
पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ पाकिस्तान रेंजर्स के कब्जे में फंसे हुए हैं. पिछले तीन दिन से उनकी कोई ठोस खबर नहीं है. बीएसएफ ने दो दौर की बातचीत कर उनकी रिहाई की कोशिश की, लेकिन पाकिस्तान अभी तक उन्हें छोड़ने को राजी नहीं हुआ है. इस घटनाक्रम ने दोनों देशों के बीच तनाव को एक नई संवेदनशीलता दे दी है.
पूर्णम की पत्नी रजनी शॉ, जो तीन महीने की गर्भवती हैं, अपने पति को वापस लाने के लिए अकेली निकल पड़ी हैं. हुगली (पश्चिम बंगाल) से करीब 2000 किलोमीटर की यात्रा तय कर वह पठानकोट स्थित बीएसएफ बेस पहुंचने वाली हैं. रजनी का कहना है कि वह हर हाल में अपने पति के बारे में जानकारी हासिल करना चाहती हैं, चाहे इसके लिए उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय तक क्यों न जाना पड़े.
बीएसएफ अधिकारियों का भरोसा
रजनी का कहना है कि बीएसएफ अधिकारी लगातार फ्लैग मीटिंग्स कर रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें अपने पति की हालत या रिहाई को लेकर स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है. ऐसे में वह खुद भी पहल करना चाहती हैं. उनकी यह जिद बताती है कि सैनिकों के परिवार किस तरह निजी दर्द को राष्ट्रीय संघर्ष में बदलने का हौसला रखते हैं.

कैसे पाक रेंजर्स के चंगुल में फंसे पूर्णम शॉ?
परिवार ने जानकारी दी कि ड्यूटी के दौरान अस्वस्थ महसूस करने पर पूर्णम शॉ एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी रेंजर्स ने उन्हें पकड़ लिया. हालांकि बीएसएफ और पाक रेंजर्स के बीच तीन फ्लैग मीटिंग्स हो चुकी हैं, लेकिन अब तक पूर्णम की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित नहीं हो पाई है. सांसद कल्याण बनर्जी ने भी इस मामले को बीएसएफ के डीजी तक पहुंचाया है.
क्या पाकिस्तान रख सकता है भारतीय सैनिक को बंदी?
पुलवामा हमले के बाद विंग कमांडर अभिनंदन का उदाहरण सामने है, जब भारत ने जेनेवा कन्वेंशन का हवाला देकर पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया था. अब पूर्णम शॉ के मामले में भी पाकिस्तान के पास कोई विकल्प नहीं है. उसे नियमों का पालन करते हुए बीएसएफ जवान को रिहा करना ही होगा, वरना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे अलग-थलग पड़ने का खतरा रहेगा.
क्या है जेनेवा कन्वेंशन?
जेनेवा कन्वेंशन युद्धबंदियों के अधिकारों की रक्षा के लिए बना है. इसके तहत पकड़े गए सैनिक को प्रताड़ित करना, अपमानित करना या प्रचार के लिए इस्तेमाल करना अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है. पाकिस्तान ने भी इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं, इसलिए उसे पूर्णम शॉ को जल्द से जल्द भारत वापस लौटाना होगा, अन्यथा उसे वैश्विक निंदा और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है.
जेनेवा संधि के प्रमुख नियम
- युद्धबंदियों से केवल उनका नाम, सैन्य पद और संख्या पूछी जा सकती है. जबकि उनकी जाति, धर्म, जन्म आदि के बारे में कोई सवाल नहीं किया जा सकता. इसके अलावा, उन्हें डराने-धमकाने या शारीरिक यातनाएं देने की अनुमति नहीं है.
- घायल सैनिकों की उचित देखभाल की जाती है और यदि कोई घाव या चोट होती है, तो उनका इलाज किया जाता है.
- युद्धबंदियों को भोजन, पानी और उनकी आवश्यकताओं के मुताबिक सभी चीजें मुहैया कराई जाती हैं.
- किसी भी युद्धबंदी के साथ अमानवीय बर्ताव करना पूरी तरह से निषेध है.
- जब भी कोई सैनिक (पुरुष या महिला) पकड़ा जाता है, तो यह संधि तत्काल प्रभाव से उस पर लागू होती है.
- युद्धबंदियों के साथ कोई भी अमानवीय व्यवहार नहीं किया जा सकता.
भारत की सख्ती और पाकिस्तान की मुश्किल
भारत इस समय एक सख्त कूटनीतिक रुख अपनाए हुए है. बीएसएफ जवान की रिहाई के लिए भारत न सिर्फ राजनयिक स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी दबाव बना सकता है. पाकिस्तान के लिए, भारत से बढ़ते तनाव के बीच इस तरह की गलती महंगी साबित हो सकती है. अब देखना होगा कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे कब तक टिक पाता है और पूर्णम शॉ कब वतन लौटते हैं.