बरेली पुलिस की शर्मनाक करतूत : मुस्लिम महिला को बचाने के लिए फंसा दिया हिंदू महिला को, पुलिस की लापरवाही से बदनाम हो गई बेगुनाह मुन्नी

  • गलत वारंट पर बुजुर्ग महिला को भेज दिया जेल,
  • पुलिस की शर्मनाक करतूत ने फिर किया इंसाफ का मज़ाक,
  • नाम मिलना ही अब गुनाह है?

बरेली । सीबीगंज पुलिस की एक लापरवाही ने इंसाफ के मंदिर को एक बार फिर कलंकित कर दिया है। बिजली चोरी के एक मामूली से केस में पुलिस ने असली आरोपी की जगह एक बुजुर्ग महिला को उठा लिया, उसके आंसू बहते रहे, बेटा चीखता रहा, गांव के लोग चिल्लाते रहे की पुलिस अपने “इगो” और “हिसाब-किताब” में इतनी मशगूल थी कि इंसानियत भी गिरवी रख दी।

यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, हकीकत है।बंडिया गांव की। यहां की एक गरीब, बेसहारा और सीधी-सादी महिला मुन्नी देवी पत्नी जानकी प्रसाद को पुलिस ने सिर्फ नाम के आधार पर जेल में ठूंस दिया। वारंट था किसी और मुन्नी पत्नी स्वर्गीय छोटे शाह के नाम, लेकिन गिरफ्तार हुईं गांव की बुजुर्ग महिला, जिनका दूर-दूर तक केस से कोई नाता नहीं।

क्या अब इस देश में सिर्फ नाम मिलने पर जेल की सजा दी जाएगी? क्या अब पुलिस को न सत्यापन की ज़रूरत है, न जांच की? सीबीगंज पुलिस और परसाखेड़ा चौकी प्रभारी सौरभ यादव ने ऐसा ही किया। गैर-जमानती वारंट की पूर्ति के नाम पर उन्होंने सिर्फ खानापूर्ति की, और मुन्नी देवी को घर से उठा ले गए।गिरफ्तारी के समय यह महिला बार-बार कहती रही “मैं निर्दोष हूं, मेरा नाम तो मिल रहा है, पर न पति वही है, न घर वही, न केस से कोई वास्ता”—लेकिन सौरभ यादव के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। शायद इंसान की आवाज़ से ज़्यादा उन्हें केस क्लोजिंग का आंकड़ा प्यारा था।

मुन्नी देवी का बेटा राकेश, जो हलवाई की दुकान पर मजदूरी करता है, मां की रिहाई के लिए थाना, तहसील, एसएसपी ऑफिस तक की धूल फांक रहा है। उसकी आंखों में गुस्सा नहीं, बेबसी है—क्योंकि जब पुलिस ही ज़ालिम बन जाए, तो किससे उम्मीद की जाए?

राकेश की बातें चुभती है “मेरी मां को बस उठाकर ले गए, न कोई जांच, न सुनवाई। हम गरीब हैं, क्या हमारी कोई पहचान नहीं? क्या पुलिस के लिए हम इंसान नहीं?”

पुलिस की मिलीभगत से असली मुजरिम गायब

गांव वालों और परिजनों के आरोप बेहद गंभीर हैं। उनका कहना है कि असली मुन्नी, जो इस केस में आरोपी थी, उसे चौकी प्रभारी ने जानबूझकर बचाया। मामला कुछ अंदरूनी सेटिंग का लगता है, जहां गिरफ्तारी करनी थी किसी और की, और चढ़ा दी गई गरीब महिला।

अगर यह आरोप सही हैं तो ये सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि आपराधिक साजिश है। यह दिखाता है कि बरेली पुलिस में कुछ अफसर न सिर्फ निकम्मे हैं, बल्कि भ्रष्ट भी हैं।इस मामले में न केवल कानून का मज़ाक बना, बल्कि महिला के मौलिक अधिकारों की भी धज्जियां उड़ाई गईं। बिना जांच के गिरफ्तारी, जेल में डालना और बुजुर्ग महिला को इस तरह समाज में बदनाम कर देना—क्या यही है यूपी पुलिस का “सुधार अभियान”?

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