UPA बनाम NDA : आतंकवाद पर किसने दिखाया असली एक्शन?

UPA vs NDA Action On Terrorism: पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले के बाद पूरा देश आक्रोश में है। हालांकि, ये कोई पहली बार नहीं है। इससे पहले भी पाकिस्तान के सपोले भारत पर नजरें उठाते रहे हैं। भारत से सीधी लड़ाइयां हारने के बाद से ही पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ ‘ब्लीड इंडिया विद थाउडजेंड कट्स’ की नीति तैयार की थी और इसी का परिणाम है कि बीते कुछ दशकों में भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित कई बड़े आतंकी हमलों का सामना किया। हर हमले के बाद देश का मिजाज और सत्ता पर बैठा दल तय करता है कि आखिर भारत केवल जख्म सहलाता रहेगा या फिर उसका तगड़ा जवाब भी देगा। पहलगाम हमले के बाद पीएम मोदी ने अपने सऊदी अरब के दौरे को बीच में छोड़ दिया। यही नहीं सरकार ने तत्काल एक्शन लेते हुए पाकिस्तान के खिलाफ 5 बड़े फैसले लिए, जिसमें सिंधु जल समझौते को निलंबित करने का बड़ा फैसला भी शामिल है। जानकारों की माने तो ऐसी त्वरित कार्रवाई (Action On Terrorism In UPA) कभी भी कांग्रेस के शासन काल में देखने को नहीं मिली। बल्कि, इससे उलट उसके नेता UPA सरकार के समय हुए एक्शन पर भी संदेह जताने से पीछे नहीं हटे। कांग्रेस की UPA सरकार और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार में आतंकवाद (Action On Terrorism In NDA) के प्रति कार्रवाई को लेकर अंतर साफ नजर आता है।

UPA की कमजोर इच्छाशक्ति VS मोदी का दृढ़ संकल्प

UPA सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति के चलते आतंकवाद के प्रति नरम रवैया रखने के आरोप लगते रहे हैं। वहीं मोदी सरकार ने अपनी जीरो टॉलरेंस नीति में एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कठोर कदम उठाए हैं, जो पहले केवल फिल्मों में देखने को मिलते थे। इसके साथ ही भारत में पाकिस्तान समर्थित आतंक को दुनिया के मंचों पर पुरजोर तरीके से उठाया गया है। इसी का नतीजा है कि पहलगाम हमले के बाद ज्यादातर देश भारत के साथ खड़े हैं। 

जब पीएम मोदी ने पाकिस्तान को दिया था सुधरने का एक अवसर

साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA की सरकार बनी। इस दौरान पाकिस्तान से संबंध सुधारने के प्रयास भी हुए, लेकिन पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। 2 जनवरी 2016 को पंजाब के पठानकोट एयरबेस पर बड़ा आतंकी हमला हुआ। करीब 80 घंटे चले इस ऑपरेशन में भारत के 7 जवान शहीद हो गए, जबकि सभी आतंकी भी मारे गए। इस घटना में स्पष्ट रूप से पाकिस्तान का हाथ था। हालांकि, इस मामले में मोदी सरकार ने नरमी बरती और पाकिस्तान को पहला और आखिरी मौका दिया कि वो सुधर जाए।

उरी के जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक

खैर पाकिस्तान को कहां कुछ समझ आने वाला था। भारत में अभी भी लोग पठानकोट को भूले नहीं थे कि कुछ महीने बाद 18 सितंबर 2016 को जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में सेना के कैंप पर एक बड़ा आतंकी हमला हो गया। इस हमले में भारत ने अपने 19 जवानों को खो दिया। अब मोदी सरकार के सब्र का बांध टूट चुका था। नतीजा ये हुआ कि 10 दिन के भीतर ही यानी 29 सितंबर 2016 को भारत की सेना पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुस गई। यहां ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कर आतंकियों लॉन्च पैड तबाह कर दिया गया। आतंकियों को जहन्नुम पहुंचा कर भारत के सभी जवान सुरक्षित लौट आए।

पुलवामा के बदले बालाकोट एयर स्ट्राइक

बात यहीं नहीं थमने वाली थी। कुछ वर्ष तो शांति रही, लेकिन  ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के तीन साल पूरे होते-होते 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में आतंकियों ने सेना के काफिले को निशाना बनाया। इस हमले में 40 जवान शहीद हो गए। इस हमले के बाद भी मोदी सरकार ने 10 दिन से ज्यादा का इंतजार नहीं किया। 26 फरवरी को भारतीय सेना के विमान बालाकोट में घुस गए और एयर स्ट्राइक के जरिए पाकिस्तान और आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया। हालांकि, इस एक्शन के बाद 27 फरवरी को पाकिस्तान ने भी जवाबी हमला किया, जिसे इंडियन एयरफोर्स ने नाकाम कर दिया। इस दौरान विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमान ने अपने मिग-21 से पाकिस्तान के एक F-16 को भी मार गिराया। हालांकि बाद में उनका विमान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में क्रैश हो गया और पाकिस्तानी सेना ने उन्हें हिरासत में ले लिया।

विंग कमांडर अभिनंदन की घर वापसी

इस एक्शन के बाद वैश्विक लोकप्रियता और जिओ पॉलिटिक्स में मोदी सरकार का वर्चस्व नजर आया। 27 फरवरी को पाकिस्तानी सेना ने विंग कमांडर अभिनंदन को अपनी हिरासत में लिया। जबकि 29 फरवरी को तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने ऐलान कर दिया कि वो अभिनंदन को भारत के सुपुर्द कर देंगे। इसके बाद 1 मार्च 2019 को अभिनंदन की वतन वापसी हो गई। इस पूरे घटनाक्रम ने साफ कर दिया कि पाकिस्तान में मोदी सरकार का खौफ किस कदर था।

पहलगाम पर एक्शन में मोदी सरकार

अब 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में आतंकी हमला किया गया है। इसमें 26 निर्दोष भारतीयों की जान चली गई है। जब ये घटना हुई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब के दो दिवसीय दौरे पर थे। हालांकि, उन्होंने तुरंत मामले का संज्ञान लिया और गृह मंत्री अमित शाह को मौके पर जाने के लिए कहा। वो स्वयं भी दौरा रद्द कर वापस लौट आए। उनके लौटते हीं ताबड़तोड़ बड़ी बैठकें हुईं। मोदी सरकार ने पाकिस्तानियों का वीजा रद्द करने के अलावा  सिंधु जल समझौता भी रोक दिया। यहां मोदी सरकार की आतंक के प्रति जीरो टॉलरेंस पॉलिसी (Action On Terrorism In NDA) साफ नजर आती है।

UPA सरकार का ढीला रवैया

साल 2014 में मोदी सरकार के आने से पहले केंद्र में UPA की मनमोहन सरकार थी। इस दौरान भी कई आतंकी हमले हुए। हालांकि, इनमें कभी भी मोदी सरकार जैसा सख्त एक्शन देखने को नहीं मिला। इसके उलट जब मोदी सरकार के वक्त हुए एक्शन का सबूत जरूर मांग लिया गया।

26/11 का बदला नहीं ले पाई कांग्रेस

साल 2008 में मुंबई में हुए भीषण आतंकी हमले में ही UPA सरकार का रवैया बताता है कि देश कितना बदल चुका है। 26 नवंबर 2008 को लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकी समुद्र के रास्ते भारत में घुस आए। उन्होंने मुम्बई के होटल ताज, ओबेरॉय, नरीमन हाउस और CST स्टेशन को निशाना बनाया। इस हमले में 26 विदेशी नागरिकों समेत 160 से अधिक लोगों की मौत हो गई। ये ऑपरेशन करीब 60 घंटे चला था।

मुंबई के 26/11 हमले के बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस के रवैये की जमकर आलोचना हुई और अभी भी होती है। हमले के बाद मनमोहन सिंह ने इसे “भारत पर युद्ध जैसी स्थिति” कहा था और राष्ट्रीय एकता के साथ आतंकवाद (Terrorism) से सख्ती से निपटने की बात कही थी। हालांकि, कुछ दिनों बार सरकार ठंडी पड़ गई। कार्रवाई के नाम पर पाकिस्तान को सिर्फ डोजियर सौंपे गए।

आतंकी को फांसी देने में लगे 4 साल

हालांकि इस भयावह हमले के बाद सरकार कई बड़े कदम उठाए गए (जैसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) का गठन, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) के अन्य सेंटर्स  की स्थापना, कोस्ट गार्ड और नौसेना की निगरानी में विस्तार और इंटेलिजेंस शेयरिंग सिस्टम में सुधार) । पर साफ और सख्त राजनीतिक संदेश देने के मामले में कांग्रेस की सरकार विफल हो गई थी। इस पूरे मामले में भारत ने पाकिस्तान को डोजियर सौंपा था लेकिन कूटनीतिक दबाव और सीधी कार्रवाई (Action On Terrorism) में ढिलाई बरती गई। इतना ही नहीं जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब को फांसी में चढ़ाने में 4 साल का समय लग गया।

26/11 हमला: कांग्रेस पर एक दाग

26/11 के बाद मनमोहन सरकार के संस्थागत सुधार के बावजूद राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, धीमी प्रतिक्रिया और पाकिस्तान पर नरम रुख के चलते कांग्रेस सरकार को भारी आलोचना झेलनी पड़ी। यही कारण है कि आज भी ये मुद्दा “मिस्ड अपॉर्च्युनिटी” के नाम से जाना जाता है। सबसे बड़ा और लापरवाह रवैया तो कांग्रेस के नेताओं का देखने को मिला।

इतने बड़े हमले के बाद भी कांग्रेस के कुछ नेता इस पर सियासत करते रहे। जबकि, हमला कांग्रेस के राज में ही हुआ था। कांग्रेस के सबसे प्रसिद्ध बयान वीर दिग्विजय सिंह ने आतंकी कसाब को RSS का एजेंट बता दिया था। इतना ही नहीं अजीज बनर्जी की किताब ’26/11 RSS की साजिश’ के विमोचन के लिए भी पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि अजमल कसाब के पास भगवा कलाई धागा था।

बाटला हाउस के बाद रोईं सोनिया गांधी

13 सितंबर 2008 में दिल्ली में सिलसिलेवार धमाके हुए थे। इस घटना में 26 लोगों की मौत हुई थी और 100 से ज्यादा घायल हुए थे। इसके बाद दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 19 सितंबर को जामिया नगर के बाटला हाउस इलाके में रेड मारी। आतंकियों ने पुलिस वालों पर फायरिंग कर दी। जवाब में जवानों ने भी फायरिंग की। जिसमें इंडियन मुजाहिदीन के दो आतंकी आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद मारे गए। इसमें पुलिस के जांबाज इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा शहीद हो गए।

इस एनकाउंटर के बाद दिग्विजय सिंह ने मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था। इसके साथ ही उन्होंने न्यायिक जांच की मांग की थी। इतना ही नहीं कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने यह दावा किया था कि एनकाउंटर में मारे गए लड़कों की तस्वीरें देखकर सोनिया गांधी भावुक हो गई थीं और उनके आंसू निकल आए थे। हालांकि, बाद में दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक ने एनकाउंटर को असली करार दिया। इस मामले में कांग्रेस की आतंकियों से सहानुभूति उनकी देशविरोधी मानसिकता और वोट बैंक की राजनीति को साफ दर्शाती है।

आतंकवाद के खिलाफ सबसे सख्त कानून को रद्द किया

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने आतंक के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म एक्ट (Prevention of Terrorism Act) को 2002 में संसद में पारित किया। इसे आतंकवाद (Terrorism) से निपटने के लिए सरकार को अधिक अधिकार मिल गए। हालांकि, जैसे ही कांग्रेस की सरकार आई तो मनमोहन सिंह ने इसे 2004 में इसे निरस्त कर दिया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि इसके कुछ प्रावधान मानव अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

कांग्रेस ने मांगे थे सेना से सबूत

आज भले ही कई कांग्रेस नेता गला फाड़कर चिल्ला रहे हों कि पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दो और भारत में मिला लो। लेकिन कांग्रेस और उसकी सरकार की नीतियां हमेशा से ही एक जैसी रही हैं। साल 2016 में जब सेना पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में जाकर सर्जिकल स्ट्राइक की तो खुले आम सेना से सबूत मांगे गए थे।

संजय निरुपम ने तो ट्वीट कर सबूत सार्वजनिक करने की मांग की थी। उन्होंने लिखा था ‘क्या सर्जिकल स्ट्राइक वास्तव में हुई थी या यह सिर्फ बीजेपी सरकार का एक राजनीतिक प्रचार है? सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मीडिया को दिखाने से सच साबित नहीं होगा, सबूत पेश करें।’ अकेले संजय निरुपम ही नहीं पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम और तथा कथित अंग्रेजी के मास्टर माइंड शशि थरूर भी इसी लिस्ट में शामिल थे। दोनों ही नेताओं ने सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत पब्लिक डोमेन में शेयर करने और की मांग की थी।

राहुल बाबा ने कहा था ‘खून की दलाली’

जब सभी नेताओं ने इतने सबूत मांग लिए तो राहुल गांधी कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने सीधे तौर पर सबूत तो नहीं मांगा लेकिन मोदी सरकार को जवानों के “खून की दलाली” करने वाला बता दिया था। उन्होंने कहा था कि UPA सरकार के दौरान भी सर्जिकल स्ट्राइक हुई थीं लेकिन हमने कभी उसका ढोल नहीं पीटा। मोदी सरकार ने इसी चुनावी हथियार बना लिया। कांग्रेस की आतंक नीति ऐसी थी जैसे घर में कोई चोर घुस आए तो उसे सबक सिखाने की जगह थाली में परोसकर मिठाई खिलाई जाए। उसके बाद कहा जाए “अब जो ले जाना हो ले जाओ।”

एक तरफ मोदी सरकार के एक्शन (Action On Terrorism In NDA) से आतंकियों की रूह कांपती है। वहीं दूसरी ओर UPA के दौर में वो हमले कर बाटला हाउस से सहानुभूति बटोर लेते थे। मोदी सरकार की स्ट्राइक पाकिस्तान में चीख-पुकार मचा देती है। जबकि, UPA के दौर में वो बकायदा टीवी एंकर्स को इंटरव्यू देते थे। जबकि मोदी सरकार में सर्जिकल स्ट्राइक ने जहां आतंकिओं को पाताल का रास्ता दिखाया था। तो वहीं एयर स्ट्राइक के जरिए आसमान से मौत बरसाई गई थी। खैर ये बात तो साफ है कि साल 2004 के बाद से हुए तमाम घटनाओं पर कांग्रेस सरकार एक्शन (Action On Terrorism In UPA)  लेती तो सर्जिकल और एयर स्ट्राइक की जरूरत ही नहीं पड़ती।

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