
लखीमपुर खीरी। समाज के हाशिए पर जीने को मजबूर उन लावारिस और मानसिक रूप से बीमार मरीजों के लिए एक नई शुरुआत की उम्मीद जगाने वाली मिसाल सामने आई है। जिला चिकित्सालय, जो स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय मोतीपुर ओयल से संबद्ध है, वहां भर्ती दो लावारिस मरीजों को राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित ‘अपना घर आश्रम’ भेजा गया है। यह वही आश्रम है जहां बेसहारा, बीमार और लावारिस लोगों को न केवल छत मिलती है, बल्कि सम्मान और ममता भी।
रविवार की सुबह जब ‘अपना घर आश्रम’ की टीम इन मरीजों को लेकर रवाना हुई, तो अस्पताल के कर्मचारियों और डॉक्टरों की आंखों में संतोष का भाव झलक रहा था। मरीजों के लिए यह एक नई जिंदगी की शुरुआत है, जहां उन्हें न सिर्फ दवा मिलेगी बल्कि अपनत्व और देखभाल भी।
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरके कोली ने बताया कि अक्सर पुलिस, समाजसेवियों और जागरूक नागरिकों द्वारा लावारिस और मानसिक रोगियों को अस्पताल लाया जाता है। भर्ती के बाद इन्हें पूछने कोई नहीं आता। इन्हें बेहतर इलाज और देखभाल देने के लिए अस्पताल प्रशासन ने एक अलग आइसोलेशन वार्ड बनाया है, जहां डॉक्टरों की टीम, नर्सिंग ऑफिसर, वार्ड बॉय और सफाई कर्मी इनके इलाज और देखभाल में जुटे रहते हैं। नर्सिंग ऑफिसर वर्षा सिंह का विशेष जिक्र करते हुए डॉ. कोली ने बताया कि वर्षा सिंह ने ऐसे मरीजों की सेवा को अपना मानवीय कर्तव्य मानते हुए उनकी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी।
जब मरीज कुछ हद तक स्वस्थ हो जाते हैं, तब अस्पताल प्रबंधन उनके परिजनों की तलाश करता है। यदि परिजन नहीं मिलते, तो प्रशासन और पुलिस को इसकी सूचना दी जाती है। कई बार यह मरीज महीनों तक अस्पताल में ही रह जाते हैं। इसी स्थिति में अस्पताल के काउंसलर देवनंदन श्रीवास्तव और हेल्प डेस्क मैनेजर सुरेंद्र कश्यप ने ‘अपना घर आश्रम, भरतपुर’ से संपर्क साधा और मरीजों के लिए आश्रय की व्यवस्था सुनिश्चित की।
आश्रम प्रबंधन ने सहर्ष सहमति दी और शनिवार शाम को ड्राइवर रूप सिंह और केयरटेकर गोकुल मरीजों को लेने पहुंचे। रात भर की मेहमाननवाजी के बाद रविवार सुबह दोनों मरीजों को लेकर टीम भरतपुर के लिए रवाना हुई।
डॉ. कोली ने कहा कि इस प्रयास से इन मरीजों को एक सुरक्षित और स्नेहभरा माहौल मिलेगा। वे खुद आश्रम प्रबंधन से समय-समय पर इन मरीजों के स्वास्थ्य, भोजन और रहन-सहन की जानकारी लेते रहेंगे और भविष्य में भी इस तरह के मरीजों को जरूरत पड़ने पर अपना घर आश्रम भेजने का सिलसिला जारी रहेगा।
यह पहल यह बताती है कि अगर संवेदनशील मन और मदद का जज़्बा हो, तो लावारिस कहे जाने वाले मरीजों को भी एक नई ज़िंदगी मिल सकती है — और समाज को मानवता का असली चेहरा दिखाने का मौका भी।