
नई दिल्ली : वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 (Waqf Amendment Act, 2025) को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि वक्फ इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है, बल्कि एक इस्लामी परंपरा मात्र है। सरकार का कहना है कि वक्फ की व्यवस्था धर्म के मूल स्वरूप का अनिवार्य हिस्सा नहीं मानी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ – जिसमें मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह शामिल थे – के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए यह बयान दिया।
याचिकाकर्ताओं की आपत्ति और केंद्र का जवाब
इससे पहले मंगलवार को सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया था कि नया वक्फ कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, का उल्लंघन करता है।
इसके जवाब में तुषार मेहता ने कहा:
“वक्फ एक इस्लामिक कॉन्सेप्ट जरूर है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। अगर कोई मुसलमान वक्फ नहीं करता, तो क्या वह मुसलमान नहीं रहेगा? नहीं – यही सुप्रीम कोर्ट का परीक्षण है कि कोई परंपरा आवश्यक धार्मिक प्रथा है या नहीं।”
चैरिटी हर धर्म में – लेकिन जरूरी नहीं
एसजी मेहता ने यह भी कहा कि दान या चैरिटी का विचार सिर्फ इस्लाम में नहीं, बल्कि हिंदू, सिख और ईसाई धर्म में भी मौजूद है, लेकिन इसे कहीं भी “अनिवार्य धार्मिक प्रथा” नहीं माना गया है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों के अनुसार, धार्मिक कार्यों में से केवल उन्हीं को विशेष सुरक्षा मिलती है, जो धर्म का अनिवार्य हिस्सा हों।
वक्फ का कानूनी आधार और मौलिक अधिकार की बहस
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वक्फ को पहली बार 1954 के वक्फ अधिनियम में कानूनी मान्यता दी गई थी। उससे पहले यह बंगाल वक्फ एक्ट के तहत संचालित होता था। उन्होंने तर्क दिया कि:
“अगर कोई अधिकार केवल कानून द्वारा दिया गया है, तो उसे राज्य द्वारा वापस भी लिया जा सकता है। वक्फ बाय यूजर कोई मौलिक अधिकार नहीं है।”
क्या है वक्फ संशोधन अधिनियम 2025?
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन, निगरानी और विवाद निवारण की प्रक्रिया में कई बदलाव किए गए हैं। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि ये संशोधन समुदाय के अधिकारों में कटौती करते हैं और धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित करते हैं।
आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अब विस्तृत सुनवाई करेगा, जिसमें यह तय किया जाएगा कि क्या वक्फ एक ऐसा धार्मिक अभ्यास है जिसे संविधानिक संरक्षण मिलना चाहिए, या यह महज़ एक कानूनी व्यवस्थात्मक ढांचा है जिसे बदला जा सकता है।