
लखनऊ। अक्षय तृतीया का पर्व वैशाख माह के उजाला पक्ष की तृतीय तिथि को मनाया जाता है । अक्षय शब्द का अर्थ होता है जिसका कभी नाश न हो । कभी क्षय न हो। इस तिथि के दिन बिना मुहूर्त के ही काम किये जाते है क्यों कि यह तिथि अपने में ही स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया है । इस बार अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को मनाई जाएगी ।
मान्यताओं के अनुसार वैशाख माह के सामान कोई माह नहीं है । सतयुग के सामान कोई युग नहीं है। वेद के सामान कोई शास्त्र नहीं है। गंगा जी के सामान कोई तीर्थ नहीं है उसी तरह से अक्षय तृतीया के सामान कोई तिथि नहीं है । इसी दिन ही भगवन परशुराम का जन्म व गंगा अवतरण भी इसी दिन हुआ था ।
अक्षय तृतीया के दिन ही महाभारत की लड़ाई समाप्त हुई थी और वेद व्यास भगवान गणेश ने महाभारत ग्रन्थ लिखना शुरू किया था । इस तिथि को ही श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं। अक्षय तृतीया को ही वृन्दावन में श्री विहारी जी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक ही बार होते है ।
इसी दिन पितृ श्राद्ध का भी महत्व है । पितरो के नाम से दान करके किसी असहाय व्यक्ति को भोजन कराना चाहिए। अक्षय तृतीया के विषय में मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमे बरकत होती है। शुभ और अच्छा काम करने से उसके फलों में असंख्य वृद्धि होती है। बुरा काम करने से उसका परिणाम कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ता। अक्षय तृतीया के पर्व का उल्लेख मत्स्य पुराण, विष्णु धर्म सूत्र, नारदीय पुराण, भविष्य पुराण में मिलता है।
पुराणों के अनुसार इस दिन सूर्योदय के पहले उठकर स्न्नान कर लेना चाहिए। स्नान के बाद जाप, मंत्र पूजन , ध्यान आदि करके दान करना चाहिए। इस दिन गुड़ का दान करना चाहिए । गुड़ का दान करने से सूर्य देव व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि करते है । सेंधा नमक का दान करने से पुण्य में वृद्धि के साथ भौतिक सुखो में वृद्धि होती है। वस्त्र दान करने से स्वर्ण दान करने जितना ही फल प्राप्त होता है ।
अनाज का दान करना भी पुण्य कारी माना जाता है लेकिन शास्त्रों में किसी भूखे व्यक्ति का पेट भरना सबसे बड़ा पुण्य माना गया है। यह तिथि किसी भी नए काम की शुरुवात, खरीददारी, विवाह, नया सामान, पदभार ग्रहण करने , वाहन क्रय , भूमि पूजन , नया व्यापार, गृह प्रवेश के लिए शुभ मानी जाती है।