होली में इस जगह गैरों पर रंग नहीं डालता कोई

मंडी। हिमाचल प्रदेश में होली का त्योहार प्रकृति और मानवीय उल्लास का प्रतीक है। यहां की होली का वनफूलों की तरह अपना ही अलग रंग है। मंडी में राजदेवता माधवराय भी होली के रंग से सराबोर रहते हैं। वीरवार को मंडी की गलियों में जमकर अबीर गुलाल उड़ेगा। मंडी की होली देश में मनाई जाने वाली होली से एक दिन पूर्व मनाई जाती है। इस दिन सुबह से ही होली खेलने वालों की टोलियां शहर के मुख्य बाजारों में उमड़ने लगती है। मंडी की होली की खासियत यह है कि यहां गैरों पर रंग नहीं डाला जाता। बिना जान पहचान के किसी पर रंग नहीं डालते और महिलाएं भी बाजार में होली खेलने आती है।

राजदेवता माधोराय की भागीदारी तो रियासतकाल से ही होली में रही है। उस जमाने में मंदिर के प्रांगण में पीतल के बड़े बर्तनों में रंग घोला जाता था। राजा अपने दरबारियों के साथ यहां होली खेलता था। यही नहीं राजा घोड़े पर सवार होकर प्रजा के बीच भी होली खेलने जाता था। उस समय स्थानीय स्तर पर प्राकृतिक रंगों की महक से होली की रंगत सराबोर होती थी। होली की यह मस्ती मंडी में माधोराय की जलेब निकलने के पश्चात समाप्त हो जाती है।

वहीं पर मंडी जनपद के ग्रामीण अंचलों में होली का उल्लस और जोश देखते ही बनता है। गांवों में अबीर गुलाल के अलावा प्राकृतिक रंगों की होली खेली जाती रही है। चीड़ और देवदार के पराग के रूप में निकलने वाला पीला पदार्थ जिसे स्थानीय बोली में पठावा कहा जाता है। इसे इक्टठा करके होली इसका उपयोग किया जाता है। आमतौर देवताओं को तिलक लगाने में भी पठावे का उपयोग किया जाता है। इस दिन कांभल नामक वृक्ष की टहनी को फाग के रूप में जलाने की परंपरा है। इसके पीछे मान्यता यह है कि जिस तरह से होली का दहन हुआ है, उसी प्रकार रोग और दरिद्रता का भी फाग की इस आग में जल कर भस्म हो जाए। जिससे घर गांव में खुशहाली और समृद्धि आएगी।

इस अवसर पर गांव की महिलाएं चावल के आटे का पकवान चिलहड़ू बनाती है। जिसे दूध और घी के साथ खाया जाता है। हिमाचल की वादियों में होली प्रकृति और मानव के बीच के रिश्तों को सार्थकता प्रदान करते हुए प्रकृति और मानवीय उल्लास के रंगों से सराबोर रहती है। पहाड़ की होली में रंगों और खुशबूओं का अनूठा सामंजस्य होता है। यहां की होली ब्रज की होली की तरह राधा कृष्ण की प्रेम लीला के रंग से सराबोर नहीं होती और न ही बरसाना की लठमार होली का इतिहास यहां से जुड़ा है। इसके बावजूद हिमाचल की होली राजतंत्र के जमाने से ही जहां राजा और प्रजा को एक रंग में रंग देती थी।

वहीं पर ग्रामीण अंचलों में फाग के रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार में प्रकृति और मानवीय समृद्धि की भावना जुड़ी हुई है क्योंकि पेड़ पौधों पर नई कोंपलें फूटने, वन फूलों के महकने से प्रकृति समृद्ध होकर मानवीय जीवन का संरक्षण करती है, वहीं पर प्रकृति के रंगों से होली खेल मानव अपनी खुशहाली का जश्न मनाता है।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें

मुखवा में पीएम मोदी ने की गंगा पूजा अंसल एपीआई पर कार्रवाई : पिता – पुत्र समेत 5 पर मुकदमा दर्ज ट्रंप ने भारत , चीन समेत देशों पर उच्च शुल्क लगाने का किया ऐलान परिजनों ने कहा – सचिन तो सिर्फ मोहरा , कत्ल के पीछे कोई ओर रूम पर चलो नहीं तो नौकरी छोड़ : नर्सिंग ऑफिसर की पिटाई