
कानपुर के सरसौल ब्लॉक के अखरी गांव के प्रेमानंद महाराज का जीवन बेहद रोचक है। उनकी आध्यात्मिक यात्रा शिव उपासना से शुरू हुई। बाद में उन्होंने राधा रानी की उपासना शुरू कर दी। राधा भक्ति के कारण वह देश-विदेश में प्रसिद्ध हो गए। उनकी ख्याति को देखते हुए छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमयू) ने उन्हें मानद उपाधि देने का प्रस्ताव दिया। लेकिन प्रेमानंद महाराज ने यह सम्मान स्वीकार नहीं किया और प्रस्ताव वापस लौटा दिया। इस फैसले ने उन्हें और भी चर्चित बना दिया। एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि प्रेमानंद महाराज पिछले 40 वर्षों से अपने गांव नहीं गए हैं। उनके परिवार के सदस्य आज भी उनकी वापसी की आस लगाए बैठे हैं। उनका विश्वास है कि एक दिन प्रेमानंद महाराज अवश्य घर लौटेंगे।
प्रेमानंद महाराज के जन्मदिन पर उनके घर से भास्कर रिपोर्टर की ग्राउंड रिपोर्ट…
दैनिक भास्कर टीम कानपुर से लगभग तीस किलो मीटर की दूरी पर स्थित सरसौल के अखरी गांव प्रेमानंद महाराज के घर पर पहुंची। यहां पर हमारी मुलाकात प्रेमानंद महाराज के बड़े भाई गणेश दत्त पाण्डेय से हुई। उन्होंने हमे बताया कि वह अपने भाई के बारे में क्या कहे, उन्हें आज सारा देश पूज रहा है। हालांकि उन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया। उन्होंने बताया कि वह पांच बीघा जमीन पर खेती किसानी करते है। इसके बाद हम गांव स्थित प्रेमानंद महाराज के जन्मस्थान पर पहुंचे। यहां पर पहले झोपड़ी नुआं घर हुआ करता था। आज आलीशान कोठी खड़ी है। हालांकि परिजनो और ग्रामीणों का कहना है, उन्हें आस है, कि एक दिन प्रेमानंद महाराज अपने घर गांव जरूर आएंगे। हालांकि प्रेमानंद महाराज के जन्मदिन पर यहां पर कोई कार्यक्रम का आयोजन नहीं होता है।

शिव उपासना छोड़ राधा की भक्ति लीन हुए
प्रेमानंद महाराज के बड़े भाई गणेश दत्त पाण्डेय ने बताया कि पहले वह शिव उपासक थे, उन्होंने 13 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया था, इसके बाद वह एक दिन सरसौल स्थित नंदेश्वर शिव मंदिर में रहे। यहां पर वह 14 घंटे भूखे प्यासे बैठे रहे। यहां से फिर वह सैंमसी स्थित शिव मंदिर में चार साल रहकर आराधना की। इसके बाद बिठूर चले गए। वहां से वह काशी विश्वनाथ मंदिर बनारस चले गए। वहां पर उनका स्वास्थ्य खराब हुआ तो संतो ने इन्हें अस्पताल में भर्ती कराया, महाराज की दोनो किडनी खराब थी, अस्पताल में मिले डॉक्टर राधा रानी के उपासक थे, डॉक्टर ने कहा कि तुम वृन्दावन चले जाओ राधा रानी सब ठीक कर देंगी। स्वास्थ्य सही होने के बाद वह वृंदावन चले गए। जहां पर संतो ने उन्हें राधा रानी के चरणों में रहने की बात कही, इसके बाद उन्होंने राधा रानी की उपासना करनी शुरू कर दी। आज वह राधा नाम से देश विदेश में विख्यात है।

साथी बोले- शुरू से साधुओं की सेवा करते थे
सरसौल के अखरी गांव स्थित कंपोजिट विद्यालय में हम उस भवन तक पहुंचे। यहां पर प्रेमानंद महाराज पढ़ाई किया करते थे। देखरेख के अभाव में बिल्डिंग जर्जर हो चुकी है। हालांकि आज भी कक्षा के अंदर दीवाल में ब्लैक बोर्ड बना हुआ है। पहले इसी कमरे के अंदर पट्टा बिछाकर प्रेमानंद महाराज पढ़ाई किया करते था। इनके साथ पढ़ने वाले राजोल सिंह ने बताया कि प्रेमानंद महाराज के साथ वह और गांव के रहने वाले छोटकाउ साथ पढ़ते थे। उन्होंने बताया कि प्रेमानंद महाराज के घर पर एक डंडी साधु आया करते थे। जो हम लोगों को राधे राधे, जय श्री राम का जाप कराया करते थे। उनकी सेवा में प्रेमानंद महाराज हैंड पंप से पानी भरकर उन्हें नहलाया और उनकी सेवा करना सर्व प्रिय काम था। कई बार तो वह स्कूल सिर्फ इसी वजह से नहीं आ पाते थे।

13 वर्ष की आयु में छोड़ दिया था घर
प्रेमानंद महाराज ने नौवीं कक्षा में ही आध्यात्मिक जीवन जीने और ईश्वर तक पहुंचने वाले मार्ग की खोज करने का फैसला किया। वह अपने परिवार से अलग हो गए, जिस वक्त महाराज ने यह फैसला किया उनकी उम्र सिर्फ 13 वर्ष थी। वह बिना किसी को बताए सुबह तीन बजे अपने घर से निकल गए थे। युवावस्था में ही घर त्यागने के बाद उन्होंने नैष्ठिक ब्रह्मचारी की दीक्षा ग्रहण की थी। संत के रूप में उनका नया नाम श्री आनंद स्वरूप ब्रह्मचारी था, और इसके बाद उन्होंने जीवनभर के लिए संन्यास ले लिया था। महाकाव्य को अपनाने के बाद उन्हें एक और नया नाम मिला जो स्वामी आनंदाश्रम है।

प्रेमानन्द महाराज का नाम अनिरुद्ध पाण्डेय
सन्त प्रेमानन्द गोविन्द शरण जी महाराज का जन्म कानपुर जिले के नरवल तहसील अंतर्गत अखरी गांव में सन 1972 में हुआ था। सन्त प्रेमानन्द महाराज के बड़े भाई गणेश दत्त पाण्डे ने बताया कि उनके पिता शंभू नारायण पाण्डे के 3 पुत्र हैं, जिसमें प्रेमानन्द महाराज मंझिले है। उनके बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पाण्डे है। दो भाई गांव में रहकर खेती किसानी करते है। एक भाई का बेटा प्रेमानंद महाराज के साथ रहता है।
शिव मंदिर की पूजा करते थे, कराया जीर्णोद्वार
प्रेमानंद महाराज के घर से लगभग पचास मीटर की दूरी पर स्थित भगवान शिव का मंदिर स्थित है। यहां पर बचपन में प्रेमानंद महाराज रोजाना सुबह शाम पूजा अर्चना करते थे। हालांकि उन्होंने गांव स्थित मंदिर का जीर्णोद्वार कराया है। पहले यहां शिव मंदिर सिर्फ चबूतरा था, अब मंदिर बनकर तैयार हो गया है। यहां पर गांव के लोग रोजाना पूजा अर्चना करते है।
कैसे आत्मध्यान की ओर गए प्रेमानंद महाराज
बड़े भाई गणेश दत्त पाण्डेय ने बताया कि कक्षा चार में पढ़ने के दौरान उनके छोटे भाई अनिरुद्ध कुमार पाण्डेय जो आज प्रेमानंद महाराज के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होंने तब उनसे स्कंद पुराण सुनाने को कहा था, जिसके बाद स्कंद पुराण में कपिल देव महाराज की सांख्य योग का ज्ञान मेरे द्वारा सुनाया गया था, उसी क्षण से उनके अन्दर अध्यात्म का जन्म होने लगा था, वह रोजाना अपना पूरा समय पूजा पाठ में व्यतीत करने लगा। एक बार की बात है, कि जब सन्त अपने बचपन के मित्र रजोल सिंह तथा छुटकर यादव के साथ गांव के बाहर बैठे हुए थे, तभी तीनों बाल सखाओं ने गांव के अंदर बने शंकर जी के चबूतरे को बनवाने के लिए सोचा और उसके लिए सभी से 5-5 रुपए एकत्रित कर चंदा किया था, इनके बाद मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कराया था। लेकिन गांव के विरोध होने के बाद मंदिर का निर्माण कार्य स्थगित हो गया था।
कैसे वृंदावन पहुंचे प्रेमानंद महाराज
प्रेमानंद महाराज ने एक संत की प्रेरणा से प्रभावित होकर स्वामी श्री श्रीराम शर्मा द्वारा आयोजित रासलीला में गए थे। एक महीने तक वह रासलीला में रहे। महाराज को इस समय तक यह एहसास हो गया था, की वृंदावन में वह हमेशा के लिए रुक जाए। इसके बाद वह मथुरा की ट्रेन पड़कर अन्य संतों के साथ मथुरा पहुंच गए। इसके बाद महाराज वृंदावन पहुंचे, वे वहां पर किसी को नहीं जानते थे, और श्री धाम वृंदावन की सुंदर संस्कृति से बिलकुल अनभिज्ञ थे। उन्होंने वहां पर रोजाना वृंदावन की परिक्रमा करना शुरू किया। इस दौरान उनकी मुलाकात वहां पर कई संतों से हुई। एक दिन उन्हें एक महान संत ने सलाह दी की उन्हें राधा वल्लभ मंदिर में जाना चाहिए। इसके बाद वह वृंदावन में बस गए।

प्रेमानंद महाराज के गुरु कौन हैं, जाने
पूज्य श्री हित मोहित मराल गोस्वामी जी से प्रेमानंद महाराज ने दीक्षा के लिए संपर्क किया। इसके बाद वह अपने वर्तमान सद्गुरु देव, पूज्य श्री हित गौरांगी शरण जी महाराज, जो सहचरी भाव के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित संतों में से एक थे, उनसे मिले प्रेमानंद महाराज ने दस वर्षों से अधिक समय तक अपने गुरु सद्गुरु देव की सेवा की। अपने गुरुदेव और श्री वृंदावन धाम के दिव्य आशीर्वाद से वे शीघ्र ही पूर्णतः सहचरी भाव में खो गए और श्री राधा के चरण कमलों में उनकी अटूट भक्ति विकसित हो गई। इसके बाद वह श्री राधा रानी की दिव्य शक्ति के अंश बन गए। आज प्रेमानंद महाराज के प्रवचन सुनकर लाखों लोगों का जीवन बदल रहा है। प्रेमानंद महाराज के प्रवचनों को सुनकर आज के युवा भक्ति मार्ग पर चलना सीख रहे हैं।
भगवान शिव का आशीर्वाद, प्रवचन में बोले प्रेमानंद
प्रेमानंद महाराज ने अपने प्रवचनों में कई बार जिक्र किया है, कि वह अपने प्रारंभिक जीवन में भगवान शिव के भक्त थे। वह भगवान शिव की शिक्षाओं का पालन किया करते थे। उन्होंने कभी भी आश्रम या पदानुक्रमित जीवन को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश जीवन अकेले और अन्य दिव्य संतों के साथ मिलकर बिताया। संत के रूप में बाबाजी ने कभी भी मौसम, भोजन, कपड़ो को लेकर किसी तरह की कोई परवाह नहीं की और वह हरिद्वार और वाराणसी के घाटों के आसपास ही रहा करते थे। वह हमेशा गंगा स्नान किया करते थे फिर चाहे वह कड़कड़ाती हुई ठंड ही क्यों न हो। इसमें कोई संदेह नहीं कि महाराज जी को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त था, जो ज्ञान और करुणा की पराकाष्ठा थे। इसके बाद वह वृंदावन में राधा रानी के चरणों में बस गए।