धरती को जहन्नुम बना कर जन्नत के जो सपने दिखाए वो ‘काफिर’

‘इस्लाम और विश्व शांति’ व्याख्यान का आयोजन

गले-सड़े कानूनों को तत्काल बदलने की जरूरत

संपूर्ण सनातन भारत ही ‘चेतना’ का लक्ष्य: राजेश चेतन

नई दिल्ली। संस्कार को अपनी वास्तविक धरोहर और संपूर्ण सनातन भारत को ही मूल लक्ष्य मानने वाली संस्था चेतना ने राष्ट्रवाद की लौ को और प्रखर करने के लिए रोहिणी में ‘इस्लाम और विश्व शांति’ व्याख्यान का आयोजन किया। लाला पन्ना लाल सिंघल स्मृति व्याख्यानमाला की यह नौवीं कड़ी थी। जाने माने उद्योगपति अनिल सिंघल व्याख्यान के स्वागताध्यक्ष रहे।
ज्वलंत विषय पर वक्ताओं के तथ्यपूर्ण व तार्किक संबोधन से राष्ट्रवाद की भावनाओं का ऐसा सैलाब आया जो सभागार में मौजूद हर किसी को अपने साथ बहा ले गया। वक्ताओं का ओज, आक्रोश और आक्रामक तेवर इस कदर हावी हुए कि बार-बार भारत माता की जय, वंदेमातरम के नारे गूंजते रहे।

व्याख्यान में तथ्यों सहित बताया गया कि इस्लामी राष्ट्रों में शांति क्यों नहीं है, वहां क्यों अराजकता है, आतंकवाद है। धरती को जहन्नुम बना कर किस जन्नत के सपने दिखाए जा रहे हैं। देश में शांति के लिए संविधान, कानून, तंत्र और व्यवस्था की पुनः समीक्षा करनी होगी, इनमें आधारभूत परिवर्तन करना होगा।

व्याख्यान के मुख्य वक्ता
और दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. संगीत रागी ने इस अवसर पर अनेक प्रमाण देते हुए कहा कि मुझे तो यह विषय, ‘इस्लाम और विश्व शांति’ अटपटा लग रहा है। भारत का विभाजन 1947 में धर्म के आधार पर हुआ। उस समय भारत के नेताओं की जिद थी कि हम साथ रह कर दिखा सकते हैं। कोई पूछे उन नेताओं ने क्या करके दिखाया? दुष्परिणाम आज सबके सामने हैं।

तब भारत की 35 प्रतिशत जमीन पाकिस्तान को दे दी गई। उस समय देश में मुस्लिमों की संख्या कुल आबादी की 23 प्रतिशत थी जिसमें से 9.4 प्रतिशत मुसलमान यहीं रह गए। आज भारत में मुस्लिमों की संख्या 17 प्रतिशत से अधिक है। यह तो आफिशियल है। अब बात की जाए अन आफिशियल आंकड़ों की तो तीन करोड़ से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिये आज भारत में हैं।

प्रो. संगीत रागी ने कहा कि कश्मीर को हम अकेले क्यों देखते हैं? मुर्शिदाबाद, संभल, नूंह, मेवात, 24 परगना, पश्चिम यूपी,असम के आठ जिलों के हालात पर भी नजर डालें तो आंखें खुली रह जाएंगी। ‘कम्युनल कॉन्फ्लिक्ट’ की बात कही जाती है, लेकिन यह तो सीधे-सीधे जेहाद है। प्रो.रागी ने पूछा, बताइये किस इस्लामी राष्ट्र में आतंकवादी संगठन नहीं। इस्लाम का काफिला कहीं भी शांति से नहीं चला। कोई एक उदाहरण बताइये जहां जहां इस्लाम डोमिनेंट हो, वहां लोकतंत्र हो। ऐसे देश में माइनारिटी की संख्या स्थिर रही हो। विषय की गंभीरता को समझाते हुए डा. रागी ने कहा, कुरान के अनुसार अल्लाह के अलावा कोई पूजा के लायक नहीं। जिसका अल्लाह पर विश्वास नहीं वह काफिर है।

क्या यह हेट स्पीच नहीं?
गंभीरता से विचार करके एक्शन लिया जाए कि मदरसों में क्या पढ़ाया जाता है? पाकिस्तान और भारत में देवबंद का सिलेबस एक है। उन्होंने कहा कि इस्लाम लोगों को ‘बिलीवर’ और ‘नान बिलीवर’ में बांटता है। भारत में मंदिरों से ज्यादा मदरसे हैं। हूरों का लालच देकर क्या जेहादी तैयार नहीं किए जा रहे।

बंगाल के पूर्व राज्यपाल टी राजेश्वर की 1998 की रिपोर्ट का भी उन्होंने हवाला दिया जिसमें उन्होंने बताया था कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर डेमोग्राफी घुसपैठ के कारण बदल चुकी है।
जिन देशों में मुस्लिम कालोनियां हैं, वहां भी शांति नहीं। बंकिम चन्द्र चटर्जी व रविन्द्र नाथ टैगोर का संदर्भ देते हुए उन्होंने इस्लाम की कट्टरता का हवाला दिया।

सुप्रीम कोर्ट के विख्यात अधिवक्ता, हिन्दू हितों के लिए मैदान और कोर्ट में लंबा संघर्ष करने वाले तथा पुराने गले-सड़े कानूनों को बदलने के पैरवीकार अश्विनी उपाध्याय ने भी कहा कि मुस्लिम देशों में अशांति है। आतंकवादी संगठनों की सूची गिनवाते हुए उन्होंने कहा कि इस समस्या का समाधान करने आसमान से भगवान तो आएंगे नहीं, मानव को ही हल निकालना होगा। समस्या का मूल कारण हैं मदरसे। राष्ट्र रक्षा के लिए संविधान की शपथ लेने वाले सांसद, विधायक और जज ये मदरसे खुलवा रहे हैं। मदरसे शिक्षण संस्थान नहीं बल्कि दीनी तालीम सेंटर हैं। हवाला के जरिए कालेधन से फंडिंग होती है।

उन्होंने कहा, आज हेट स्पीच, माइनारिटी, हर धर्म को डिफाइन करने की जरूरत है। देश में समान शिक्षा लागू की जानी चाहिए। प्राइमरी क्लास से ही बच्चों को राष्ट्रवाद, सनातन मूल्यों को लेकर जागृत रखना होगा।

अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि देश के पुराने, तंत्र के लिए अवरोधक बन चुके अप्रासंगिक कानूनों को बदलने की सख्त जरुरत है, अन्यथा ये समाज व आर्थिक ढांचे को तहस-नहस कर देंगे। उन्होंने ऐसे अनेक कानूनों का हवाला दिया और बताया कि उन्होंने इन्हें बदलने के लिए सुप्रीम कोर्ट में रिट डाल रखी है। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि अश्विनी उपाध्याय की रिट याचिकाओं पर अनेक ऐसे कानून बदले भी जा चुके हैं। तीन तलाक़, यूनिफॉर्म सिविल कोड, वक्फ आदि पर सरकार व संसद कानून बना चुकी है। इनके पुराने कानूनों के विरोध में सार्वजनिक मंचों और कोर्टों में सबसे पहले अश्विनी उपाध्याय ही थे।

उन्होंने घुसपैठ, आतंकवाद की स्थिति, देश, समाज, व्यापार के लिए खतरा बन चुके कानूनों पर प्रमाण सहित व्याख्यान दिया जिस पर बार-बार तालियां बजीं।
‘फ्रीडम आफ रिलीजन’ का विशेष तौर पर उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह कानून ‘फ्रीडम ऑफ कन्वर्जन’ यानि धर्म परिवर्तन की छूट का माध्यम बना हुआ है।

व्याख्यान की अध्यक्षता विश्वविख्यात कलाकार एवं चित्रकार बाबा सत्यनारायण मौर्य ने की। उनके संबोधन में ओज, तेज, प्रखरता, कटाक्ष, रिद्म का समावेश था। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के गौसेवा प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक मोहम्मद फैज खान विषय प्रवर्तक के रूप में उपस्थित हुए। उन्होंने इस्लाम की सारगर्भित व्याख्या की और कहा कि इस्लाम लिबरल है, लचीला है लेकिन मुल्लाओं और मौलवियों ने उसकी गलत व्याख्या करके कट्टरता का पर्याय बना दिया।

भीलवाड़ा से आए प्रसिद्ध कवि योगेन्द्र शर्मा के ओजस्वी काव्य पाठ ने सभी उपस्थित दर्शकों, श्रोताओं को अभिभूत और राष्ट्र प्रेम सराबोर कर दिया। उनकी हर पंक्ति पर उपस्थित लोगों ने तालियां बजा कर देशभक्ति के स्वर मुखर किए। व्याख्यान के दौरान कवि नरेश शांडिल्य द्वारा लिखित एक पुस्तक का भी विमोचन हुआ जिसमें ‘चेतना’ के कार्यक्रम में अश्विनी उपाध्याय के पिछले वर्ष दिए गए व्याख्यान को समाहित किया गया है।

अटूट राष्ट्रभक्ति का जज्बा जन-जन में जगाने के लिए ‘चेतना’ अब तक 73 सेमिनार का आयोजन कर चुकी है। इस क्रम को जारी रखने की प्रतिबद्धता जताते हुए ‘चेतना’ के अध्यक्ष एवं अंतर्राष्ट्रीय कवि राजेश चेतन ने बताया कि सनातन को एक मिशन का रूप दिया है और लक्ष्य की प्राप्ति तक जारी रहेगा।

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