
उत्तराखंड के रुड़की शहर के पास स्थित बेलड़ा गांव में कुछ महिलाओं ने एक ऐसा काम कर दिखाया है, जिसने न केवल उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भरता की राह पर ला खड़ा किया है, बल्कि पूरे प्रदेश को एक स्वच्छता और आजीविका मॉडल भी दिया है।
यह कहानी है ‘राधे-राधे महिला स्वयं सहायता समूह’ की, जिसने कूड़ा उठाने के काम को स्वरोजगार में बदला, और आज लाखों रुपये की कमाई कर रही हैं।
घर-घर से कूड़ा उठाकर बदली किस्मत
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत काम कर रहे इस समूह ने गांव के 1800 परिवारों से प्रतिमाह 30-30 रुपये लेना शुरू किया है। शुरुआत में जब महिलाओं ने लोगों से सहयोग मांगा, तो किसी ने भी कूड़े के लिए पैसा देने को राजी नहीं हुआ।
लेकिन गीता, कविता और शबाना जैसी महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी, और स्वच्छता के मिशन को जारी रखा। आज, दो साल बाद, नतीजा सबके सामने है – 700 से बढ़कर 1800 घरों ने नियमित भुगतान करना शुरू कर दिया है।
सालाना छह लाख रुपये से भी ज्यादा की कमाई
महिलाएं ग्लव्स पहनकर कूड़ा इकट्ठा करती हैं, और इसे ट्रैक्टर की ट्रॉली में भरकर ग्राम प्रधान द्वारा तय किए गए स्थल तक ले जाती हैं, जहां इसका सही निस्तारण होता है।
- मासिक आमदनी: ₹54,000 लगभग
- सालाना कमाई: ₹6.5 लाख से अधिक
- खर्च: लगभग 20%
- शेष राशि: समूह के बैंक खाते में जमा होती है
स्कूल और होटल से भी अनुबंध
महिलाओं के बेहतरीन कार्य को देखते हुए मोंटफोर्ट स्कूल ने कूड़ा उठाने के लिए सालाना ₹50,000 में अनुबंध किया है। इसके अलावा, एक होटल से भी बात चल रही है, जिससे आने वाले समय में कमाई के और अवसर खुल सकते हैं।
प्रदेशभर में मॉडल लागू करने की तैयारी
ब्लॉक मिशन मैनेजर रोमा सैनी ने बताया कि इस पहल की CDO हरिद्वार ने प्रशंसा की है और इसे अन्य क्षेत्रों में भी लागू करने की बात कही है। इसके लिए एक प्रेरणादायक वीडियो भी तैयार की जा रही है, ताकि अन्य महिलाएं भी इस पहल से प्रेरित हों।
कूड़े से कमाई, सफाई से समाज सेवा – ये हैं असली नारी शक्ति की मिसाल
बेलड़ा गांव की महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि अगर जज़्बा हो, तो कोई भी काम छोटा नहीं होता। उन्होंने स्वच्छता को सम्मान और आजीविका से जोड़ा है।
इन महिलाओं की कहानी आज हर उस गांव के लिए प्रेरणा है, जो रोज़गार, स्वच्छता और सामाजिक बदलाव के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहता है।