
देहरादून। करोड़ों हिंदुओं की आस्था और विश्वास के प्रतीक यमुनोत्री व गंगोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले जाएंगे। शीतकाल में गंगोत्री धाम के कपाट बंद रहते हैं और गंगा मां की पूजा मुखवा गांव में की जाती है। अक्षय तृतीया के दिन गंगा मां की डोली को पूर्ण शृंगार के साथ गंगोत्री लाया जाता है और विधि-विधान से मंदिर के कपाट खोले जाते हैं।
यमुनोत्री धाम में भी मां यमुना की डोली खरसाली गांव से शनि महाराज के साथ मंदिर पहुंचती है। शनि महाराज की उपस्थिति में कपाट खोले जाने के बाद वे वापस खरसाली लौट जाते हैं। मान्यता है कि धामों के कपाट खुलने पर करोड़ों देवी-देवता अप्रत्यक्ष रूप से मौजूद रहकर गंगा मां की स्तुति करते हैं। कपाट खुलने पर जो मनुष्य मौजूद होता है वह अनंत पुण्य का भागी बनता है।
गंगोत्री धाम का उल्लेख महाभारत काल से मिलता है। मान्यता है कि गंगा का अवतरण भागीरथ की तपस्या से हुआ था। गंगा के वेग को संभालने के लिए महादेव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण कर धरती पर छोड़ा था। गंगोत्री मंदिर का निर्माण 20वीं सदी के प्रारंभ में जयपुर नरेश माधोसिंह ने कराया था। 20 फुट ऊंचा यह मंदिर सफेद रंग के चित्तीदार ग्रेनाइड शिलाखंडों को तराश कर बनाया गया है। ऊंचे चबूतरे पर निर्मित इस मंदिर का प्रवेशद्वार पूर्व दिशा की ओर है और दस छोटे-छोटे अंग शिखर मंदिर में स्थित हैं। मंदिर के गर्भगृह में गंगा-यमुना की आभूषण युक्त मूर्तियां, इन मूर्तियों से कुछ नीचे महालक्ष्मी, अन्नपूर्णा, सरस्वती, भागीरथी व शंकराचार्य की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर के निकट ही भैरव मंदिर है, जिसमें शिव व भैरव की मूर्ति स्थापित है। यहीं पर अशोक के समय से प्रचलित गंगा जल के कलशों पर टांका व मुहर लगाने की परंपरा आज भी हैं। गंगोत्री मंदिर के आसपास भागीरथी शिला, गौरीकुंड, पटांगणा, प्राणोत्सर्ग स्थल भैरोंझाप आदि स्थल हैं।
सीमांत जनपद उत्तरकाशी सुंदर रंवाई घाटी में 3323 मीटर की ऊंचाई पर यमुनोत्री मंदिर कालिंदी पर्वत की तलहटी में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1850 में टिहरी नरेश सुर्दशन शाह ने करवाया था। उन्हाेंने यहां लकड़ी का मंदिर निर्मित करवाने के साथ ही मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की थी। दिव्य शिला और सूर्य कुंड से बीस फीट दूर पर अब लकड़ी की जगह गारे-पत्थर से बना 20 फुट 12 इंच के क्षेत्र में मंदिर स्थापित है। इस मंदिर को टिहरी नरेश महाराज प्रताप शाह ने निर्मित करवाया। मंदिर के गर्भगृह में सिंहासन पर विराजमान मां यमुना की काले रंग की मूर्ति स्थापित हैं और उनके बांए गंगा व दांये सरस्वती की मूर्ति भी स्थापित है। कहा जाता है कि द्वापर में मां यमुना का महत्व अधिक था।
विशेष कार्यक्रम
यमुनोत्री धाम के कपाट 30 अप्रैल को सुबह 11:55 बजे रोहिणी नक्षत्र में वेद मंत्रोच्चार के साथ श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे।
मंदिर समिति के प्रवक्ता पुरुषोत्तम उनियाल ने बताया कि अक्षय तृतीया के पर्व पर इसी दिन शनिदेव की डोली की अगुवाई में मां यमुना की डोली अपने शीतकालीन प्रवास खुशीमठ से सुबह 8 बजकर 38 मिनट पर यमुनोत्री धाम के लिए प्रस्थान करेगी और यमुनोत्री धाम में विधिवत हवन पूजा अर्चना के साथ कपाट खोलने की प्रक्रिया शुरू होगी।
गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव सुरेश सेमवाल ने बताया कि मां गंगा की उत्सव डोली 29 अप्रैल को शीतकालीन वास मुखवा से सुबह 11ः 57 बजे गंगोत्री धाम के लिए प्रस्थान करेगी, उस दिन रात्रि विश्राम भैरों घाटी में होगा। अगले दिन 30 अप्रैल को मां गंगा की उत्सव डोली 09 बजे गंगोत्री धाम पहुंचेगी। गंगोत्री मंदिर समिति ने तैयारियां पूरी कर ली है।