क्या है ‘वक्फ बाय यूजर’ संपत्ति? सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में बार-बार उठा ये अहम सवाल

What is Waqf by UserProperty? वक्फ संशोधन अधिनियम में यह प्रावधान है कि जिस संपत्ति पर लंबे समय से धार्मिक गतिविधियां हो रही हैं, उसे वक्फ संपत्ति के तौर पर मान्यता मिल सकती है, भले ही उसका कोई रजिस्टर्ड वक्फ दस्तावेज न हो. यह प्रथा ब्रिटिश काल से भी पहले की मानी जाती है. इसे Privy Council और कई भारतीय अदालतों ने भी समय-समय पर मान्यता दी है.

वक्फ संशोधन अधिनियम में सरकार ने ‘वक्फ बाय यूजर’ संपत्तियों को सीमित कर दिया है. अब यदि संपत्ति सरकारी जमीन है या विवादित है, तो उसे ‘वक्फ बाय यूज़र’ नहीं माना जाएगा. इससे हजारों संपत्तियों की वक्फ स्थिति खतरे में आ गई है. 

‘वक्फ बाय यूज़र’ का मतलब क्या होता है?

‘वक्फ बाय यूज़र’ (Waqf by User) एक ऐसी संपत्ति होती है, जिसका लंबे समय से धार्मिक या चैरिटेबल उपयोग होता आ रहा है, भले ही उसका कोई कानूनी दस्तावेज (deed या registry) न हो. उदाहरण: अगर किसी जमीन पर पिछले 50-100 वर्षों से कोई मस्जिद, दरगाह या मदरसा चल रहा है, लेकिन उसके नाम पर कोई ऑफिशियल वक्फ दस्तावेज नहीं है, तब भी उसे ‘वक्फ बाय यूज़र’ माना जा सकता है. 

‘वक्फ बाय यूज़र’ पर विवाद क्यों हुआ?

सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हुई हैं, जिनमें कहा गया कि यह प्रावधान धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26) का उल्लंघन करता है. कोर्ट ने पूछा:

  • अगर कोई संपत्ति सदियों से धार्मिक उपयोग में है, और उसके दस्तावेज नहीं हैं, तो क्या उसे वक्फ नहीं माना जाएगा?
  • क्या सरकार हिंदू ट्रस्ट में मुसलमानों को शामिल करेगी, जैसे अब वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल किया जा रहा है?”

‘वक्फ बाय यूज़र’ एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अवधारणा है, जो धर्मस्थलों की वास्तविकता को मान्यता देती है, लेकिन नया संशोधन इसे कानूनी रूप से कमजोर करता है, जिससे सामुदायिक तनाव और संपत्ति विवाद बढ़ सकते हैं,

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