
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी सबसे पहले जिस संगठन TRF (द रेसिस्टेंस फ्रंट) ने ली थी और बाद में दावा किया कि उनका सोशल मीडिया अकाउंट हैक हो गया था अब उसी संगठन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी सूची में शामिल कराने के लिए भारत ने अपनी कोशिशें तेज़ कर दी हैं। TRF को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने के लिए भारत ने कूटनीतिक स्तर पर बड़ा कदम उठाया है। इसी सिलसिले में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने संयुक्त राष्ट्र(UN) के शीर्ष आतंकवाद-रोधी अधिकारियों से मुलाकात कर इस मुद्दे को ज़ोरशोर से उठाया।
UNOCT के अवर महासचिव व्लादिमीर वोरोनकोव और CTED की सहायक महासचिव नतालिया घेरमन ने भारत को हरसंभव सहयोग का आश्वासन दिया। उन्होंने यूएन की वैश्विक आतंकवाद-रोधी रणनीति और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को लागू करने में भारत की भूमिका की सराहना की। साथ ही, उन्होंने पहलगाम हमले में मारे गए 26 मासूम नागरिकों के लिए संवेदना प्रकट करते हुए आतंकवाद के खिलाफ एकजुट प्रयासों की आवश्यकता दोहराई।
UN के सदस्य देशों के राजनयिकों से भी मुलाकात
TRF को आतंकी घोषित कराने की मुहिम अब सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों से बात तक सीमित नहीं है। भारत ने कूटनीति का दायरा बढ़ाते हुए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के राजनयिकों से भी संपर्क साधा है। इस प्रयास में भारतीय प्रतिनिधिमंडल, जिसमें खुफिया एजेंसियों से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे, ने न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में TRF को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन घोषित करने की भारत की मांग को मजबूती से सामने रखा।
यह दलील दी गई कि TRF न केवल खुद एक हिंसक संगठन है, बल्कि उसका सीधा संबंध पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा (LET) से है—जिसे संयुक्त राष्ट्र पहले ही एक वैश्विक आतंकी संगठन घोषित कर चुका है। इस संदर्भ में, प्रतिनिधिमंडल ने सुरक्षा परिषद की 1267 समिति की निगरानी टीम से विशेष मुलाकात की। यह वही समिति है जो प्रतिबंधित आतंकी संगठनों और व्यक्तियों की सूची तय करती है।
सूत्रों के अनुसार, भारत ने इस समिति को TRF के खिलाफ कई सबूत सौंपे जिनमें हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले और संगठन की अन्य संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी शामिल थी। समिति सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव 1267 के तहत काम करती है, जो दाएश, अल-कायदा और उनके सहयोगियों के खिलाफ वैश्विक कार्रवाई की रूपरेखा तय करता है। भारत चाहता है कि TRF को भी इसी सूची में शामिल किया जाए।
संयुक्त राष्ट्र(UN) आतंकवाद-रोधी कार्यालय (UNOCT) के मुताबिक, भारत और यूएन एजेंसियों के बीच सहयोग के कई महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जैसे साइबर सुरक्षा, आतंकी यात्रा नेटवर्क को तोड़ना, आतंकवाद पीड़ितों को सहयोग देना और टेरर फंडिंग पर लगाम कसना। इसी दौरान, दोनों पक्षों ने तकनीक के ज़रिए फैलते आतंकवाद पर भी गंभीर चर्चा की खासकर उन नई तकनीकों को लेकर जिनका इस्तेमाल आतंकी योजनाओं में हो रहा है। यह मुद्दा 2022 के दिल्ली घोषणापत्र में भी प्रमुखता से सामने आया था, जब भारत की अध्यक्षता में यूएन की आतंकवाद-रोधी समिति की बैठक दिल्ली में हुई थी। उस बैठक में ड्रोन जैसे मानवरहित हथियारों, और क्रिप्टो जैसी नई वित्तीय तकनीकों के आतंकवाद में इस्तेमाल पर चिंता जताई गई थी, और इससे निपटने के लिए वैश्विक दिशानिर्देश बनाने की बात रखी गई थी।
भारत ने यह भी याद दिलाया कि लश्कर-ए-तैयबा को 2005 में ही वैश्विक आतंकी संगठन घोषित किया जा चुका है। तब से अब तक इस पर कई तरह के प्रतिबंध लागू किए जा चुके हैं जिनमें 27 संबंधित नाम शामिल हैं, जैसे पासबा-ए-कश्मीर और जमात-उद-दावा। लश्कर के 12 प्रमुख सदस्य, जिनमें इसका सरगना हाफिज सईद भी शामिल है, और इससे जुड़े तीन संगठनों पर भी बैन लगाया गया है। इन प्रतिबंधों में उनकी संपत्ति जब्त करने से लेकर यात्रा पर पाबंदी तक शामिल हैं।
कैसे किसी संगठन को घोषित किया जाता है वैश्विक आतंकी?
दुनिया के सबसे प्रभावशाली मंच, संयुक्त राष्ट्र में किसी संगठन को “वैश्विक आतंकवादी” घोषित करना सिर्फ एक औपचारिकता नहीं होती यह एक जटिल लेकिन सख्त प्रक्रिया होती है, जिसमें कूटनीति, सबूत और रणनीति की कसौटी पर हर कदम को परखा जाता है। सबसे पहले, सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों में से कोई एक देश किसी संगठन या व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव रखता है। इस प्रस्ताव पर बाकी सभी सदस्य देश अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। लेकिन असली कसौटी तब शुरू होती है, जब पांच स्थायी सदस्य अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन इस पर अपनी सहमति या असहमति जताते हैं। चूंकि इनके पास वीटो शक्ति होती है, इसलिए एक भी देश अगर रोक (वेटो) लगा देता है, तो प्रस्ताव ‘लंबित’ मान लिया जाता है।
लंबित प्रस्तावों पर तीन महीने की समयावधि के भीतर उस देश को अपना स्टैंड क्लियर करना होता है क्या वह अब भी अपने वीटो पर कायम है या पीछे हटने को तैयार है? अगर कोई वीटो हटा लिया जाता है, तो संयुक्त राष्ट्र सचिवालय संबंधित समिति को इसकी जानकारी देता है। फिर यह मामला सीधे ‘ISIL (दाएश) और अल-कायदा प्रतिबंध समिति’ को सौंप दिया जाता है, जो अंतिम फैसला सुनाती है।
प्रतिबंध लगने के बाद क्या होता है?
जब किसी संगठन या व्यक्ति पर वैश्विक आतंकवादी का ठप्पा लग जाता है, तो इसके कई बड़े और निर्णायक परिणाम होते हैं:
यात्रा पर रोक: वह दुनिया के किसी भी देश में स्वतंत्र रूप से नहीं जा सकता। कोई भी देश उसे वीजा नहीं देगा और शरण नहीं देगा।
आर्थिक पाबंदियां: उसके बैंक खाते सील कर दिए जाते हैं। वह न कोई व्यापार कर सकता है, न आर्थिक लेन-देन।
संपत्ति जब्ती: उसकी हर वित्तीय संपत्ति जब्त की जा सकती है। उससे जुड़ी संस्थाएं भी बैन की जाती हैं।
आतंकी सहयोगियों पर भी कार्रवाई: जो भी व्यक्ति या संस्था उस संगठन को फंडिंग या समर्थन देती है, उन्हें भी दंडित किया जा सकता है।
भारत में आतंकवादी संगठन घोषित होने पर क्या होता है?
भारत में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA के तहत, अगर किसी संगठन को आतंकवादी घोषित किया जाता है, तो उसके सभी सदस्यों और उससे जुड़े लोगों पर भी कार्रवाई हो सकती है।
UAPA की धारा 38: जो व्यक्ति आतंकी संगठन से जुड़ा है, उसे 10 साल तक की जेल हो सकती है।
धारा 20: आतंकी गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी करने वाले को आजीवन कारावास तक की सजा दी जा सकती है।
धारा 24A: केंद्र सरकार उस संगठन की संपत्ति जब्त कर सकती है। हालांकि संगठन एक समीक्षा याचिका दाखिल कर सकता है, जिसकी सुनवाई किसी उच्च न्यायालय के मौजूदा या पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में होती है।