Mother’s Day Special : मां के हौसले ने रचा इतिहास, एसएसपी की सफलता में चमकती है मां डॉ. पूनम आर्य की तपस्या

  • संघर्ष, संस्कार और समर्पण से गढ़ी गई एक आईपीएस की कहानी
  • छपरौली के साधारण परिवार से निकलकर पूनम आर्य ने बेटे को बनाए ‘अनुराग आर्य’ — मां की मेहनत का ही फल है आज बरेली का तेजतर्रार एसएसपी

बरेली। हर बड़ी सफलता के पीछे एक ऐसी ताकत होती है जो हर तूफान में ढाल बनकर खड़ी रहती है और एसएसपी अनुराग आर्य के लिए वह ताकत उनकी मां डॉ. पूनम आर्य हैं। बरेली जिले में कानून व्यवस्था की कमान संभाल रहे आईपीएस अनुराग आर्य सिर्फ एक अफसर नहीं हैं, बल्कि वे उस संघर्ष की जीवंत मिसाल हैं जो उनकी मां ने एक किसान परिवार की पृष्ठभूमि से लड़ते हुए गढ़ी।

अनुराग आर्य की कामयाबी को उनके खुद के शब्दों में समझें तो “मेरे जीवन की हर उपलब्धि मेरी मां की तपस्या और संस्कारों की देन है।” यह कहना कोई औपचारिक कथन नहीं, बल्कि उन संघर्षों की सच्ची गवाही है, जिन्हें पूनम आर्य ने अपने बेटे के लिए झेला और सहा।

बागपत जिले के छपरौली कस्बे में जन्मे अनुराग का बचपन आम बच्चों से अलग नहीं था, लेकिन जिस ननिहाल की गोद में वह पले-बढ़े, वहां एक खास बात थी मां का संघर्ष। 1990 से 1992 तक पूनम आर्य सीएचसी में डॉक्टर के पद पर तैनात रहीं। फिर सरकारी नौकरी को छोड़कर निजी क्लीनिक खोलने का साहस दिखाया। उस समय यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने बिना पीछे देखे हिम्मत से रास्ता बनाया। यही जज्बा उन्होंने अपने बेटे को भी दिया।
डॉ. पूनम आर्य सिर्फ एक डॉक्टर नहीं, बल्कि बेटे की पहली शिक्षिका, पहली कोच और पहली प्रेरक बनीं।

अनुराग बताते हैं कि मां ने शुरू से यही सिखाया कि– “अगर सपने बड़े हों, तो मेहनत भी उतनी ही बड़ी होनी चाहिए। और असफलता सिर्फ सीखने का एक जरिया है, न कि अंत।”यह दर्शन अनुराग की जीवन यात्रा में हर कदम पर नजर आता है। उन्होंने पहले देहरादून स्थित मिलिट्री कॉलेज से शिक्षा ली, फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और हिंदू कॉलेज दिल्ली से आगे की पढ़ाई की। 2012 में वह कानपुर की एक बैंक में मैनेजर बने, लेकिन मां का सपना कहीं न कहीं अभी बाकी था।

उसी वर्ष यानी 2012 में अनुराग ने सिविल सेवा की परीक्षा दी और पहली ही बार में चयनित हो गए। यह सिर्फ प्रतिभा की नहीं, बल्कि पारिवारिक मूल्यों, संघर्ष और मां की तपस्या की जीत थी। अनुराग खुद मानते हैं कि उनकी सफलता की बुनियाद उस क्लीनिक की छोटी-सी टेबल से शुरू हुई थी, जहां मां दिन-रात मरीजों को देखती थीं, और साथ ही बेटे के सपनों को भी संवारती थीं।आज अनुराग आर्य बरेली जैसे बड़े जिले में बतौर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यरत हैं। उनकी पहचान एक सख्त प्रशासक, संवेदनशील अधिकारी और अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति अपनाने वाले अफसर की है।

लेकिन उनके अंदर जो अनुशासन, संवेदना और जनता के लिए समर्पण है—वह सब मां की परवरिश का ही नतीजा है।डॉ. पूनम आर्य की अपनी जिंदगी भी किसी प्रेरणा से कम नहीं। उन्होंने अकेले दम पर डॉक्टर बनकर समाज की सेवा की, नौकरी छोड़ी तो अपनी शर्तों पर, और बेटे को एक आदर्श नागरिक बनाकर समाज को एक सशक्त पुलिस अधिकारी दिया। उनका क्लीनिक आज भी चल रहा है और वहां जाने वाले मरीज आज भी उन्हें एक मसीहा की तरह देखते हैं।

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