काशी में न हो ‘मसाने की होली’ तो डर जाते हैं लोग, महादेव की नगरी में नहीं टूटती ये परंपरा

Seema Pal

Massan ki Holi : होली का पर्व खुशी के साथ मनाया जाता है। कहते हैं होलिका दहन के साथ ही बुराई और नकारात्मकता खत्म हो जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक होली ऐसी भी है जो खुशी से नहीं बल्कि एक अनजाने भय के कारण खेली जाती है। हम बात कर रहे हैं दुनियाभर में रहस्य और रोमांच से भरी काशी की मसाने की होली की। दरअसल, महाशमशान मणिकर्णिका घाट पर चिता की राख से होली खेली जाती है। इसे मसाने की होली कहते हैं। काशी में यह परंपरा बन चुकी है कि हर साल होली में मसाने की होली जरूर खेली जाती है। माना जाता है कि एक बार अगर यह परंपरा टूट जाए तो काशी पर इसका बुरा असर पड़ता है। काशी में रहने वाले लोगों के जीवन चक्र पर भी इसका गहरा नकारात्म प्रभाव पड़ता है। मगर, ऐसा क्यों है और क्यों मसान की होली खेलना जरूरी है?

मसाने की होली क्यों खेली जाती है?

काशी नगरी को एक पावन भूमि माना जाता है। कहते हैं कि यहां मौत भी मोक्ष के द्वार खोल देती है। आपने कई बड़े कवि और राजनेताओं के बायोग्राफी में सुना भी होगा कि हर कोई काशी में मरने की इच्छा रखता है। क्योंकि काशी महादेव की नगरी है और महादेव के धाम में मृत्यु भी एक उत्सव ही है कोई शोक नहीं है। महादेव की अनंत लीला का हिस्सा मसान की होली सिर्फ राख का खेल नहीं, बल्कि काशी के आध्यात्मिक चक्र को जीवित रखने वाला अनुष्ठान है। शमशान घाट में मसाने की होली इसलिए खेली जाती है क्योंकि यह मृत्यु को उत्सव के रूप में मनाने का प्रतीक है। शमशान घाट में होली पर चिताओं की राख से होली खेली जाती है। यहां पर चिताओं की राख को जीवन के रंगों में मिलाया जाता है।

मसाने की होली की परंपरा टूट जाए तो क्या होगा?

मसाने की होली की परंपरा यह सीख देती है कि मृत्यु अंत नहीं है बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत है। यहां मान्यता है कि अगर मसाने की होली नहीं खेली जाएगी तो शवों की आत्माएं अधूरी रह जाती हैं और उन्हें मोक्ष नहीं मिल पाता है। काशी में होली की परंपरा धार्मिक दृष्टि के साथ-साथ आध्यात्मिक ऊर्जा को भी संतुलित करती है।

कौन खेल सकता है मसाने की होली

यहां के शमशान के संतों का कहना है कि मसाने की होली की परंपरा अघोरी संप्रदाय और डोम समाज के लोगों द्वारा निभाई जाती है। अघोरियों का मानना है कि मसाने की होली महादेवा की तंत्र साधना का हिस्सा है। इसमें जीवन और मृत्यु का चक्र शामिल है जो समान रूप से चलता रहना चाहिए। इसलिए जन्म और मरण का उत्सव मनाना चाहिए। अगर यह परंपरा टूटी तो जीवन चक्र का संतुलन भी टूट जाएगा।

काशी के लोगों में रहता है ये भय

काशी के लोगों की बात करें तो मसाने की होली की परंपरा टूटने का डर सबसे ज्यादा यहां के लोगों को ही रहता है। काशी वासियों का कहना है कि अगर अघोरियों ने मसाने की होली नहीं खेली तो काशी में अशांति और प्राकृतिक आपदाएं आ सकती हैं। मसान की होली को भले ही दुनिया एक तमाशे के रूप में देख कर खुश होती है लेकिन काशी के लिए यह एक जरूरी परंपरा है। काशी में मृत्यु और जीवन को संतुलित करती है।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें

मुखवा में पीएम मोदी ने की गंगा पूजा अंसल एपीआई पर कार्रवाई : पिता – पुत्र समेत 5 पर मुकदमा दर्ज ट्रंप ने भारत , चीन समेत देशों पर उच्च शुल्क लगाने का किया ऐलान परिजनों ने कहा – सचिन तो सिर्फ मोहरा , कत्ल के पीछे कोई ओर रूम पर चलो नहीं तो नौकरी छोड़ : नर्सिंग ऑफिसर की पिटाई