
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए भीषण आतंकी हमले की जांच में बड़ा खुलासा हुआ है। सुरक्षाबलों और खुफिया एजेंसियों के अनुसार, इस हमले की साजिश लंबे समय से रची जा रही थी। हमले को अंजाम देने से करीब एक हफ्ते पहले चार आतंकियों ने इलाके की रेकी की थी। इनमें दो पाकिस्तानी आतंकी—मूसा और अली—शामिल थे। उन्होंने अपने स्थानीय नेटवर्क यानी ओवरग्राउंड वर्कर्स (OGWs) की मदद से इलाके का बारीकी से निरीक्षण किया था।
ऐसे हुई रेकी, इन जगहों को टारगेट बनाने की थी योजना
15 अप्रैल को आतंकी पहलगाम पहुंचे और विभिन्न भीड़भाड़ वाले तथा संवेदनशील इलाकों का दौरा किया। शुरुआत आरू घाटी से की गई, लेकिन वहां सेना का कैंप होने की वजह से उसे छोड़ दिया गया। इसके बाद एम्यूज़मेंट पार्क का रुख किया गया, मगर वहां कम भीड़ होने के चलते उसे भी रिजेक्ट कर दिया गया। अमरनाथ यात्रा मार्ग पर स्थित बेताब घाटी भी उनके निशाने पर थी, लेकिन भारी सुरक्षा व्यवस्था के कारण वहां भी हमला करना संभव नहीं हो सका।
बैसरन घाटी को क्यों चुना गया?
आखिरकार आतंकियों ने बैसरन घाटी को टारगेट करने का फैसला लिया। यह इलाका पर्यटकों के बीच खासा लोकप्रिय है, लेकिन अमरनाथ यात्रा के रूट से थोड़ा अलग और अपेक्षाकृत कम सुरक्षित माना जाता है। 19 अप्रैल को घाटी की रेकी की गई और 22 अप्रैल को दोपहर 2 बजे OGW को बैसरन पहुंचने का निर्देश दिया गया। दोपहर 2:28 बजे हमला शुरू हुआ, जिसमें 26 मासूम नागरिकों की जान चली गई।
मुठभेड़ और तलाशी अभियान
हमले के बाद सुरक्षाबलों ने बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान शुरू किया। अब तक कोकरनाग और डो़रू के जंगलों में दो बार मुठभेड़ हो चुकी है। आतंकियों की तलाश में जंगल के कुछ हिस्सों में आग भी लगानी पड़ी, लेकिन अभी तक केवल दो आतंकियों की ही मौजूदगी की पुष्टि हो सकी है।
यह हमला न केवल सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी नेटवर्क अब भी घाटी में सक्रिय है और सुनियोजित हमलों के जरिए दहशत फैलाने की कोशिश कर रहा है।