
हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास कांचा गचीबावली में चल रही पेड़ों की कटाई को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार से कड़ी प्रतिक्रिया दी। कोर्ट ने तेलंगाना सरकार से पूछा कि इतनी जल्दी पेड़ों को क्यों काटा जा रहा है और इस निर्णय के पीछे क्या तात्कालिक कारण थे।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना सरकार से योजना बनाने के लिए कहा कि 100 एकड़ भूमि पर जंगल और हरियाली को पुनः बहाल किया जाए। उन्होंने पर्यावरण के नुकसान पर भी चिंता जताई और सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा कि इस प्रक्रिया में जंगली जानवरों की सुरक्षा की जाए, जो अपने आश्रय स्थल खो रहे हैं।
कोर्ट ने तेलंगाना के वन्यजीव वार्डन को निर्देश दिया कि वे प्रभावित क्षेत्र में जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाएं और उनकी स्थिति का आकलन करें। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी की सुरक्षा के लिए वे हर संभव कदम उठाएंगे। मामले की अगली सुनवाई 15 मई को होगी और इस दौरान किसी भी पेड़ को काटने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
क्या है पूरा मामला?
तेलंगाना सरकार द्वारा हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास स्थित 400 एकड़ भूमि पर पेड़ों की कटाई की जा रही है। इस भूमि को राज्य सरकार ने तेलंगाना इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन (टीआईआईसी) को आवंटित किया था। टीआईआईसी ने 30 मार्च से इस भूमि पर विकास कार्य के लिए पेड़ों की कटाई शुरू कर दी थी, जिसे हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों और पर्यावरणविदों ने कड़ा विरोध किया।
विरोध करने वालों का कहना है कि यह वन संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन है, जबकि राज्य सरकार का दावा है कि यह भूमि विश्वविद्यालय की नहीं, बल्कि सरकार की है, और इसे काटने में कोई कानूनी उल्लंघन नहीं हो रहा है। इस मुद्दे के चलते विश्वविद्यालय में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और शैक्षिक सत्र पर असर पड़ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए तेलंगाना सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया कि पेड़ काटने का काम तुरंत रोका जाए और इस पर पुनः विचार किया जाए। कोर्ट ने इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए पर्यावरण और पारिस्थितिकी की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार पर डाली है।