रिपोर्ट : कर्ज के बिना टिक नहीं पाएगा पाकिस्तान, चीन ने बना लिया है…!

-आईएमएफ से किए 25 लोन एग्रीमेंट फिर भी इकोनॉमी का है बुरा हाल

करांची । जब पाकिस्तान पर संकट मंडराता है, तो वह अपने मित्र देशों और वैश्विक कर्जदाताओं के गिड़गिड़ाता है। कुछ ऐसा ही हाल भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के दौरान देखने को मिला। पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत ने जो कदम उठाया उससे बौखलाया पाकिस्तान अब चीन से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष तक से आर्थिक मदद की गुहार लगाने लगा। इस बीच चीन चुप्पी साधे हुए नजर आया, तो वहीं आईएमएफ ने पाकिस्तान को बड़ी राहत दी।

वैश्विक निकाय ने पाकिस्तान को मौजूदा एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी के तहत करीब 1 अरब अमेरिकी डॉलर देने की मंजूरी दे दी। पाकिस्तान बीते 7 दशकों में अब तक आईएमएफ के साथ 25 लोन एग्रीमेंट कर चुका है, लेकिन अरबों डॉलर की मदद के बावजूद उसकी इकोनॉमी दिन ब दिन गिरती ही जा रही है। आतंक की फैक्ट्री चलाने वाले पाकिस्तान को बड़ी आर्थिक मदद ऐसे समय में दी गई है, जबकि भारत के खिलाफ उसकी नापाक हरकतों की दुनिया में पोल खुल गई है। यही नहीं उसके हमलों को भी भारत ने नाकाम कर दिया है। आईएमएफ के इस फैसले की भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में आलोचना हो रही है।
इतिहास पर नजर डालें, तो न सिर्फ आईएमएफ बल्कि वर्ल्ड बैंक से लेकर एशियन डेवलपमेंट बैंक तक से उसे भारी भरकम आर्थिक मदद मिलती आ रही है, लेकिन देश के लोगों और देश की इकोनॉमी की हालत बद से बदतर होती गई। लगातार मदद के बावजूद ये 350 अरब डॉलर के आस-पास है और इस मामले में ये भारत की 4 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी के आगे कहीं नहीं टिकता। इसके पीछे सीधा कारण वैश्विक निकायों से मिलने वाली मदद का इस्तेमाल देश की बढ़ोतरी के बजाय आतंक के फलने-फूलने पर ज्यादा खर्च होता है।

आईएमएफ की शुक्रवार को हुई बैठक से पहले भी भारत ने यह कहा था कि पाकिस्तान को दी जाने वाली वित्तीय सहायता अप्रत्यक्ष रूप से उसकी खुफिया एजेंसियों और आतंकी संगठनों जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की मदद करती है, जो भारत पर हमलों को अंजाम देते हैं। हालांकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने फिर भी पाकिस्तान को आर्थिक मदद की मंजूरी दे दी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज मिलने की शुरुआत सात दशक पहले 1958 में हुई थी और पहले बेलआउट पर 8 दिसंबर 1958 को स्टैंड-बाय अरेंजमेंट के तहत 30 मिलियन डॉलर की राशि के लिए एग्रीमेंट साइन किया था और तब से अब तक 25 ऋण समझौते हो चुके हैं।

मतलब साफ है कि आज से नहीं बल्कि लंबे समय से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की गाड़ी उधार पर चल रही है। आईएमएफ के आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान के लिए इस अवधि में कुल स्वीकृत राशि 44.57 अरब डॉलर रही और इसमें से अब तक 28.2 अरब डॉलर वैश्विक निकाय ने वितरित किए हैं। इसमें से भी पाकिस्तान पर वर्तमान में आईएमएफ का बकाया 8.3 अरब डॉलर है। पाकिस्तान के लिए आईएंमएफ की ओर से अब तक मंजूर किए गए सबसे बड़े बेलआउट में नवंबर 2008 में स्टैंड-बाय अरेंजमेंट के तहत रहा, जो 9.78 अरब डॉलर का था। उस समय भी पाक को देश के गरीबों की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए ऋण दिया गया था और इसमें से पाकिस्तान ने 6.7 अरब डॉलर निकाले थे। वहीं सबसे हालिया लोन सितंबर 2024 में मंजूर किया गया था, जो 24 अक्टूबर 2027 तक प्रभावी है. इसके तहत 7.19 अरब डॉलर के लोन एग्रीमेंट पर साइन किया गया था। बता दें मई 2025 तक पाकिस्तान आईएमएफ का पांचवां सबसे बड़ा कर्जदार है।

पाकिस्तान के ऊपर बाहरी कर्ज बढ़कर 130 अरब डॉलर हो गया और ये इसकी जीडीपी का करीब 42 फीसदी है। इसमें सबसे बड़ा कर्ज चीन का है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 15 अरब डॉलर का है, जो तीन महीने के आयात के लिए काफी है। पाकिस्तान में गरीबी दर 2023 में 40.2 फीसदी से बढ़कर 2024 में 40.5 फीसदी हो गई और देश में एक तिहाई से ज्यादा आबादी गरीबी में जी रही है। पाकिस्तान में महंगाई का आलाम ये है कि 2023 में 38 फीसदी, 2024 में औसत 24 फीसदी रही, हालांकि इसमें गिरावट आई फिर भी पाकिस्तानी लोग खाने-पीने और रोजमर्रा के सामनों के तरस रहे हैं।

पाकिस्तान में आतंक के बढ़ते दायरे के चलते बेरोजगारी दर में तगड़ा उछाल साल-दर-साल देखने को मिला है और 2023 के मुताबिक युवा बेरोजगारी दर 9.7 फीसदी रही। पाकिस्तान 2024 के वैश्विक भूख सूचकांक में 127 में से 109वें स्थान पर है और 80 फीसदी के करीब लोगों को स्वस्थ आहार नसीब नहीं है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि दशकों से कटोरा लेकर आर्थिक मदद मांगता जा रहा पाकिस्तान इसका उपयोग करके भी अपनी माली हालत सुधारने में नाकाम रहा है। ऐसे में आईएमएफ के ताजा लोन से इकोनॉमी में कुछ बदलाव आएगा ये कहना मुश्किल है।

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