बिजली विभाग कहें या रिश्वत विभाग? ‘बिल सुधार’ के नाम पर उपभोक्ताओं से लूट

  • बिल सुधार नहीं, जेब सुधारने की व्यवस्था
  • जनता की जेब से लूटा जाता है विकास का सपना

भास्कर ब्यूरो

बरेली। सिरौली क्षेत्र से जो खबर सामने आई है, वह केवल एक जूनियर इंजीनियर अफसर के निलंबन की नहीं, बल्कि पूरे बिजली विभाग की सड़ चुकी व्यवस्था की कहानी है। रिश्वतखोरी की जिस गंदगी में विभाग डूबा है, उसकी बदबू अब जनता की नाक तक नहीं, सांसों तक पहुंच चुकी है।

ताजा मामला 33/11 केवी विद्युत उपकेंद्र सिरौली के अवर अभियंता जगदीश प्रसाद वर्मा का है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने एक उपभोक्ता से 66 हजार रुपये के बिल को ‘सही’ करने के लिए 45 हजार रुपये की रिश्वत मांगी। यह बात कोई हवा में नहीं कही गई, बल्कि ऑडियो क्लिप के रूप में सार्वजनिक हो चुकी है। यह क्लिप तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है और उसमें साफ तौर पर वर्मा साहब के स्वर सुनाई दे रहे हैं – “बिल तो सही हो जाएगा, बस थोड़ा खर्चा करना पड़ेगा।” क्या यही है वो सेवा भावना जिसके नाम पर बिजली विभाग तनख्वाहें खाता है? क्या उपभोक्ता का कसूर सिर्फ इतना है कि उसने बिजली कनेक्शन ले रखा है? बिजली विभाग में वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है – बिल गलत भेजो, फिर उपभोक्ता को डराओ, धमकाओ, और जब वो घबराकर अधिकारियों के चक्कर लगाए, तो उसके सामने ‘समाधान’ के नाम पर रिश्वत का प्रस्ताव रखो।

सिरौली का मामला तो केवल एक चेहरा है उस विशालकाय राक्षस का, जो पूरे जिले में उपभोक्ताओं की मेहनत की कमाई को चूस रहा है।जब इस घोटाले की शिकायत हुई, तब विभाग की नींद खुली। अधिशासी अभियंता, विद्युत वितरण खंड-आंवला, ने मामले की जांच कर यह स्वीकार किया कि वायरल ऑडियो में आवाज जगदीश वर्मा की ही है और उन्होंने सचमुच रिश्वत मांगी थी।आश्चर्य की बात ये है कि विभाग को इस ‘खुलासे’ में जांच करनी पड़ी। जैसे भ्रष्टाचार कोई संदेह की चीज हो! जब तक जनता का आक्रोश और सोशल मीडिया का दबाव न हो, तब तक विभाग आंखें बंद कर के बैठा रहता है।

सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली-1956 के अनुसार, रिश्वत लेना सीधा अपराध है। फिर भी यह देखकर हैरानी होती है कि वर्मा साहब को सिर्फ निलंबन का तोहफा मिला है। न कोई मुकदमा, न गिरफ्तारी, न चार्जशीट। क्या यही है भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस?

सवाल यह है कि जब रिश्वत के पक्के सबूत मौजूद हैं, तो क्यों नहीं वर्मा को बर्खास्त कर जेल भेजा गया? क्या बिजली विभाग अपने ‘अपने’ अफसरों को ढाल बनाकर बचा रहा है? निलंबन के बाद वर्मा जी को रामपुर रोड खंड से सम्बद्ध कर दिया गया। यानी विभाग कह रहा है – “आपने चोरी की, अब थोड़ी देर आराम कीजिए, फिर अगली पोस्टिंग ले लीजिए।”

हर महीने गरीब, किसान, मजदूर अपना खून-पसीना बहाकर जो कमाते हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा बिजली के बिल में चला जाता है। ऊपर से जब वही विभाग उन्हें गलत बिल थमा कर, फिर ‘सुधारने’ के नाम पर रिश्वत मांगता है, तो यह केवल भ्रष्टाचार नहीं बल्कि अमानवीयता है। जरा सोचिए, अगर 66 हजार का बिल गलत है, तो इसका जिम्मेदार कौन है? और जब उपभोक्ता मदद मांगता है, तो उसे ही लूटा जाता है। यह दोहरी सजा है – एक बार गलत बिल से, दूसरी बार रिश्वत से। क्या जिम्मेदार अधिकारी सिर्फ निलंबन कर, फाइलों में कार्यवाही दर्ज कर, अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाती हैं? क्यों नहीं ऐसे मामलों में तेज गति से विभागीय जांच के साथ-साथ पुलिस एफआईआर दर्ज की जाती है? क्यों नहीं रिश्वतखोरी के मामलों में ‘फास्ट ट्रैक कोर्ट’ बनाकर सजा दी जाती?

बिजली विभाग की जमीनी हकीकत यही है- आम आदमी के लिए ये ‘सेवा’ नहीं, एक डर का नाम बन चुका है। किसी का बिल बिना वजह बढ़ जाता है, तो किसी का कनेक्शन बिना सूचना के काट दिया जाता है। और ऊपर से जब वो मदद मांगता है, तो रिश्वत का पंजा उसकी जेब पर हमला करता है।

ब्रह्मपाल चीफ इंजीनियर ने बताया कि एक ऑडियो वायरल हो रहा है अधिशासी अभियंता आंवला, ने इसकी पुष्टि की है तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया है। भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा आगे की विभागीय कार्रवाई की जा रही है।

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