लोंगेवाल युद्ध की कहानी… जब 120 भारतीय जवानों ने 4000 पाकिस्तानी सैनिकों को उलटे पैर लौटाया

लोंगेवाल युद्ध : विश्व में भारतीय सेना चीता कही जाती ही। इसके पीछे तर्क भी है, भारत की फौज चीते की तरह दुश्मन को खदेड़ देती है। फिर चाहे दुश्मन देश की फौज की संख्या भारतीय फौज से चार गुना अधिक ही क्यों न हो। कुछ दिन पहले ही भारतीय सेना ने आतंकवाद के खिलाफ शुरू किए ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक की थी। जिसके बाद पाकिस्तानी सेना ने सीधे तौर पर भारतीय फौज से जंग छेड़ दी और अपनी फजीहत भी करवा ली। भारतीय सेना ने केवल अपनी सैन्य शक्ति के प्रदर्शन से ही पाकिस्तान में तबाही मचा दी। मगर ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब भारतीय सेना ने दुश्मन फौज के छक्के छुड़ाएं हों। आपको याद होगा भारत और पाकिस्तान का लौंगेवाल युद्ध… जिसमें भारत के केवल 120 जवानों ने ही पाकिस्तान की संख्या में दस गुना बड़ी फौज को खदेड़कर उलटे पैर लौटा दिया था।

बात 1971 के भारत-पाक युद्ध की है…

पाकिस्तान से भारत की तनातनी आज से नहीं बल्कि लंबे समय से रही है। भारत और पाकिस्तान के बीच जब 1971 में युद्ध हुआ था, तब लोंगेवाल जंग ने इतिहास में भारतीय सेना के गौरव को अमर कर दिया था। लोंगेवाल युद्ध भारतीय सेना ने केवल जीती नहीं थी बल्कि इसे भारतीय फौज की शक्ति का परिचय विश्व को भी दे दिया था। लोंगेवाल युद्ध में भारतीय सेना के केवस 120 सैनिकों ने पाकिस्तान के चार हजार सैनिकों को बिना किसी बड़े व भारी हथियारों के ही खदेड़ दिया था। उस समय पाकिस्तानी सैनिकों के पास 46 टैंक और भारी हथियार थे, फिर भी 120 भारतीय जवानों की दहाड़ के आगे कांप उठी और पीछे हटने पर मजबूर हो गई।

लोंगेवाल युद्ध में मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने संभाली थी सेना की कमान

पाकिस्तान के 4000 सैनिकों के खिलाफ लोंगेवाल युद्ध की कमान भारतीय सेना के मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने संभाली थी। केवल 120 जवानों के साथ ही वह इस युद्ध में चार हजार दुश्मनों के साथ भिड़ गए थे। मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी पंजाब राइफल्स की 23वीं बटालियन के अधिकारी थे। 1971 के भारत-पाक युद्ध की शुरुआत में जब पाकिस्तानी सेना ने राजस्थान के लोंगेवाला में रामगढ़ और जैसलमेर जिले के तनोट माता के पास आक्रमण किया था तब मेजर कुलदीप सिंह ने पंजाब राइफल्स की टुकड़ियों का नेतृत्व किया था। उस समय मेजर के पास केवल 120 ही जवान थे, अपने जवानों के साहस पर विश्वास करते हुए मेजर चांदपुरी ने अपनी चौकी की रक्षा भी की थी।

22वीं आर्मर्ड रेजिमेंट के समर्थन से 2000 से अधिक सैनिकों वाली पाकिस्तानी 51वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड की मजबूत सेना पूरी रात टिके रही। मेजर चांदपुरी और उनकी टीम ने संपूर्ण रात पाक सेना को नियंत्रण में रखा, जब तक कि भारतीय वायु सेना ने हवाई सहायता नहीं पहुंचाई। पाकिस्तानी टैंक घने रेगिस्तान में फंसे और आगे नहीं बढ़ सके। सीमित संसाधनों के साथ, मेजर चांदपुरी ने अपने सैनिकों को बंकर से दूसरे बंकर तक जाने के लिए प्रोत्साहित किया, और दुश्मन को पीछे हटाने के लिए प्रेरित किया जब तक कि सहायता नहीं आ गई। उनकी टुकड़ियों ने दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर किया, जिससे बारह टैंक पीछे छूट गए। अगले दिन, भारतीय वायु सेना के विमानों ने पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया, और लोंगेवाला इन टैंकों का कब्रिस्तान बन गया।

पाक सेना का उद्देश्य लोंगेवाला से लेकर रामगढ़ और जैसलमेर तक भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करना था, जो अपने साहसिक प्रयास में असफल रहा। युद्ध के बाद, पाक सेना ने पश्चिमी क्षेत्र में भी इस हार का सामना किया। मेजर चांदपुरी को भारत सरकार ने महावीर चक्र (एमवीसी) से सम्मानित किया।

यह भी पढ़े : सीजफायर के बाद काठमांडू में आमने-सामने होंगे भारत-पाक के मंत्री, चीन भी रहेगा साथ


खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें

संसद का मानसून सत्र 21 जुलाईव से होगा शुरु रिलीज से पहले जानकी फिल्म देखेंगे केरल हाईकोर्ट के जज हरियाणा रोडवेज बस के सामने लहराई पिस्तौल… मात खाने के बाद भी नहीं सुधर रहा PAK देहरादून के महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कालेज में 8वीं के छात्र से रैगिंग