बहराइच में महिला प्रधान बनी बदलाव की मिसाल : कारीडीहा को दूसरी बार टीबी मुक्त बनाकर रचा इतिहास

बहराइच l गाँव की गलियों में जब कोई खांसता था, तो लोग डरते थे—बीमारी से नहीं, बदनामी से। पर आज उसी गाँव की पहचान कुछ और है। अब यहां लोग टीबी का नाम सुनकर डरते नहीं, उबरने का हौसला दिखाते हैं। और इस बदलाव की वजह हैं – कारीडीहा की ग्राम प्रधान अनीता मौर्या

अनीता मौर्या ने अपने गाँव को न सिर्फ एक बार, बल्कि दो बार टीबी मुक्त बनाकर, जिले की पंचायतों के सामने एक नई मिसाल पेश की है। इस उपलब्धि के लिए उन्हें जिलाधिकारी मोनिका रानी ने महात्मा गांधी की रजत प्रतिमा देकर विशेष रूप से सम्मानित किया। अनीता कहती हैं “यह सिर्फ एक प्रतिमा नहीं, हमारे गाँव के विश्वास, मेहनत और एकजुटता की पहचान है।”

बीमारी से नहीं, भेदभाव से है लड़ाई-

टीबी कोई नई बीमारी नहीं है, इसका इलाज आज पूरी तरह संभव है और यह सुविधा सभी सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क उपलब्ध है। लेकिन इसके साथ जुड़ा सामाजिक लांछन, भेदभाव और डर आज भी कुछ लोगों को इलाज से दूर कर देता है। यही सबसे बड़ी बाधा थी और इसे तोड़ना आसान नहीं था। सीएचओ प्रीती रावत, जो गांव के पास स्थित आयुष्मान आरोग्य मंदिर में कार्यरत हैं, बताती हैं – केंद्र में टीबी मरीजों की गोपनीयता का विशेष ध्यान रखा जाता है, ताकि उन्हें सामाजिक शर्मिंदगी का सामना न करना पड़े।

इसी विश्वास के चलते “जो लोग पहले जांच कराने से हिचकते थे, वे अब ग्राम पंचायत और आशा कार्यकर्ताओं की मदद से आयुष्मान केंद्र तक आने लगे हैं। यहां टीबी की स्क्रीनिंग, बलगम जांच और उपचार परामर्श की पूरी सुविधा है।” सभी के सहयोग से यह स्वास्थ्य सुविधा अब एक भरोसे का ठिकाना बन गई है । जहाँ इलाज है, पर डर नहीं; सहयोग है, पर भेदभाव नहीं।

जब नेतृत्व और सिस्टम खड़े हुए एक साथ –

सीएमओ डॉ. संजय शर्मा के अनुसार कारीडीहा को टीबी मुक्त बनाने की यह यात्रा एक साझा प्रयास था, जहाँ स्थानीय नेतृत्व और सरकारी तंत्र एक साथ खड़े हुए। ग्राम प्रधान अनीता मौर्या ने जहाँ गांव को जागरूक करने की जिम्मेदारी उठाई, वहीं सीएचओ और आशा कार्यकर्ताओं ने टीबी की जांच, दवा और परामर्श की व्यवस्था गांव की चौखट तक पहुंचाई।

डीटीओ डॉ एमएल वर्मा के अनुसार, प्रधानमंत्री “टीबी मुक्त भारत” अभियान के तहत बहराइच की 87 ग्राम पंचायतें टीबी मुक्त घोषित हो चुकी हैं। कारीडीहा विशेष है, क्योंकि यह दूसरी बार टीबी मुक्त घोषित हुआ है । यानी यह सिर्फ एक उपलब्धि नहीं, एक स्थायी बदलाव का संकेत है।

टीबी मुक्त पहचान को मिलेगी मजबूती-

ग्राम प्रधान अनीता की योजना है कि गाँव के बाहर “टीबी मुक्त पंचायत – कारीडीहा” का बोर्ड लगाया जाए और दीवारों पर जागरूकता स्लोगन लिखवाए जाएँ, ताकि हर कोई यह जान सके —”लक्षण दिखें तो न छिपाएं, तुरंत आरोग्य मंदिर पर जांच कराएं।”

कारीडीहा की कहानी सिर्फ एक गाँव की नहीं है, यह उस सोच की कहानी है जहाँ एक महिला नेतृत्व, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच और सामुदायिक भागीदारी मिलकर बड़े बदलाव ला सकते हैं।
मोनिका रानी – जिलाधिकारी, बहराइच

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