
अयोध्या के प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी मंदिर के मुख्य पुजारी महंत प्रेम दास एक महत्वपूर्ण धार्मिक घटना को अंजाम देने जा रहे हैं। 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन, महंत प्रेम दास पहली बार हनुमानगढ़ी मंदिर से बाहर निकलकर राम जन्मभूमि मंदिर में दर्शन करेंगे। यह कदम विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए लिया गया है, जिसमें गद्दीनशीन को मंदिर परिसर से बाहर जाने की मनाही थी।
सपने में हनुमान जी ने दिया आदेश
महंत प्रेम दास ने बताया कि हनुमान जी उनके सपने में आए थे और उन्हें राम मंदिर में रामलला के दर्शन करने का आदेश दिया। इस आदेश को ध्यान में रखते हुए, निर्वाणी अखाड़े ने इस परंपरा में बदलाव करते हुए महंत प्रेम दास को राम मंदिर में दर्शन करने की अनुमति दी है।
हनुमानगढ़ी मंदिर की पुरानी परंपरा
हनुमानगढ़ी मंदिर की स्थापना 18वीं शताबदी में हुई थी, और तब से ही यहां की परंपरा के अनुसार, गद्दीनशीन महंत को मंदिर परिसर से बाहर जाने की सख्त मनाही रही है। इस परंपरा के मुताबिक, गद्दीनशीन महंत न तो मंदिर से बाहर निकल सकते थे और न ही स्थानीय अदालतों में पेश हो सकते थे। महंत प्रेम दास ने इस परंपरा को तोड़ने का निर्णय लिया है, और इस निर्णय को निर्वाणी अखाड़े के पंचों (सदस्यों) ने स्वीकृति दी है।
अक्षय तृतीया पर विशेष जुलूस
निर्वाणी अखाड़े के प्रमुख महंत रामकुमार दास ने बताया कि 30 अप्रैल को महंत प्रेम दास हनुमानगढ़ी से राम मंदिर तक एक ऐतिहासिक जुलूस का नेतृत्व करेंगे। इस जुलूस में हाथी, ऊंट और घोड़े शामिल होंगे, और महंत प्रेम दास के साथ नागा साधु, उनके शिष्य, भक्त और स्थानीय व्यापारी भी होंगे। जुलूस सुबह सात बजे सरयू नदी के तट पर अनुष्ठान स्नान के लिए पहुंचेगा और फिर राम मंदिर की ओर बढ़ेगा।
हनुमानगढ़ी से राम मंदिर की दूरी और धार्मिक महत्व
हनुमानगढ़ी मंदिर से राम जन्मभूमि मंदिर की दूरी लगभग डेढ़ किलोमीटर है। यह मान्यता है कि अयोध्या की यात्रा का पुण्य हनुमानगढ़ी मंदिर के दर्शन के बिना अधूरा रहता है। हनुमानगढ़ी का संविधान 200 साल पुराना है, और तब से यह मंदिर निर्वाणी अखाड़े का मुख्य केंद्र बना हुआ है।
मंदिर परिसर का ऐतिहासिक महत्व
हनुमानगढ़ी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है। कहा जाता है कि यह मंदिर 18वीं सदी में अवध के नवाब द्वारा बनवाया गया था। यहां मंदिर के अलावा सैकड़ों दुकानें, घर, श्रीराम अस्पताल और हनुमत संस्कृत महाविद्यालय भी स्थित हैं।
राम मंदिर में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा
पिछले साल 22 जनवरी को अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी, और उसके बाद से मंदिर को लेकर देशभर में आस्था और उत्साह का माहौल बना हुआ है।
यह कदम न केवल अयोध्या के धार्मिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो रहा है, बल्कि यह एक नई धार्मिक धारा का भी प्रतीक बनता है, जिसमें परंपराओं और आधुनिकता का एक अनूठा संगम देखने को मिल रहा है।