़िता की याचिका पर हाई कोर्ट ने दी राहत
पीड़िता की ओर से अधिवक्ता आलोक बागरेचा ने याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार, DGP को तीन दिनों के भीतर SIT का गठन करना होगा।
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न्यायपालिका की सक्रियता का संकेत
इन दोनों मामलों में हाई कोर्ट के फैसले स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि राज्य की न्यायपालिका न सिर्फ झूठे मामलों को खारिज कर रही है, बल्कि गंभीर आरोपों की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए सख्त निर्देश भी दे रही है। इससे एक ओर कानून का सम्मान बना रहेगा, तो दूसरी ओर पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में मजबूती मिलेगी।