लखनऊ : प्रेजेंटेशन देकर बोले बिजली कर्मचारी- प्रदेश में न थोपें बिजली निजीकरण का विफल प्रयोग

  • 14 मई को विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति की पुनः वार्ता
  • बिजली कर्मचारियों ने दिया प्रेजेंटेशन

लखनऊ। पावर कारपोरेशन और शीर्ष प्रबंधन के सामने बिजली कर्मचारियों ने निजीकरण को विफल प्रयोग करार दिया। उत्तरप्रदेश ही नहीं अन्य प्रदेशों में भी निजीकरण पूरी तरह से फ्लाप हो गया है। बिजली कर्मचारियों ने प्रजेण्टेशन में व्यापक सुधार कार्यक्रम चलाने के साथ ही निकाले जा रहे संविदा कर्मचारियों को वापस लेने की मांग उठायी। इधर पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने दो टूक कह दिया कि घाटे की भरपायी के लिए यह जरूरी है और कर्मचारी हित भी सुरक्षित रखे जायेंगे।

पावर कारपोरेशन द्वारा जारी बयान के अनुसार चेयरमैन डा आशीष गोयल ने कहा कि प्रदेश का ऊर्जा वितरण क्षेत्र भीषण घाटे में है। इसकी पूर्ति शासन द्वारा सब्सिडी एंड लास फंडिग के रूप में की जा रही है। शासन द्वारा 2020-21 में की गयी फंडिग 8000करोड थी जो कि 2024-25 में बढकर 46000करोड हो जायेगी। 2026 में 55000करोड होने की संभावना है। संघर्ष समिति के सदस्यों ने बताया कि आरडीएसएस एवं बिजनेस प्लान के अर्न्तगत बहुत अधिक धनराशि का निवेश किया गया है। धनराशि निवेश के रिटर्न के लिए प्रयास किये गये लेकिन सफलता नहीं मिली।

पूर्वांचल और दक्षिणांचल के रिफार्म में कर्मचारियों के हित प्रभावित नहीं होंगे और विधिक रूप से कर्मचारियों का हित संरक्षित किया जायेगा। कोई शंका हो तो कभी भी आकर मिल सकते हैं और निवारण किया जायेगा। कर्मचारी तीन विकल्पों में से कोई भी विकल्प चुन सकते हैं। उन्होंने अपील की कि कर्मचारी आंदोलन नामक कार्यवाही न करें। शीर्ष प्रबंधन के साथ हुई वार्ता को लेकर समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि पावर कारपोरेशन द्वारा दिये जा रहे आंकडे पूरी तरह से फर्जी हैं और इसको बिन्दुवार उजागर किया जायेगा।

निजीकरण का प्रयोगउडीसा,आगरा,ग्रेटर नोएडा में फ्लाप हो चुका है। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने पावरप्वाइण्ट प्रेजेण्टेशन में ऊर्जा निगमों में घाटे के लिए महंगे बिजली खरीद करार और सरकारी विभागों का राजस्व बकाया घाटे के लिए जिम्मेदार ठहराया। महंगे बिजली क्रय करारों से विद्युत वितरण निगमों को उत्पादन निगम की तुलना में 9521करोड का अधिक भुगतान करना पडा। कई ऐेसे बिजली करार है जहां से खरीद न होने पर भी6761 करोड का भुगतान किया गया।

महंगे बिजली करार घाटे का प्रबल कारण है इसके लिए प्रबंधन जिम्मेदार है। सरकारी विभागों पर लगभग 14हजार करोड रूपये बकाया है। नान टैरिफ आय के लिए सब स्टेशनों पर चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना,खम्भों पर टेण्डर के जरिये नान टैरिफ इनकम,अनुपयोगी जमीनों पर वाणिज्यिक गतिविधियां,बैटरी स्टोरेज की स्थापना,अनुपयोगी विभाग के भवनों की छतों पर सोलर पैनल की स्थापना जैसे सुझाव दिये गये।

समिति ने लगभग 1 घण्टे चली वार्ता में निकाले गये संविदा कर्मचारियों को वापस लेने की मांग की जिस पर 14 मई को बैठक करने की सहमति बनी है। वार्ता में प्रबन्धन की ओर से प्रबन्ध निदेशक पंकज कुमार,निदेशक कमलेश बहादुर सिंह,निदेशक जीडी द्विवेदी व कर्मचारी समिति की ओर से जितेन्द्र गुर्जर,महेश राय,सुहेल आबिद,आशीष भारती समेत बडी संख्या में कर्मचारी उपस्थित थे।

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