
पटना । बिहार की नीतीश सरकार एक बार फिर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिर गई है। इस बार मामला सरकारी टेंडरों में भारी रिश्वतखोरी और प्रणालीगत भ्रष्टाचार का है, जिसमें राज्य के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी संजीव हंस, भवन निर्माण, नगर विकास, और जल संसाधन विभागों के कई बड़े अधिकारी जांच के दायरे में हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और विशेष निगरानी इकाई (एसवीयू) की संयुक्त रिपोर्ट से यह सनसनीखेज खुलासा हुआ है कि बिहार में सरकारी टेंडर आठ से दस प्रतिशत कमीशन पर मैनेज किए जा रहे थे। इस घोटाले के सामने आते ही बिहार की राजनीति गरमा गई है। कांग्रेस, राजद, और अन्य विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस्तीफे की मांग करते हुए आरोप लगाया है कि नीतीश सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार संस्थागत हो चुका है।
ईडी की रिपोर्ट के मुताबिक, संजीव हंस, जो कभी केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निजी सचिव रहे थे, पर सरकारी टेंडरों की सेटिंग कराने और मुंबई की फर्म से एक करोड़ की रिश्वत लेने का भी आरोप है। यह रिश्वत उपभोक्ता निवारण आयोग से अनुकूल फैसला दिलाने के एवज में ली गई थी। गुरुवार को दर्ज एफआईआर (मामला संख्या 05/2025) में उनके साथ-साथ ठेकेदार रिशु श्री, सहयोगी संतोष कुमार, निजी कंपनियों के निदेशक पवन कुमार, और कई अज्ञात सरकारी अधिकारियों को भी नामजद किया गया है।
ईडी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि बिहार शरीफ स्मार्ट रोड, मुजफ्फरपुर सीवरेज नेटवर्क, और 33 नालों की जैविक सफाई योजना जैसी परियोजनाओं में ठेकेदारों को एडवांस भुगतान, और अन्य खर्चों के नाम पर रिश्वत दी गई। बिलों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया ताकि रिश्वत और कमीशन की रकम को वैध दिखाया जा सके।
इस घोटाले के सामने आते ही बिहार की राजनीति गरमा गई है। कांग्रेस, राजद, और अन्य विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस्तीफे की मांग करते हुए आरोप लगाया है कि नीतीश सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार संस्थागत हो चुका है। कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने कहा, यह घोटाला सिर्फ संजीव हंस तक सीमित नहीं है। रिशु श्री जैसे दलाल कई विभागों में टेंडर दिलवाने का खेल खेलते थे। ये जांच माननीय न्यायाधीश की निगरानी में सीबीआई से होनी चाहिए। उन्होंने मांग की कि सरकार रिशु श्री के कॉल डिटेल्स सार्वजनिक करे ताकि यह सामने आ सके कि वह किन-किन अधिकारियों से लगातार संपर्क में था।
बिहार का टेंडर मैनेज घोटाला महज एक प्रशासनिक मामला नहीं, बल्कि राजनीतिक संकट में बदलता जा रहा है। इस घोटाले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बिहार में भ्रष्टाचार सिस्टम का हिस्सा बन चुका है? और अगर हां, तो 2025 का चुनाव जनता के गुस्से का एक विस्फोट बन सकता है।
-चुनाव से पहले नीतीश पर बड़ा राजनीतिक दबाव
2025 के बिहार विधानसभा चुनावों से पहले यह घोटाला नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती बनकर उभरा है। सुशासन बाबू की छवि पर एक और बड़ा धक्का लगा है, खासकर तब जब भाजपा और जदयू के बीच संबंधों में पहले से ही दरार है और विपक्ष एकजुट होकर जनता को भ्रष्टाचार के खिलाफ लामबंद करने की तैयारी में है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला नीतीश सरकार की साख को गहरा नुकसान पहुंचा सकता है। विपक्ष को एक मजबूत नैरेटिव मिल गया है और यदि जांच में और नाम सामने आए, तो सरकारी मशीनरी में बड़े फेरबदल की नौबत आ सकती है।
क्या होगी अगली कार्रवाई?
एसवीयू ने इस मामले की जांच डीएसपी राजेश रंजन को सौंपी है। ईडी की रिपोर्ट के आधार पर अन्य विभागों जैसे ऊर्जा, जल संसाधन, और नगर विकास विभाग के भी अधिकारियों पर कार्रवाई की आशंका है। सूत्रों के अनुसार आने वाले दिनों में और गिरफ्तारियां हो सकती हैं।