संविधान का Article 142 क्या है, जिसे उपराष्ट्रपति धनखड़ ने बताया न्यूक्लियर मिसाइल? यहाँ समझे आसान शब्दों में…

Article 142, Supreme Court Of India : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज सुप्रीम कोर्ट पर कड़ी टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि अदालत राष्ट्रपति को कैसे निर्देश दे सकती हैं. उपराष्ट्रपति ने इस दौरान अनुच्छेद 142 का भी जिक्र किया और कहा कि यह लोकतंत्रिक शक्तियों के खिलाफ न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है.

उपराष्ट्रपति की यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद आई है, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा. आइए, जानते हैं कि अनुच्छेद 142 क्या है, जिसमें उपराष्ट्रपति ने न्यूक्लियर मिसाइल बताया…

क्या है अनुच्छेद 142?

अनुच्छेद 142 (Article 142) भारतीय संविधान का एक विशेष प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय (complete justice) करने के लिए असाधारण शक्तियां प्रदान करता है. यह अनुच्छेद न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका के दायरे से बाहर जाकर भी न्याय दिलाने की ताकत देता है. दरअसल, अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह पूर्ण न्याय यानी कम्पलीट जस्टिस करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है. 

अनुच्छेद 142 को सरल भाषा में समझें तो सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकार-क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसे किसी भी आदेश या निर्णय को पारित कर सकता है जो उसके समक्ष लंबित मामले में पूर्ण न्याय प्रदान करने के लिए आवश्यक हो.

अनुच्छेद 142 की मुख्य विशेषताएं:

  •  पूर्ण न्याय (Complete Justice) का अधिकार– जब सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि किसी केस में सिर्फ मौजूदा कानूनों से न्याय नहीं मिल सकता, तो वह अतिरिक्त आदेश जारी कर सकता है.
  •  किसी भी प्राधिकरण या व्यक्ति पर लागू- इसका आदेश किसी सरकारी संस्था, राज्य सरकार, या व्यक्ति पर लागू हो सकता है.
  • कानून से ऊपर नहीं, लेकिन कानून में लचीलापन- कोर्ट कानून नहीं बनाता, पर न्याय देने के लिए मौजूदा कानूनों से परे जाकर फैसला दे सकता है. उदाहरण के तौर पर: बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि केस: सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत “पूर्ण न्याय” के लिए सरकार को मस्जिद के लिए वैकल्पिक जमीन देने का आदेश दिया. इसके अलावा, एडवोकेट्स ट्रांसफर केस, पर्यावरण संरक्षण केस और हाल ही में राज्यपालों और राष्ट्रपति की शक्तियों पर निर्देश भी इसी के तहत आते हैं.

अनुच्छेद 142 पर विवाद क्यों होता है?

अनुच्छेद 142 की सीमाएं स्पष्ट नहीं हैं. इसलिए कुछ लोग मानते हैं कि इससे न्यायपालिका का दायरा बहुत बढ़ जाता है और वो कार्यपालिका या संसद के अधिकारों में दखल देने लगती है. इसी वजह से हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इसे “न्यायपालिका का न्यूक्लियर मिसाइल” तक कहा.

अनुच्छेद 142 के तहत किन मामलों में दिए गए फैसले?

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया और अनुच्छेद 142 के तहत मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया. यह आदेश ‘पूर्ण न्याय’ के सिद्धांत के तहत दिया गया, ताकि दोनों पक्षों को संतुलित समाधान मिल सके. इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने बोफोर्स घोटाला 1991 और यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी 1998 केस में भी अनुच्छेद 142 के तहत फैसला दिया. 

अनुच्छेद 142 के तहत दिए गए महत्वपूर्ण फैसले

  • बुलडोजर जस्टिस पर टिप्पणी (2025): सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में अवैध ढहाने की कार्रवाइयों (बुलडोजर जस्टिस) की आलोचना की और इसे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया. कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत निर्देश दिए कि ढहाने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन हो, ताकि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हो.
  • तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामला (2025): सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति की सहमति के लिए समयसीमा तय की. कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का उपयोग करके यह सुनिश्चित किया कि राष्ट्रपति को विधेयकों पर समयबद्ध तरीके से निर्णय लेना होगा. इस फैसले की उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आलोचना की, इसे न्यायिक अतिक्रमण और अनुच्छेद 142 के दुरुपयोग का उदाहरण बताया.
  • राजीव गांधी हत्या मामला (ए.जी. पेरारिवलन की रिहाई, 2022): सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के दोषी ए.जी. पेरारिवलन को 31 साल जेल में बिताने के बाद रिहा करने का आदेश दिया. कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा क्षमा याचिका पर निर्णय में देरी को आधार बनाकर अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का उपयोग किया। यह फैसला पूर्ण न्याय और मानवीय आधार पर लिया गया।

संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं कर सकता अनुच्छेद 142 का उपयोग

बता दें कि अनुच्छेद 142 का उपयोग संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं कर सकता. यह वैध न्यायिक आदेशों या मौलिक अधिकारों की अनदेखी नहीं कर सकता. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्तियां प्रदान करता है, जिसके तहत वह किसी भी मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए ऐसे आदेश या डिक्री जारी कर सकता है, जो संवैधानिक दायरे में हों. यह शक्ति सुप्रीम कोर्ट को उन मामलों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देती है, जहां मौजूदा कानून अपर्याप्त हों या पूर्ण न्याय के लिए अतिरिक्त उपायों की आवश्यकता हो.

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