
हर साल 1 मई को पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस यानी मजदूर दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य है मजदूरों के अधिकारों के प्रति लोगों को जागरूक करना और उनके संघर्षों को सम्मान देना। इसे मई दिवस (May Day) के नाम से भी जाना जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत कैसे हुई? और आखिर 1 मई को ही क्यों चुना गया? आइए जानते हैं इसके पीछे की ऐतिहासिक कहानी।
मजदूर दिवस की शुरुआत कैसे हुई?
19वीं शताब्दी के अंत में, अमेरिका और यूरोप के कई देशों में मजदूरों से बेहद कठिन परिस्थितियों में काम करवाया जाता था। उनसे रोज़ 15 से 16 घंटे तक काम कराया जाता, लेकिन मजदूरी बहुत कम दी जाती थी। छुट्टी, स्वास्थ्य सुरक्षा या किसी भी तरह का अधिकार उन्हें प्राप्त नहीं था।
इन्हीं शोषणकारी हालातों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए अमेरिका के शिकागो शहर में 1 मई 1886 को हजारों मजदूरों ने प्रदर्शन किया। वे केवल एक मांग कर रहे थे – “8 घंटे काम, 8 घंटे आराम और 8 घंटे निजी समय”।
यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण था, लेकिन जल्द ही हायमार्केट स्क्वायर में स्थिति बिगड़ गई। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई, जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई। इस घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान मजदूरों की स्थिति की ओर खींचा।
कैसे बना 1 मई अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस?
1889 में पेरिस में हुए अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में यह तय किया गया कि 1 मई को हर साल अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा, ताकि मजदूरों के संघर्ष और बलिदान को याद किया जा सके।
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत
भारत में मजदूर दिवस पहली बार 1 मई 1923 को मनाया गया था। इसकी शुरुआत चेन्नई (तब का मद्रास) में हुई थी, जहां “लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान” ने एक जनसभा का आयोजन किया और मजदूरों के अधिकारों की मांग उठाई।
मजदूर दिवस का महत्व
मजदूर दिवस केवल एक छुट्टी का दिन नहीं है, बल्कि यह दिन हमें उन लोगों के योगदान की याद दिलाता है जो हमारे समाज और अर्थव्यवस्था की नींव हैं।
आज भी कई जगह मजदूरों को उचित मजदूरी, सुरक्षित कार्यस्थल और सामाजिक सुरक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ता है। मजदूर दिवस हमें यह जिम्मेदारी भी देता है कि हम उनके अधिकारों के लिए खड़े हों और उनके सम्मान में आवाज उठाएं।